- दो संप्रदाय के संतों का हुआ आध्यात्मिक मिलन
- स्थानकवासी श्री मरुधर केसरी पावन धाम का आचार्यश्री ने किया अवलोकन
- स्थानीय विधायक श्री अविनाश गहलोत संग श्रद्धालुओं ने किया आचार्यश्री का भव्य स्वागत
- प्रवृत्ति के तीन साधन-मन, वाणी और शरीर : युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमण
01.12.2022, गुरुवार, जैतारण, पाली (राजस्थान)। अपने पावन संदेश के माध्यम से जन-जन के मन को पावन बनाने वाले, जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें अनुशास्ता, शांतिदूत, युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी गुरुवार को अपनी धवल सेना के साथ जैतारण नगर स्थित श्रमण संघ स्थानकवासी संप्रदाय के श्री मरुधर केसरी पावन धाम में पधारे तो वहां उपस्थित संत मुनि सुकनजी ने अपने शिष्यों तथा स्थानीय विधायक व सैंकड़ों की संख्या में उपस्थित श्रद्धालुओं ने भव्य स्वागत-अभिनन्दन किया। दो संप्रदायों के संतों का आध्यात्मिक मिलन जैन एकता व समरसता को दर्शा रहा था। जिस संप्रदाय से अभिनिष्क्रमण कर आचार्य भिक्षु ने तेरापंथ धर्मसंघ की स्थापना की थी, उन संघ के संत से आचार्य भिक्षु के ग्यारहवें पट्टधर का आध्यात्मिक मिलन श्रद्धालुओं को आह्लादित करने वाला था। आचार्यश्री इस परिसर में गुरु मिश्रीजी व गुरु रूपचन्दजी ‘रजत’ की समाधिस्थल पर भी पधारे तत्पश्चात प्रवास हेतु श्रमण सूर्य नामक भवन में पधारे।
इसके पूर्व आचार्यश्री महाश्रमणजी ने बांजाकुड़ी से मंगल प्रस्थान किया। मार्ग के दोनों अधिकांश खेत तो खाली दिखाई दे रहे थे। कहीं-कहीं जागरूक किसानों द्वारा उगाई गई सरसों आदि की फसलें भी नजर आ रही थीं। लगभग नौ किलोमीटर का विहार कर आचार्यश्री जैतारण नगर में पधारे तो स्थानीय विधायक श्री अविनाश गहलोत, स्थानकवासी श्रमण संघ के संत मुनि सुकनजी अपने शिष्यों के साथ आचार्यश्री की अगवानी में पधारे। दो संतों के आध्यात्मिक मिलन से जैतारण का पूरा वातावरण आध्यात्मिकता से प्रभावित नजर आ रहा था।
श्री मरुधर केसरी पावन धाम सभागार में दोनों संप्रदाय के संतों की उपस्थिति में मुख्य प्रवचन कार्यक्रम का शुभारम्भ हुआ। मुनि हितेशजी और मुनि वरुणजी ने आचार्यश्री के स्वागत में अपनी भावाभिव्यक्ति दी। तेरापंथ धर्मसंघ की साध्वीप्रमुखा विश्रुतविभाजी ने उपस्थित जनता को उद्बोधित किया।
तदुपरान्त स्थानकवासी श्रमण संघ के संत मुनि सुकनजी ने कहा कि आज तेरापंथ के महान आचार्यश्री महाश्रमणजी का यहां आगमन हुआ है। आचार्यश्री महाश्रमणजी सबसे मिलते-जुलते रहते हैं। यह बहुत ही हर्ष का विषय है। संतों का मिलना जनता के लिए भी लाभदायी होता है।
तेरापंथ धर्मसंघ के एकादशमाधिशास्ता, युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने उपस्थित जनता को पावन पाथेय प्रदान करते हुए कहा कि प्रकृति द्वारा प्रवृत्ति के तीन साधन प्रदान किए हैं- मन, वाणी और शरीर। मन से चिन्तन होता है, वाणी परस्पर विचारों के आदान-प्रदान का सशक्त माध्यम बनती है और शरीर से चेष्टा और भी अनेक गतिविधियां संपादित की जाती हैं। वाणी एक ऐसी प्रवृत्ति है जो व्यक्ति के जीवन को विशेष बनाने वाली हो सकती है। वाणी अच्छी हो तो मानों समूचे जगत को अपना बनाया जा सकता है। वाणी को अच्छा बनाने के लिए शास्त्रकारों ने कई गुण बताए हैं। परिमित बोलना वाणी का एक गुण है। आदमी को कम और अच्छा बोलना चाहिए। ज्यादा बोलना और अनावश्यक बोलना और बात को लंबाना वाणी के दोष होते हैं। सिमित और परिमित बोलने का प्रयास होना चाहिए। वाणी दोषरहित हो और आदमी जो भी बोले विचारपूर्ण बोले तो वाणी प्रभावशाली बन सकती है। आचार्यश्री ने आगे कहा कि आज जैतारण इस पावन धाम में आना हुआ है। मुनि सुकनजी के साथ मिलना हो गया। आचार्यश्री ने ‘जैन धर्म की…’ गीत का आंशिक संगान किया।
डॉ. चंचलराज छल्लाणी, डॉ. निर्मला छल्लाणी, जैन संघ-जैतारण के महामंत्री श्री महावीर लोढ़ा, पावन धाम से श्री नेमीचन्द चोपड़ा ने अपनी आस्थासिक्त अभिव्यक्ति दी। जैतारण महिला मण्डल की सदस्याओं ने स्वागत गीत का संगान किया। आचार्यश्री का स्वागत कर मंगल प्रवचन का श्रवण करने के उपरान्त जैतारण के विधायक श्री अविनाश गहलोत ने आचार्यश्री के स्वागत में कहा कि मैं जैतारण की समस्त जनता की ओर से महात्मा आचार्यश्री महाश्रमणजी का हार्दिक स्वागत-अभिनंदन करता हूं। हम सभी का यह परम सौभाग्य है जो आप जैसे महान संत के दर्शन करने और मंगलवाणी के श्रवण का सुअवसर प्राप्त हुआ। आपकी प्रेरणादायी यात्रा लोगों को सन्मार्ग पर ला रही है। आपका आशीर्वाद हम सभी पर बना रहे, ताकि हम भी मानवता के पथ पर आगे बढ़ सकें।
आज आचार्यश्री के दर्शनार्थ पूरे श्रद्धालुओं का मानों तांता-सा लगा रहा। पूरे दिन श्रद्धालु बड़ी संख्या में आचार्यश्री के प्रवास स्थल व उसके आसपास उपस्थित रहे। आचार्यश्री के निकट दर्शन, आशीर्वाद और उपासना का लाभ प्राप्त करते रहे।