- ग्यारह वर्षों बाद पाली की धरा पर गतिमान हुए अखण्ड परिव्राजक आचार्यश्री महाश्रमण
- 15 कि.मी. का प्रलम्ब विहार, बस्सी गांव के राजकीय उच्च प्राथमिक विद्यालय में हुआ प्रवास
- प्रकृति करती है सहज रूपों में सभी जीवों पर उपकार : युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमण
29.11.2022, मंगलवार, बस्सी, पाली (राजस्थान)। चुरू जिले के छापर में वर्ष 2022 का चतुर्मास करने के उपरान्त जनोपकार के लिए गतिमान हुए जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के वर्तमान अनुशास्ता, अहिंसा यात्रा प्रणेता, युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी अपनी धवल सेना के साथ लगभग अठारह दिनों तक नागौर जिले की प्रभावक यात्रा सुसम्पन्न कर मंगलवार को पाली जिले की सीमा में मंगल प्रवेश किया तो पाली की धरा ग्यारह वर्षों बाद ज्योतिचरण के चरणरज को प्राप्त कर धन्य हो गई। मंगलवार को प्रातः आचार्यश्री नागौर जिले के जसनगर से गतिमान हुए। जसनगर के श्रद्धालुओं ने आचार्यश्री को वंदन कर पावन आशीर्वाद प्राप्त किया। कुछ किलोमीटर के विहार के उपरान्त ही अब तक आचार्यश्री के चरणरज का लाभ प्राप्त करने वाली नागौर जिले की धरा ने विदाई ली तो ग्यारह वर्षों बाद ज्योतिचरण के चरणरज को प्राप्त कर पाली जिले की धरा जगमगा उठी। इस अवसर पर उपस्थित पालीवासियों ने आचार्यश्री का भावभीना अभिनंदन किया। लगभग 15 किलोमीटर का प्रलम्ब विहार कर आचार्यश्री पाली जिले के बस्सी गांव स्थित राजकीय उच्च प्राथमिक विद्यालय में पधारे।
विद्यालय प्रांगण में आयोजित मंगल प्रवचन कार्यक्रम में आचार्यश्री ने उपस्थित श्रद्धालुओं को पावन प्रेरणा प्रदान करते हुए कहा कि सृष्टि का नियम है कि दिन-रात का क्रम निरंतर चलता है। प्रत्येक प्राणी को 24 घण्टे का समय भी निःशुल्क रूप में प्रतिदिन प्राप्त होता है। प्रकृति से पानी, धूप, हवा, वनस्पति, वृक्षों की छाया आदि सहज रूप में प्राप्त होती है। प्रकृति द्वारा अनेक ऐसे भी तत्त्व प्राप्त होते हैं जो अनुभव करने पर समझे जा सकते हैं। प्रकृति का यह मानों प्राणी जगत पर उपकार है। प्रकृति सहज रूप में प्राणियों पर उपकार करती है और उन्हें अनेक जीवनोपयोगी तत्त्व प्रदान करती है।
जैन शास्त्रों के अनुसार वर्णित छह द्रव्यों में पहला द्रव्य धर्मास्तिकाय है। प्राणी को धर्मास्तिकाय का सहयोग मिलता है तो प्राणी गति करता है। यदि धर्मास्तिकाय का सहयोग न प्राप्त हो तो सम्पूर्ण सृष्टि थम सकती है। धर्मास्तिकाय न दिखाई देता है और न ही महसूस होता है। वह निष्पक्ष भाव से प्राणियों की गतिमत्ता में सहयोगी बनता है। इसी प्रकार अधर्मास्तिकाय प्राणी की स्थिरता और उसके ठहराव में सहायक बनता है। आकाश का भी प्रकृति में महत्त्वपूर्ण स्थान है।
इस सृष्टि में प्रत्येक प्राणी भी परस्पर सहयोग करते हैं। इसलिए कहा गया है-परस्परो परिग्रहोजीवानाम्।’ उदाहरण के लिए समझें तो कोई व्यक्ति बीमार होता है तो उसकी सहायता के लिए कोई आदमी डॉक्टर रूप में सहयोग प्रदान करने के लिए आता है। शिक्षक विद्यार्थियों को ज्ञान के माध्यम से सेवा देता है तो विद्यार्थी भी दक्षिणा के रूप में शिक्षक के जीवनयापन के सहयोगी बनते हैं। इस सृष्टि में सभी प्राणी एक-दूसरे के सहयोग से जीवन जीत हैं। साधु लोगों को धार्मिक-आध्यात्मिक सेवा प्रदान करता है। सेवा को धर्म बताया गया है। इसलिए हमेशा सेवा और सहयोग के लिए तैयार रहने का प्रयास करना चाहिए। आचार्यश्री की प्रेरणा से उपस्थित पालीवासियों ने सद्भावना, नैतिकता और नशामुक्ति के संकल्पों को स्वीकार किया।
आचार्यश्री के स्वागत में श्री महावीर बोहरा, जैन श्वेताम्बर तेरापंथी सभा के अध्यक्ष श्री सुरेन्द्र सालेचा, श्री गौतमजी, श्री कन्हैयालाल सिंघवी, श्री बसंत सिंघवी तथा स्कूल के प्रधानाध्यापक श्री भवानी सिंह ने अपनी आस्थासिक्त अभिव्यक्ति दी। श्री प्रमोद भंसाली ने कविता पाठ किया।
आचार्यश्री ने पालीवासियों की प्रार्थना को स्वीकार करते हुए पाली में एकदिवसीय प्रवास के उपरान्त दूसरे दिन सायं में विहार करने की घोषणा की। आचार्यश्री का ऐसा अनुग्रह प्राप्त कर पालीवासी अतिशय आह्लादित थे।
सात दिसम्बर को आचार्य भिक्षु समाधि स्थल पधारेंगे भिक्षु के पट्टधर आचार्यश्री महाश्रमण
आचार्यश्री अपनी पाली जिले की यात्रा के दौरान 1 दिसम्बर को जैतारण, 4 दिसम्बर को बगड़ी, 5 दिसम्बर को सोजत रोड, 6 दिसम्बर को कंटालिया तथा तेरापंथ धर्मसंघ के आद्य आचार्यश्री भिक्षु के समाधिस्थल सिरियारी में 7 दिसम्बर को त्रिदिवसीय प्रवास हेतु पधारेंगे। यहां 8 दिसम्बर को आयोजित दीक्षा समारोह में सात मुमुक्षु भाई/बहनों को साधु-साध्वी दीक्षा प्रदान करेंगे।