- 15 से अधिक कि.मी. का प्रलम्ब विहार कर धनेरिया लील में पधारे आचार्यश्री महाश्रमण
- ग्रामीणों ने भक्ति-भाव से किया स्वागत, अकिंचन आचार्यश्री ने स्वीकार की भावनाएं
- पुनर्जन्म को मान शुभ कार्यों से युक्त हो जीवन : शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमण
27.11.2022, रविवार, धनेरिया लील, नागौर (राजस्थान)। जन-जन के मानस को पावन बनाने वाले, जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के वर्तमान अनुशास्ता, युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी अपनी नागौर जिले की यात्रा के दौरान रविवार को प्रातः श्रीकृष्ण की परम भक्त मीराबाई की नगरी मेड़ता सिटी से प्रस्थित हुए तो नगरवासियों ने महान संत के प्रति अपने भक्तिभावों को व्यक्त करते हुए श्रीचरणों में प्रणति अर्पित की। भक्तिभाव से ओतप्रोत जनता पर आशीष बरसाते हुए आचार्यश्री अगले गंतव्य की ओर बढ़ चले। इस मार्ग पर आचार्यश्री मानवता के महासूर्य की भांति मानवता का आलोक बांटते गतिमान थे तो आसमान का सूर्य भी धरा का तम हरने के लिए गतिमान हो चुका था। प्रातःकाल के कुछ समय तक प्यारी लगने वाली धूप चढ़ते दिन के साथ तीव्र लगने लग रही है। आचार्यश्री का आज लगभग पन्द्रह किलोमीटर से अधिक का विहार निर्धारित था। फिर भी समता के साधक आचार्यश्री गतिमान थे। मार्ग में मेड़ता सिटी का एक व्यक्ति सपरिवार आचार्यश्री के दर्शन करते हुए बताया कि कल दो-तीन बार प्रयास करने के बाद भी मुझे आपश्री के दर्शन नहीं हो पाए थे तो आज रास्ते में ही पूरे परिवार सहित आपके दर्शन की ठान ली। आचार्यश्री ने उस व्यक्ति को प्रेरणा प्रदान की तो वह इतना प्रभावित हुआ कि आचार्यश्री के श्रीमुख से नशामुक्ति का संकल्प स्वीकार किया और तत्काल अपने जेब में रखे नशीले पदार्थों का विसर्जन कर दिया। यह घटना आम श्रद्धालुओं को आचार्यश्री के प्रति और श्रद्धावान बनाने वाली थी।
युगप्रधान आचार्यश्री लगभग साढ़े पन्द्रह किलोमीटर का विहार कर धनेरिया लील गांव के निकट पधारे तो ग्रामीण लोग अपने हाथों में कलश, माला आदि मंगल द्रव्य लिए स्वगतार्थ खड़े थे तो महिलाएं मंगल गीतों का गान कर रही थीं। आचार्यश्री ने सभी के श्रद्धाभावों का स्वीकरण करते हुए उन सभी पर आशीष वृष्टि कर गांव स्थित राजकीय उच्च प्राथमिक विद्यालय में पधारे।
विद्यालय प्रांगण में आयोजित मंगल प्रवचन कार्यक्रम में उपस्थित श्रद्धालुओं व ग्रामीण जनता को आचार्यश्री ने मंगल संबोध प्रदान करते हुए कहा कि किसी भी जीव का पुनर्जन्म होता है। यह आस्तिकवाद का प्रचलित सिद्धांत है। पुनर्जन्म है तो पूर्व जन्म तो स्वतः सिद्ध हो जाता है। इस पुनर्जन्मवाद के साथ ही कर्मवाद आदि भी जुड़े हुए हैं। क्योंकि बताया गया है कि प्राणियों द्वारा किए गए कर्मों के आधार पर ही अगला जन्म होता है। कर्म अच्छा होता है तो वर्तमान जीवन ही नहीं, अगला जीवन भी अच्छा हो सकता है। इसलिए आदमी को कदाचार, दुराचार से बचते हुए सदाचार के मार्ग पर चलने का प्रयास करना चाहिए। यदि नास्तिकवाद की बात मानी जाए कि पुनर्जन्म नहीं भी हो तो भी अच्छे कार्यों से वर्तमान जीवन तो अच्छा और सुखमय हो सकता है। अच्छे कार्य करने वालों के लिए पुनर्जन्म नहीं हुआ तो कुछ नहीं जाएगा, किन्तु यदि पुनर्जन्म हो गया तो फिर बुरे कार्यों में लुप्त लोगों का तो अगला जीवन भी कष्टमय बन सकता है।
जीवन को अच्छा बनाने के लिए परम पूज्य आचार्यश्री तुलसी ने अणुव्रत की प्रेरणा प्रदान की। इसके माध्यम से आदमी छोटे-छोटे संकल्पों के द्वारा अपने जीवन को अच्छा बना सकता है। जीवन में अहिंसा, संयम और तप के रास्ते पर चलने का प्रयास हो तो वर्तमान जीवन के साथ अगला जीवन भी अच्छा हो सकता है।
आचार्यश्री ने मंगल प्रवचन के उपरान्त ग्रामीण जनता को अभिप्रेरित करते हुए सद्भावना, नैतिकता और नशामुक्ति को स्वीकार करने का आह्वान किया तो ग्रामीण जनता से सहर्ष तीनों संकल्पों को स्वीकार कर अपने जीवन को धन्य बनाया।