- चतुर्मास की अंतिम चतुर्दशी को आचार्यश्री ने चतुर्विध धर्मसंघ को किया अभिप्रेरित
- 9 नवम्बर को प्रातः 7.21 पर होगा युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमण का मंगल प्रस्थान
07.11.2022, सोमवार, छापर, चूरू (राजस्थान)। आनंद का समय कब बीत जाता है, यह आदमी को पता ही नहीं चल पाता है। जब उस आनंद के खोने का आभास होता है तो आदमी को महीनों का समय भी अल्प-सा महसूस होता है। सोमवार को चतुर्मास प्रवास स्थल परिसर में बने आचार्य कालू महाश्रमण समवसरण में छापरवासियों की छलकती विकल भावनाओं से ऐसा ही प्रतीत हो रहा था। उन्हें भी अपने आराध्य के चार महीनों का चतुर्मासकाल भी अल्प-सा महसूस हो रहा था। उन्हें ऐसा प्रतीत हो रहा था कि अभी कल ही तो बात थी जब हम सभी अपने आराध्य के अभिनंदन, स्वागत व सेवा में उपस्थित होकर आनंद की अनुभूति कर रहे थे और आज चतुर्मास की सम्पन्नता के संदर्भ में मंगलभावना की अभिव्यक्ति दे रहे हैं, यह सुखदकाल तो कुछ क्षणों में ही सम्पन्न होने जा रहा है। इस कारण अभिव्यक्ति देने वाले सभी श्रद्धालुओं के गले मानों भरे हुए थे, नेत्र सजल थे और सभी की एक ही भावना थी ‘गुरुदेव! बेगा पधारजो।’
74 वर्षों बाद वर्ष 2022 का चतुर्मास तेरापंथ धर्मसंघ के अष्टमाचार्य कालूगणी की जन्मधरा पर कर रहे तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें अनुशास्ता, युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने सोमवार को अपने मंगल प्रवचन में पावन प्रेरणा प्रदान करते हुए कहा कि आज कार्तिक शुक्ला चतुर्दशी है। यह चतुर्मास की अंतिम चतुर्दशी भी है। चतुर्मास का अपना विशेष महत्त्व होता है। इस दौरान विहारचर्या से मुक्त रहकर ज्ञानाराधना और तपःराधना करने का अच्छा अवसर प्राप्त होता है। आदमी को अपने ज्ञान का निरंतर विकास करने का प्रयास करना चाहिए। ज्ञान परम पवित्र तत्त्व है। ज्ञान पुण्य का हो अथवा पाप का दोनों ही आवश्यक होता है। ज्ञान होता है तो आदमी अपने विवेक के माध्यम से अच्छे ज्ञान को अपने जीवन में उतारता है और बुराईयों का ज्ञान होने के कारण ही उससे अपने आपको बचाने का भी प्रयास करता है। ज्ञान हो, दर्शन का विकास हो तो श्रद्धा भावना पुष्ट होती है, तदनुरूप चारित्र बनता है और तत्पश्चात तपस्या के द्वारा अपना शोधन करता है। इस प्रकार आदमी को ज्ञान, दर्शन, चारित्र और तप के विकास का निरंतर प्रयास करना चाहिए।
आचार्यश्री ने मुनि कुमारश्रमणकेशी और राजा प्रदेशी की कथा के माध्यम से चतुर्विध धर्मसंघ को उत्प्रेरित करते हुए कहा कि हमारे चारित्रात्माओं में इतना ज्ञान का विकास हो कि वे अपने उत्तर के माध्यम से किसी को भी संतुष्ट कर सकें। यथार्थ बात को प्रतिपादित करने की क्षमता का विकास करने का प्रयास हो, अच्छी साधना का विकास हो। अब चतुर्मास की सम्पन्नता में मात्र दो रात्रि ही शेष है। सभी अपना अच्छा विकास करने प्रयास करें, यह काम्य है। आचार्यश्री ने कहा कि चतुर्मास की सम्पन्नता के उपरान्त बुधवार को प्रातः 7.21 इस चतुर्मास प्रवास स्थल से प्रस्थान करना है।
आचार्यश्री ने हाजरी का वाचन करते हुए चारित्रात्माओं को विविध प्रेरणाएं प्रदान कीं। इस दौरान आचार्यश्री ने अपने चारित्रात्माओं का नामोल्लेख करते हुए उन्हें मंगल आशीर्वाद प्रदान किया। आचार्यश्री ने महाश्रमणी साध्वीप्रमुखा कनकप्रभाजी की 8वीं पुण्यतिथि पर उनका स्मरण किया तथा साध्वीप्रमुखा विश्रुतविभाजी के नियुक्ति के सात महीने पूर्ण होने पर मंगल आशीष प्रदान किया। तदुपरान्त चारित्रात्माओं ने अपने स्थान पर खड़े होकर लेखपत्र का उच्चारण किया। आचार्यश्री ने अपने पूर्वाचार्यों का स्मरण करते हुए ‘भिक्षु म्हारै प्रकट्याजी भरत खेतर में’ गीत का आंशिक संगान भी किया। साध्वीप्रमुखा विश्रुतविभाजी ने भी उपस्थित जनता को उद्बोधित किया।
आयोजित मंगलभावना समारोह में छापर चतुर्मास प्रवास व्यवस्था समिति के अध्यक्ष श्री माणकचंद नाहटा, महामंत्री श्री नरेन्द्रकुमार नाहटा, तेयुप अध्यक्ष श्री सौरभ भूतोड़िया, तेरापंथ महिला मण्डल अध्यक्ष श्रीमती सरिता सुराणा, मंत्री श्रीमती अल्का बैद, श्रीमती प्रेम भंसाली, रिटायर्ड प्रिंसिपल श्री रेखाराम गोदारा, उपासिका श्रीमती तारामणि दुधोड़िया, श्री नरपत मालू व श्री झंकार दुधोड़िया ने अपनी विकल भावनाओं को अभिव्यक्ति दी। श्री नितेश बैद, अणुव्रत महिला टीम-छापर, श्री गणपतधनराज मालू तथा छापर की बहू-बेटियों द्वारा गीत के माध्यम से अपनी मंगलभावनाओं को प्रस्तुत किया गया। चतुर्मास प्रवास व्यवस्था समिति के द्वारा विभिन्न व्यक्तियों व संस्थाओं को सम्मानित किया गया। सभी ने आचार्यश्री से मंगल आशीर्वाद प्राप्त किया।