निरंजन परिहार।।
राजस्थान कांग्रेस में मचे घमासान के संदर्भ में बीजेपी ने भारत जोडो यात्रा पर निकले राहुल गांधी पर तंज कसा है कि भारत जोड़ते रहना, पहले राजस्थान तो जोड़ लो…! संदेश साफ है कि राहुल गांधी को राजनीतिक रूप से अभी और परिपक्व होना बाकी है। क्योंकि सचिन पायलट को मुख्यमंत्री बनाने की अगर वे जिद न करते और कांग्रेस का अखिल भारतीय अध्यक्ष बनने से पहले ही अशोक गहलोत को मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देने का संदेश नहीं देते, तो राजस्थान कांग्रेस में यह जो बवाल मचा हुआ है, वह कतई नहीं मचता। राजस्थान के लगभग 90 फीसदी कांग्रेस विधायकों ने पायलट के लिए लक्षमण रेखा खींच दी है। कह दिया है कि पायलट कतई मंजूर नहीं, उनके अलावा कोई भी समर्पित नेता चलेगा। कांग्रेस में किसी ने कल्पना तक नहीं की होगी कि राजस्थान में सचिन पायलट के विरोध में एक साथ 92 विधायक सीधे इस्तीफा लिखकर आलाकमान के सामने आंखें तरेरकर खड़े हो जाएंगे।
भारतीय लोकतंत्र में संभवतया यह पहली बार, और राजस्थान में तो सच में पहली बार हुआ है कि किसी प्रदेश में एक पार्टी के लगभग सभी विधायकों ने एक साथ अपना इस्तीफा दे दिया हो। सोनिया गांधी सन्न हैं, प्रियंका गांधी हत्तप्रभ हैं, और सदा की तरह राहुल गांधी इतने बड़े और गंभीर मामले के बावजूद खुद को दूर खड़ा दिखा रहे हैं, जैसे उनको इस सबसे कोई मतलब नहीं है। ताजा हालात यह है कि पायलट के नाम पर राजस्थान में कांग्रेस दो फाड़ हो गई है। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के कांग्रेस अध्यक्ष बनने से पहले ही उनसे मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा करवाए जाने और उनकी जगह पायलट को मुख्यमंत्री बनाने की राहुल गांधी की उतावली में कांग्रेस को जो कबाड़ा हो रहा है, उसमें कांग्रेस के लिए इससे ज्यादा बुरा और कुछ भी नहीं हो सकता था।
सितंबर की 25 तारीख को रविवार का सूरज सुबह जब उगा, तो पायलट लगभग मुख्यमंत्री जैसे उतावले अंदाज में विधायकों से मिल रहे थे और उनके समर्थकों को उनमें एक नए सूरज के उदय का आभास हो रहा था। इसके उलट, जैसा कि कुछ भी बड़ा करने से पहले गहलोत भगवान का आशीर्वाद लेते रहे हैं, सो राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने से पहले गहलोत अपने प्रदेश अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा और मंत्री प्रतापसिंह खाचरियावास के साथ पाकिस्तान बॉर्डर पर स्थित तनोट माता का आशीर्वाद लेने गए थे। पायलट के समर्थक भले ही यह आरोप लगा रहे हैं कि जादूगर गहलोत ने जयपुर इसलिए छोड़ा क्योंकि उन्हें अपने राजनीतिक पराक्रम का जादू दिखाना था और किसी भी हाल में पायलट को मुख्यमंत्री बनने से रोकना था। लेकिन राजनीतिक विश्लेषक संदीप सोनवलकर कहते हैं कि अशोक गहलोत की निष्ठा और पार्टी के प्रति समर्पण पर भरोसा किया जाना चाहिए। कांग्रेस अध्यक्ष के रूप में किसी भी अन्य नेता के मुकाबले गहलोत राजनीतिक पेंचों की बारीकियां ज्यादा अच्छी तरह से समझते हैं। सोनवलकर कहते हैं कि राजस्थान के ताजा संकट से संकेत साफ है कांग्रेस को फिलहाल पूंक फूंक कर कदम रखना होगा। कांग्रेस की राजनीति के जानकार अभिमन्यु शितोले की राय में राजस्थान के ताजा संकट के लिए कांग्रेस नेतृत्व की हड़बड़ी ज्यादा जिम्मेदार है, क्योंकि अगर 97 विधायकों की भावना को दरकिनार करके सिर्फ 16 विधायकों के समर्थनवाले पायलट को मुख्यमंत्री बनाना ही था, तो पहले गहलोत व उनके समर्थक विधायकों को विश्वास में लेना चाहिए था। शितोले यह भी कहते हैं कि कांग्रेस का अध्यक्ष पद पाने से पहले ही गहलोत को मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दिलवाने की बात भी एक तरह से गहलोत जैसे बड़े नेता के लिए बेहद अपमानजनक है, जिसे सहन करना उनके समर्थकों के लिएओ तो क्या, किसी के लिए भी आसान नहीं था।
जैसलमेर से गहलोत जब वापस जयपुर पहुंचे, तो शाम ढलते ढलते माहौल ऐसा बदला कि कांग्रेस प्रभारी अजय माकन और दिग्गज नेता मल्लिकार्जुन खरगे भी दंग रह गए। विधायकों ने पायलट की मुख्य़मंत्री पद पर दावेदारी के खिलाफ जो मजबूत माहौल रचा, वह इससे पहले किसी ने नहीं देखा। विधायक दल की बैठक में जाने से पहले दिग्गज मंत्री शांति धारीवाल के आवास पर बैठक हुई और वहीं से इस्तीफे लिखकर विधानसभा अध्यक्ष को भेज दिए। माकन और खरगे विधायक दल की बैठक में विधायकों के आने का इंतजार ही करते रहे, लेकिन मुख्यमंत्री आवास पर उस बैठक में पायलट समर्थक विधायक तो पहुंचे मगर 97 विधायक पहुंचे ही नहीं और इस्तीफे का एलान कर दिया। तो, मुख्यमंत्री गहलोत ने भी आलाकमान के सामने हाथ खड़े कर दिए और कहा कि अब उनके बस में कुछ नहीं है।
बेबस प्रभारी अजय माकन और लाचार पर्यवेक्षक मल्लिकार्जुन खरगे को समझ में आ गया कि कांग्रेस अध्यक्ष के चुनाव में अशोक गहलोत की दावेदारी से पीछे विरासत सम्हालने की पायलट की कोशिश से शुरू हुई हलचल अब सियासी तूफान में बदल गई है। विधायकों के इस रुख से हाईकमान हैरान है। सोनिया गांधी के कहने पर केसी वेणुगोपाल ने गहलोत और खड़गे से कहा कि रात भर में पूरे मामले को सुलझाया जाए, लेकिन आम बोलचाल की भाषा में कहें, तो रायता इतना फैल गया है कि मामला सम्हाले नहीं सम्हल रहा। रात में भर में 80 विधायकों से मिलकर उनकी राय जानी गई लेकिन तस्वीर साफ है कि आनेवाले कई दिनों तक यह राजनीतिक संकट सुलझेगा नहीं। लग तो यही रहा है कि पायलट तब तक मुख्यमंत्री नहीं बन सकते, जब तक कि गहलोत और उनके समर्थक नहीं चाहेंगे।
मुख्यमंत्री गहलोत और पायलट के बीच कड़वाट किसी से छिपी नहीं है। सन 2018 में पायलट स्वयं को मुख्यमंत्री मानकर चुनाव लड़ रहे थे, लेकिन बहुमत न आने के कारण गहलोत ने मोर्चा सम्हाला और निर्दलियों व बसपा आदि के साथ कांग्रेस की सरकार बनाई, तो पायलट मुख्यमंत्री नहीं बन सके। तभी से पद पाने की चाह में पायलट रास्ता भटक गए और बीजेपी के हाथ का मोहरा बनकर बगावत करके सरकार गिराने की कोशिश में मानेसर जाकर बैठ गए। गहलोत ने बड़ी कोशिशों से सरकार बचा ली और पायलट व बीजेपी की साजिश को सफल नहीं होने दिया। यह सन 2020 की बात है, उस बगावत के बाद से ही पायलट सभी को खटकते रहे हैं, खासकर गहलोत को। अब राहुल के जरिए पायलट की यह दूसरी कोशिश भी नाकाम होती लग रही है। इसीलिए पायलट समर्थक गहलोत पर विधायकों को भड़काने व बगावत के आरोप लगा रहे हैं, लेकिन कांग्रेस के प्रति गहलोत की निष्ठा, समर्पण व ईमानदारी पर शक करने को राजस्थान में तो किसी राजनीतिक पाप की तरह ही देखा जाता है। वैसे, राजनीति में कब क्या हो जाए, कोई नहीं कह सकता, लेकिन जाता घटनाक्रम से अब यह लगभग तय माना जा रहा है आगे भले ही कुछ भी हो, लेकिन राजस्थान में पायलट की राजनीतिक राह आसान नहीं है।
हालांकि, बीजेपी ने भले ही राजस्थान के बहाने राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा पर तंज कसकर मजे लेने की कोशिश की हो, लेकिन पायलट के खिलाफ कांग्रेस विधायकों की इतनी बड़ी बगावत का साफ संदेश बीजेपी के लिए भी है कि आलाकमान चाहे कितना भी ताकतवर हो, बहुसंख्यक विधायकों की भावना को दरकिनार करके किसी को भी मुख्यमंत्री थोपना किसी के लिए भी आसान नहीं है। विधायक सारे मिलकर अगर अपनी पर उतर आएं, तो कोई कर भी क्या लेगा। संभव है राजस्थान में भी वसुंधरा राजे के समर्थक आगे यही रास्ता अपनाएं, इसलिए बीजेपी को भी बहुत बच के चलना होगा। इसके बावजूद, बीजेपी के कांग्रेस पर कसे गए तंज में दम बहुत है कि राहुल गांधी को पहले राजस्थान में कांग्रेस को जोड़ना चाहिए, भारत तो जुड़ता रहेगा, और राहुल यह भी सोचें कि पायलट जैसे पार्टी को दगा देनेवाले लोगों पर विश्वास जताने के लिए गहलोत जैसे नेताओं के समर्पण को दरकिनार करने से भी कांग्रेस को क्या मिलेगा। इस सबके बीच, राहुल गांधी ने अगर अपने पायलट प्रेम पर अपना स्टैंड नहीं बदला, तो राजस्थान में कांग्रेस की राजनीतिक नौटंकी अभी और चलती रहेगा, देखते रहिए।