- भगवती सूत्राधारित के माध्यम से आचार्यश्री ने जीवन को सार्थक बनाने का दिया मंत्र
- कालूगणी की धरा पर ‘कालूयशोविलास’ का आख्यान क्रम भी रहा जारी
18.09.2022, रविवार, छापर, चूरू (राजस्थान)। 74 वर्ष के बाद छापर की धरा तेरापंथ धर्मसंघ के आचार्य क चतुर्मास मानों इस रेगिस्तान में रहने वाले लोगों के जीवन को आध्यात्मिकता से आच्छादित करने के लिए हो रहा है। जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें अनुशास्ता, युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी छापर की धरा से भगवती सूत्र आगम के माध्यम से लोगों प्रतिदिन नवीन सूत्र प्रदान कर रहे हैं, जिसके माध्यम से लोग अपने जीवन को अच्छा बना सकते हैं।
रविवार को मुख्य प्रवचन कार्यक्रम में आचार्यश्री के मंगल प्रवचन से पूर्व उपस्थित जनता को साध्वीप्रमुखा साध्वी विश्रुतविभाजी व साध्वीवर्या साध्वी सम्बुद्धयशाजी ने उद्बोधित किया। तदुपरान्त तेरापंथ धर्मसंघ के वर्तमान देदीप्यमान महासूर्य आचार्यश्री महाश्रमणजी ने आचार्य कालू महाश्रमण समवसरण में उपस्थित जनता को भगवती सूत्र आगम के माध्यम से मंगल प्रेरणा प्रदान करते हुए कहा कि भगवती सूत्र में एक प्रश्न किया गया कि ओदन, उल्मास और सुरा है, ये किन जीवों का शरीर इन्हें कहा जाए? उत्तर दिया गया है कि इनमें जो सघन द्रव्य हैं वे पूर्व पर्याय प्रज्ञापन की अपेक्षा से वनस्पति जीवों के शरीर हैं। जो कुछ भी हमारे दिखाई देता है, वह या तो जीवित शरीर हैं या जीव मुक्त शरीर हैं। चावल प्रथम तो पूर्व पर्याय प्रज्ञापन की अपेक्षा से वनस्पति जीवों का शरीर होता है, किन्तु अग्नि के माध्यम से उसे पका देने से उन्हें वर्तमान में अग्नि जीवों का शरीर कहा जा सकता है। इसी प्रकार सोना, लोहा, रांगा, शीशा पूर्व पर्याय प्रज्ञापन से पृथ्वी जीव के शरीर बाद में अग्नि से शोधित होकर अग्नि जीव के शरीर हो जाते हैं। हड्डी, नख व बाल आदि पूर्व पर्याय प्रज्ञापन से त्रसजीव और बाद में अग्नि से शोधित हो जाने के बाद अग्नि जीव के शरीर हो जाते हैं।
पदार्थ में परिवर्तन होता है। पर्याय का परिवर्तन मानों सृष्टि का नियम है। इसी प्रकार आदमी के जीवन में भी परिवर्तन होता है। एक मानव कभी शिशु, बाल्यावस्था, किशोर, युवा, प्रौढ़ और फिर वृद्धावस्था को प्राप्त करता है। मूलतः इसे बचपन, जवानी और बुढ़ापा भी कहा जा सकता है। आदमी को अपने जीवन को सजगता के साथ जीने का प्रयास करना चाहिए। जिस प्रकार शरीर में परिवर्तन होता है, उसी प्रकार आदमी को अपने जीवनशैली में भी परिवर्तन करने का प्रयास करना चाहिए। इस हिसाब से जीवनशैली में परिवर्तन करने वाला आदमी अपने जीवन को अच्छा बना सकता है। एक 15 वर्षीय बालक के शरीर की जो स्थिति होती है, वह 82 वर्ष की अवस्था में नहीं हो सकती। आदमी गतिशील रहे, किन्तु उसके साथ-साथ सावधानी रखने का भी प्रयास करे। साधना जीवन का अंग है। जैसे-जैसे शरीर में परिवर्तन होता जाए, आदमी को अपने जीवनशैली को मोड़ देने का प्रयास करना चाहिए। युवावस्था में खूब कार्य किया, अपने ढंग चलाया, अब वृद्धावस्था में जितना संभव हो सके हस्तक्षेप कम हो, बोलना भी कम हो। यदि सेवा ले रहे हों तो कभी विलम्ब भी हो जाए तो शांति रखने का प्रयास करना चाहिए। धृति और धैर्य तो आदमी को जीवन पर्यन्त रखने का प्रयास करना चाहिए। हां धैर्य कहां और कितना रखना, इसका भी विवेक होना आवश्यक है। कहां बिना मांगे सलाह दी जाए और कहां न दी जाए, इसका ध्यान रखने का प्रयास करना चाहिए। इस प्रकार आदमी शरीर में परिवर्तन के हिसाब से जीवनशैली में परिवर्तन कर सामंजस्य बनाए तो जीवन अच्छा हो सकता है।
आचार्यश्री ने कालूयशोविलास के आख्यान क्रम को आगे बढ़ाते हुए कालूगणी के लाडनूं पधारने और बालक तुलसी के दर्शन करने और अपने माता से वार्तालाप के प्रसंगों का वर्णन किया। समणी नियोजिका समणी अमलप्रज्ञाजी व समणी जिज्ञासाप्रज्ञाजी ने अपनी आस्थासिक्त अभिव्यक्ति दी। आचार्यश्री ने उन्हें पावन प्रेरणा प्रदान की।