- ढाई अक्षर ध्यान का पढे सो पंडित होयः मुनि रमेश कुमार
टिटिलागढ (ओडिशा)। सन्त कबीर ने कहा- ‘ढाई अक्षर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय’। हम इसे इस प्रकार भी कह सकते हैं- ‘ढाई अक्षर ध्यान का, पढ़े सो पंडित होय’। प्रेम और ध्यान दोनों में समान अक्षर हैं। समान मात्राएं हैं। पढ़ने का अभिप्राय यहां शब्द के उच्चारण से नहीं। शब्दों के उच्चारण से न प्रेम पढ़ा जाता है और न ध्यान पढ़ा जाता है। ‘पढ़ने’ शब्द को कबीर ने यहां गहरे अर्थ में प्रयुक्त किया है। इसका अभिप्राय है-प्रेम शब्द जीवन-व्यवहार में मूर्तिमान् हो। वह व्यक्ति के कण-कण में जीवंत हो उठे। प्रेम को पढ़ना है वैसे ध्यान को भी पढ़ना है। ध्यान और प्रेम दो दिखाई देते हैं, किंतु दो नहीं है। दोनों परस्पर संवलित हैं। उपरोक्त विचार प्रेक्षा ध्यान साधना शिविर में शिविरार्थियों को संबोधित करते हुए व्यक्त किये।
मुनि रमेश कुमार ने आगे कहा- आज का युग ध्यान का युग है। सम्पूर्ण विश्व का झुकाव ध्यान की ओर हो रहा है। इसका कारण है तनाव। मनुष्य का मन इतना उद्वेलित हो गया है कि वह एक क्षण भी शान्त नहीं रहता। बहुमुखी प्रवृत्तियों में वह इतना उलझ गया है कि उसे निकलने का मार्ग नहीं मिल रहा है। प्रवृत्तियों का जाल मनुष्य को शांत/सुस्थिर बैठने नहीं देता। सतत मानसिक चिंतन का दौर चलता रहता है। मन इस नैरन्तरिक चिंतन के बोझ को ढोने में कहां सक्षम है ? फलतः इसे तनाव का शिकार होना पड़ता है। मानसिक तनाव शारीरिक तनाव को जन्म देता है। तनाव से मनुष्य रुग्ण बनता है। अनेक प्रकार की व्याधियां तनाव की देन हैं। तनाव का फैलाव पूरे जगत् में है। कोई भी राष्ट्र इसकी चपेट से मुक्त नहीं है। तनाव बढ़ा है तो तनाव मुक्ति की खोज भी चल रही है। उन खोजों में एक खोज है ध्यान योग की। प्रेक्षा ध्यान की साधना से शारीरिक मानसिक और भावनात्मक तनावों से मुक्ति पाई जा सकती है।
उपासक एवं प्रेक्षा प्रशिक्षक सुरेन्द्र जी सेठिया ने आज प्रेक्षा प्रशिक्षण देते हुए- सूक्ष्म यौगिक क्रियाओं के प्रकार और लाभ बतायें। प्रेक्षा ध्यान और आसन- प्राणायाम की विधि समझाते हुए प्रयोग कराए।