कोटा। साध्वी श्री अणिमाश्रीजी के सान्निध्य में अनुव्रत भवन में आचार्य भिक्षु का २२०वां चरमोत्सव श्रद्धालु श्रावक-श्राविकाओं की उपस्थिति में मनाया गया।
साध्वी श्री अणिमाश्री जी ने अपने प्रेरणादायी उद्बोधन में कहा- आचार्य भिक्षु सत्य के पुजारी थे।उनका जीवन सत्य को समर्पित था। उनका संकल्प था सत्य की खोज। वो सत्य बनकर रहे, सत्य बनकर जीए। सत्य से साक्षात्कार करने के लिए उन्होंने अथाह आगमज्ञान के आधार पर एक धर्मक्रान्ति की। उसी धर्मक्रान्ति की निष्पति है- तेरापंथ। तेरापंथ रुपी नन्हें से बीज को फलवान बनाने के लिए उन्होंने मुसीबतों का सामना किया। तकलीफों और बाधाओं को हंसते हंसते गले लगाया। विरोध के तुफानों ने उनके ने उनके मार्ग में अवरोध पैदा किए पर वो रुके नहीं झुके नहीं आगे बढ़ते रहे।
आज आचार्य भिक्षु का तेरापंथ वटवृस बनकर सबको शीतल छाया प्रदान कर रहा है।आचार्य भिक्षु ने चमालीस वर्ष तक इस वृक्ष को सींचा और आज के दिन गणमाली भिक्षु का २२० वर्ष पूर्व महाप्रयाण हो गया। उनके चरमोत्सव पर उनको शत-शत नमन ।
साध्वी कणिका श्री जी ने कहा सिंह स्वप्न के साथ अवतरित होने वाले भिक्षु जीवन भर सिंह की तरह गूंजते रहे ।
साध्वी डॉ.सुधाप्रभा जी ने मंच संचालन करते हुए कहा, पौरुष और पराक्रम के पर्याय चे आचार्य भिक्षु विद्योगात्मक सोच के शिखर पुरुष थे आचार्य भिक्षु जिनवाणी के परम भक्त थे – आचार्य भिक्षु।
साध्वी समत्वमशाजी ने सुमधुर गीत का संगान किया।
साध्वी मैत्रीप्रभा जी ने भिक्षु अष्टकम से मंगल संगान किया। उपासिका श्रीमती नेमकंवर जीरावला ने भावाभिव्यक्ति दी।
महिला मंडल ने एक स्वर में भावपूर्ण गीत की प्रस्तुति दी।
- सौरव दस्साणी, मीडिया प्रभारी,कोटा