- ज्ञानशाला दिवस पर आचार्यश्री ने ज्ञानशाला और ज्ञानार्थियों की संख्या बढ़ाने की दी प्रेरणा
- राजा हो या रंक सभी को भोगने होते हैं अपने-अपने कर्म: शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमण
- छापर, सुजानगढ़, लाडनूं, बीदासर व राजलदेसर के ज्ञानार्थियों ने दी अपनी प्रस्तुति
- लोकतंत्र की अच्छाई कि सामान्य व्यक्ति भी बन सकता है देश का प्रथम नागरिक
14.08.2022, रविवार, छापर, चूरू (राजस्थान)। भाद्रव महीने के पहले रविवार को जैन श्वेताम्बर तेरापंथ परंपरा में ज्ञानशाला दिवस के रूप में बनाया जाता है। संयोग से इस बार का पहला रविवार 14 अगस्त को पड़ा, जिस जैन श्वेताम्बर तेरापंथी महासभा के तत्त्वावधान में त्रिदिवसीय तेरापंथी सभा प्रतिनिधि सम्मेलन का मध्य दिन भी था। इस मौके पर छापर चतुर्मास प्रवास स्थल परिसर में बने आचार्य कालू महाश्रमण समवसरण में आचार्यश्री महाश्रमणजी की मंगल सन्निधि में छापर, लाडनूं, सुजानगढ़, बीदासर व राजलदेसर के ज्ञानार्थियों ने उपस्थित होकर अपनी भावपूर्ण प्रस्तुति दी तो नन्हें बाल पीढ़ी को आचार्यश्री ने पावन आशीर्वाद प्रदान करते हुए लोगों को अपनी इस भावी पीढ़ी को सुसंस्कारित बनाने की मंगल प्रेरणा भी प्रदान की।
रविवार को प्रातः आचार्य कालू महाश्रमण समवसरण तेरापंथी सभा प्रतिनिधि सम्मेलन में पहुंचे प्रतिनिधियों और ज्ञानशाला दिवस के संदर्भ में आसपास के क्षेत्रों से पहुंचे ज्ञानार्थियों के कारण पूरी तरह जनाकीर्ण बन गया था। आचार्यश्री ने उपस्थित जनता को भगवती सूत्र के माध्यम से पावन प्रेरणा प्रदान करते हुए कहा कि पाप किसी का बाप नहीं होता है। पाप अथवा पुण्य का फल तो सभी को भोगना होता है। कर्मबंध और धर्म के क्षेत्र में धन के आधार पर कोई भेदभाव नहीं होता। इसमें जिस कर्म के लिए राजा का जो दण्ड मिलता है, वहीं दण्ड एक सामान्य व्यक्ति को भी मिलता है। कर्मफल के भोगने में न कोई राजा होता है और न कोई रंग। जो जैसा करता है, वैसा ही उसका फल भी भोगना होता है। हां, इस संसारी अवस्था में लोकतंत्र अथवा राजतंत्र में कभी दोषी बच जाता है और कभी निर्दोष को भी दण्ड मिल जाता है। इस न्यायालय से कोई भले झूठ बोलकर बच जाता है, किन्तु कर्म फल के विधान में बराबर फल मिलता है।
आचार्यश्री ने आगे कहा कि 15 अगस्त का समय आ गया है। यह भारत की स्वतंत्रता से जुड़ा हुआ है। स्वतंत्रता की अभिव्यक्ति हो। यह लोकतंत्र की अच्छाई है कि कोई सामान्य व्यक्ति भी देश प्रथम नागरिक अर्थात् राष्ट्रपति बन सकता है और एक चायवाला भी प्रधानमंत्री बन सकता है। विधायिका जो नियम बनाती है और न्यायपालिका जो उन नियमों के आधार पर अनुशासन का प्रयास करती है।
आचार्यश्री ने कालूयशोविलास आख्यान के उपरान्त ज्ञानशाला दिवस के संदर्भ में विशेष प्रेरणा प्रदान करते हुए कहा कि आदमी के जीवन में ज्ञान का बहुत महत्त्व है। दुनिया में शिक्षण संस्थानों के द्वारा ज्ञान का अदान-प्रदान किया जाता है। यह शिक्षा भी जीवन में आवश्यक है तो आध्यात्मिक, धार्मिक ज्ञान भी जीवन को पूर्णतया परिपुष्ट बनाने में सहायक होते हैं। परम पूज्य आचार्यश्री तुलसी के समय आरम्भ हुआ ज्ञानशाला का क्रम जैन श्वेताम्बर तेरापंथ परंपरा में अभी भी संचालित है। बच्चों में अच्छे ज्ञान के साथ अच्छे संस्कार आ जाएं तो मानना चाहिए कि भावी पीढ़ी सुरक्षित हो जाती है और उनके आगे का जीवन भी अच्छा हो सकता है। यह बहुत बड़ा नेटवर्क है। महासभा के तत्त्वावधान में क्षेत्रों में तेरापंथी सभा व उपसभाओं द्वारा ज्ञानशाला का उपक्रम चलाया जाता है। इसमें बच्चों को संस्कारित करने के लिए कितने-कितने लोग श्रम लगाते हैं। जितना संभव हो सके ज्ञानशाला की संख्या के साथ ज्ञानशाला में ज्ञानार्थियों की संख्या भी बढ़ती रहे, ताकि भावी पीढ़ी सुसंस्कृत बन सके।
कार्यक्रम में ज्ञानशाला के ज्ञानार्थियों व तेरापंथी सभा प्रतिनिधि सम्मेलन के संभागी प्रतिनिधियों को साध्वीप्रमुखा विश्रुतविभाजी का मंगल उद्बोधन प्राप्त हुआ।
तदुपरान्त महासभा के अध्यक्ष श्री मनसुखलाल सेठिया व ज्ञानशाला के राष्ट्रीय संयोजक श्री सोहनराज चोपड़ा ने अपनी भावाभिव्यक्ति दी। छापर ज्ञानशाला, बीदासर ज्ञानशाला, सुजानगढ़ ज्ञानशाला, लाडनूं ज्ञानशाला व राजलदेसर ज्ञानशाला के ज्ञानार्थियों ने अपनी भावपूर्ण प्रस्तुति दी।