- मासखमण और धर्मचक्र दृढ़ मनोबल से संभव हैः साध्वी निर्वाणश्रीजी
मुंबई। महातपस्वी आचार्य श्री महाश्रमण जी की विदुषी सुशिष्या साध्वीश्री निर्वाणश्रीजी के पावन सान्निध्य में तीन मासखमण एवं दो धर्मचक्र तप का अनुमोदन प्रमोदभाव सह किया गया। उपस्थित तपस्वी बहनों को संबोधित करते हुए विदुषी साध्वीश्री निर्वाण श्री जी ने कहा— शांत सुधारस काव्य में तप की महिमा का गान करते हुए उसे निविड कर्मों को काटने का श्रेष्ठ माध्यम बताया है। तपश्चर्या से निकाचित कर्मों को तोड़ा जा सकता है। तप के साथ पारणे में भी संयम रखना अपेक्षित है।
साध्वी डा. योगक्षेमप्रभाजी ने अपने प्रेरक वक्तव्य में कहा— जिनशासन में करण-योग का महत्त्व है। जिस कार्य को करने में धर्म है, उसे करवाने तथा अनुमोदन में भी धर्म है। तप अनुमोदन करके सब कर्म निर्जरा करे यह काम्य है। साध्वी मधुरप्रभाजी ने साध्वी प्रमुखाश्रीजी के संदेश का वाचन किया। साध्वी लावण्यप्रभाजी, साध्वी कुंदनयशाजी व साध्वी मधुरप्रभाजी ने ‘मासखमण का तप मनहारी’ गीत की सुंदर प्रस्तुति दी।
STMF के ‘सहमंत्री’ प्रकाशजी धाकड़, तेममं मुंबई की अध्यक्ष रचना हिरण, अभातेममं की पूर्व महामंत्री तरुणा बोहरा, कांदिवली महिला मंडल की तरफ से रेखा संचेती दिशा परमार, किंजल खिंवेसरा, वैशाली सूर्या तथा परिजनों ने वक्तव्य, गीत आदि से तप अनुमोदना की।
इस अवसर पर बाबूलालजी सूर्या व प्रकाशजी खिंवेसरा ने तपोपहार भेंट किया। तप अभिनंदन-पत्र का वाचन सभा के उपाध्यक्ष गजेन्द्र बाफना ने किया। झंकार तलेसरा, सविता बोहरा, मंजु चोरडिया, पारुल चोरडिया, चंदा बोहरा, सेजल तलेसरा ने तेले के द्वारा तप की अनुमोदना की। इन पांच तपस्वियों के नाम इस प्रकार हैं – १) संतोक देवी मेहता (मासखमण), २) मंजुला तलेसरा (मासखमण), ३) तनु सुराणा (मासखमण), ४) लीला सूर्या (धर्मचक्र तप), ५) लीला खिंवेसरा (धर्मचक्र तप)।