- आचार्यश्री ने पापकर्मों का विरमण कर आत्मा को हल्का बनाने की दी पावन प्रेरणा
- तेरापंथ कन्या मण्डल के 18वें अधिवेशन में संभागियों को मिला आचार्यश्री से पाथेय
- साध्वीप्रमुखाजी ने भी कन्याओं को किया अभिप्रेरित, कन्याओं ने दी अपनी प्रस्तुति
08.08.2022, सोमवार, छापर, चूरू (राजस्थान)। 74 वर्षों बाद छापर की धरा को वर्ष 2022 में जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें अनुशास्ता, अखण्ड परिव्राजक, सिद्ध साधक, महातपस्वी आचार्यश्री महाश्रमणजी का पावन चतुर्मास प्राप्त हुआ है। यह सौभाग्य प्राप्त कर यहां का जन-जन आह्लादित है। चतुर्मासकाल के दौरान तेरापंथ धर्मसंघ के विभिन्न संस्थाओं के सम्मेलन, सेमिनार, शिविर आदि का कार्यक्रम भी आयोजित हो रहे हैं। सोमवार को छापर चतुर्मास प्रवास स्थल परिसर में बने भव्य प्रवचन पंडाल में आचार्यश्री महाश्रमणजी ने उपस्थित श्रद्धालुओं को भगवती सूत्र के आधार पर पावन प्रेरणा प्रदान की। कालूयशोविलास के आख्यान का क्रम भी जारी रहा। वहीं अखिल भारतीय तेरापंथ महिला मण्डल के तत्त्वावधान में तेरापंथ कन्या मण्डल के 18वें अधिवेशन के अंतिम दिन कार्यक्रम में उपस्थित कन्याओं को आचार्यश्री ने पावन प्रतिबोध प्रदान किया।
सोमवार को प्रातःकालीन मुख्य प्रवचन कार्यक्रम के दौरान तेरापंथ धर्मसंघ के वर्तमान अनुशास्ता आचार्यश्री महाश्रमणजी ने भगवती सूत्र के आधार पर उपस्थित जनता को मंगल संबोध प्रदान करते हुए कहा कि प्राणी या जीव गुरुता (भारीपन) को कैसे प्राप्त होते हैं? उत्तर दिया गया कि जीव प्राणातिपात आदि अठारह पाप क्रियाओं से गुरुता को प्राप्त होता है। हलांकि यह नहीं होता कि पापकर्मों से बंधी हुई आत्मा का वजन किलो में आंका जाए, किन्तु जैसे बताया गया है कि भारी नीचे जाती है और हल्की चीज ऊपर उठ जाती है। उसी प्रकार अठारह पाप क्रियाओं से बंधी हुई आत्मा भारी होती है और वह नीचे अर्थात् अधोगति में जाती है। हिंसा, मृषावाद, राग, द्वेष, चोरी, मैथुन, मान, माया लोभ आदि 18 पापों का आसेवन करने वाली आत्मा भारी होकर अधोगति की दिशा में गमन करती है। इसी प्रकार प्रश्न पूछा गया कि जीव लघुता को कैसे प्राप्त करते हैं? उत्तर दिया गया कि अठारह पाप क्रियाओं से विरमण करने वाला जीव लघुता को प्राप्त होता है और उसकी आत्मा ऊर्ध्वगामी बनती है।
इन्हीं अठारह पाप कर्मों के कारण प्राणी इस संसार में जन्म-मृत्यु के चक्र में फंसा रहता है। गृहस्थ भी यदि इस जन्म-मृत्यु के चक्र से मुक्त होना चाहें तो इन 18 पाप कर्मों को यथासंभव कम करने का प्रयास करना चाहिए। पूर्णतया त्याग न हो सके तो उनका अल्पीकरण करने का प्रयास हो। आदमी की अवस्था जैसे-जैसे आसगे बढ़े आदमी को त्याग, तपस्या की दिशा में आगे बढ़ने का प्रयास करना चाहिए। जीवन में त्याग, संयम, साधना और तपस्या का विकास हो तो आत्मा हल्की हो सकेगी और ऊर्ध्वगति को प्राप्त कर सकती है। अणुव्रतों के पालन से भी पाप क्रियाओं से बचने का प्रयास किया जा सकता है।
आचार्यश्री ने मंगल प्रवचन के उपरान्त कालूयशोविलास को व्याख्यायित किया। तदुपरान्त समणी जिज्ञासाप्रज्ञाजी ने अपनी भावाभिव्यक्ति दी तथा समणी कुसुमप्रज्ञाजी ने गीत का संगान किया। अखिल भारतीय तेरापंथ महिला मण्डल के तत्त्वावधान में अखिल भारतीय तेरापंथ कन्या मण्डल के त्रिदिवसीय 18वें अधिवेशन के संदर्भ में पूज्य सन्निधि में उपस्थित कन्याओं ने आचार्यश्री के समक्ष अपनी भावपूर्ण प्रस्तुति दी। अखिल भारतीय तेरापंथ महिला मण्डल की अध्यक्ष श्रीमती नीलम सेठिया व कन्या मण्डल प्रभारी श्रीमती अर्चना भण्डारी ने अपनी भावाभिव्यक्ति दी। कन्याओं को साध्वीप्रमुखा विश्रुतविभाजी ने उद्बोधित किया।
आचार्यश्री ने समुपस्थित संभागी कन्याओं को पावन प्रेरणा प्रदान करते हुए कहा कि आधुनिक युग में कन्याओं मंे इतना विकास हो रहा है। कन्याएं ज्ञान विकास का प्रयास करें। अधिवेशन अच्छी प्रेरणा और पथदर्शन देने वाला बने। ज्ञान के साथ-साथ अच्छे संस्कार भी जीवन में बढ़ें, शनिवार की सामायिक आदि होती रहे। आचार्यश्री से आशीर्वाद प्राप्त कर देश के विभिन्न हिस्सों से उपस्थित कन्याएं प्रफुल्लित नजर आ रही थीं। श्रीमती रेखा खांटेड़ ने 29 की तपस्या का प्रत्याख्यान किया।