- गर्भावस्था व उसके बाद भी बच्चों को अच्छे संस्कार देने को आचार्यश्री ने किया अभिप्रेरित
- अनेक दीक्षा, चतुर्मास आदि के प्रसंगों को आचार्यश्री ने किया रोचक वर्णन
- 8 दिसम्बर 2022 सिरियारी में को होगी मुमुक्षु दक्ष नखत की दीक्षा, आचार्यश्री ने की घोषणा
04.08.2022, गुरुवार, छापर, चूरू (राजस्थान)। जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के एकादशमाधिशास्ता, अध्यात्म जगत के महासूर्य, अहिंसा यात्रा के प्रणेता युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी के श्रीमुख से नियमित प्रवाहित होने वाली ज्ञानगंगा श्रद्धालुओं को आध्यात्मिक ही जीवनोपयोगी और वैज्ञानिक ज्ञानों से ओतप्रोत बना रही है। साथ ही तेरापंथ के अष्टमाचार्य की जन्मभूमि पर उनके जीवनवृत्त का स्थानीय भाषा में आख्यान लोगों को मंत्रमुग्ध बना रहा है। मुख्य प्रवचन कार्यक्रम के दौरान आचार्यश्री मंगल प्रवचन के साथ ही छापर की धरा पर छापर के लाल के जीवनवृत्त का जब स्थानीय भाषा में आख्यान करते हैं तो छापरवासी ही नहीं, सम्पूर्ण श्रद्धालु भावविभोर हो जाते हैं।
गुरुवार को चतुर्मास प्रवास स्थल परिसर में बने भव्य पण्डाल में उपस्थित जनमेदिनी को शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी ने भगवती सूत्र के आधार पर पावन संबोध प्रदान करते हुए कहा कि प्रश्न किया गया कि यदि कोई जीव गर्भस्थकाल में ही मृत्यु को प्राप्त हो जाए तो क्या वह नरक गति में जा सकता है? उत्तर दिया गया हां! कोई जीव नरक गति में जा भी सकता है और नहीं भी जा सकता है। प्रतिप्रश्न किया गया कि ऐसा क्यों? उत्तर दिया गया कि यदि गर्भस्थ जीव को यह जानकारी मिलती है कि कोई शत्रु सेना आ रही है तो उसके वैक्रिय लब्धि और वीर्य लब्धि के कारण वह अपने आत्मप्रदेशों को गर्भ से बाहर निकालता है और भाव के द्वारा सेना का निर्माण करता है, युद्ध करता है। वह ऐसे भावों में इतना गहरा चला जाता है कि वह गर्भस्थकाल में भी यदि मृत्यु को प्राप्त हो जाए तो वह नरक गति में पैदा हो सकता है। पुनः प्रश्न किया गया कि कोई गर्भस्थ देवलगति का भी वरण कर सकता है क्या? उत्तर दिया गया कि हां, कोई जीव देवगति को भी प्राप्त कर सकता है। जैसे कोई गर्भस्थ मां किसी संत का प्रवचन सुनने चली गई या कोई आध्यात्मिक बातें का श्रवण, मनन, या पाठन करने लगी तो गर्भस्थ जीव उसे सुनकर धार्मिक भावों अर्थात् शुभ भावों से ओतप्रोत हो जाता है और ऐसी स्थिति में उसकी गर्भावस्था में मृत्यु हो जाती है तो वह देवगति में जा सकता है।
वैज्ञानिक शोध में भी ऐसा बताया गया कि गर्भस्थ शिशु गीतों को सुन लेता है। जन्म के बाद उसे पहचान भी लेता है। वह सपना भी देखता है और नाचता भी है। यह वैज्ञानिक शोध में भी कहा गया है। गर्भकाल में भी यदि किसी जीव में धर्म के प्रति श्रद्धा हो जाए तो उसे देवलोक की प्राप्ति हो सकती है। गर्भस्थ शिशु के तीन अंग माता से और तीन अंग पिता से प्राप्त होता है। गर्भ से ही शिशु को अच्छे संस्कार देने का प्रयास किया जाए तो उनका भविष्य अच्छा हो सकता है। गर्भावस्था में मां को चाहिए कि अच्छे संस्कारों का प्रयोग करे। धार्मिक गीत, संतों के प्रवचन आदि के श्रवण का प्रयास करे तो भावी पीढ़ी में अच्छे संस्कार उत्पन्न हो सकते हैं।
जन्म के बाद भी बालपीढ़ी को संस्कारी बनाने के लिए ज्ञानशाला का संचालन किया जाता है। इस प्रकार शिशु को गर्भावस्था से लेकर जन्म के बाद भी अच्छे संस्कारों को देने का प्रयास हो तो भावी पीढ़ी का भविष्य अच्छा बन सकता है।
आचार्यश्री ने मुख्य प्रवचन के उपरान्त कालूयशोविलास में वर्णित आचार्य कालूगणी के आचार्यकाल के दौरान विभिन्न क्षेत्रों में विहार, चतुर्मास, मर्यादा महोत्सव के कार्यक्रम, इस दौरान जगह-जगह साधु-साध्वियों की दीक्षा, उनमें भी मुनिश्री हेमराजी जैसे ज्ञानी संत और दीर्घ तपस्विनी साध्वियों की संघ में उपस्थिति आदि के प्रसंगों को आचार्यश्री ने राजस्थानी भाषा में रोचक वर्णन किया। तेरापंथ महिला मण्डल-छापर तपस्या से संदर्भित कमल पुष्प की आकृति समर्पित की। इस संदर्भ में स्थानीय तेरापंथ महिला मण्डल की प्रचार-प्रसार मंत्री श्रीमती शांति दुधोड़िया ने अपनी भावाभिव्यक्ति दी। आचार्यश्री ने पावन आशीर्वाद प्रदान किया। मुमुक्षु मनीषा ने आचार्यश्री से 23 की तपस्या का प्रत्याख्यान किया। आचार्यश्री ने छापर चतुर्मास के उपरान्त आचार्य भिक्षु समाधिस्थल सिरियारी जाने व वहां दीक्षा समारोह करने की घोषणा करते हुए उस दीक्षा समारोह में मुमुक्षु दक्ष नखत को साधु दीक्षा प्रदान करने की घोषणा की।