वसई। आचार्य श्री महाश्रमणजी की विदुषी शिष्या साध्वी श्री प्रज्ञाश्री आदि ठाणा 4 का चातुर्मास चल रहा है। साध्वी श्रीजी ने फ़रमाया मोक्ष के चार मार्ग हैं ज्ञान,दर्शन,चारित्र,और तप इनके साथ जब तक सम्यक् नहीं लग जाता ये चारों ही अर्थ हीन हो जाते हैं। सम्यक्त्व वह रत्न है जो एक बार हाथ लग जाए तो वह जीव निश्चित मुक्ति को प्राप्त करता है।
आपने कहा अभी श्रावण और भाद्रपद ये दो महीने तप के अनुकूल हैं तो ज़्यादा से ज़्यादा भाई बहन तप के मार्ग को अपनाएँ। आपकी प्रेरणा से वसई में एक मासखमण पूरा हो चुका , दो पखवाड़े, दो नौ , छः कण्ठी तप और दो पचरंगी पूरी हो गईं। पचरंगी में 16 पंचोले, 12 चोले, 21 तेले , 21 बेला , और 34 उपवास हुए। मुंबई नगरी का पहला मासखमण का सौभाग्य भी वसई को मिला, साध्वीश्री तप की प्रेरणा निरंतर दे रहे हैं जिससे दो मासखमण , छः कण्ठी तप और अठाइयाँ गतिमान हैं।
वसई में लगा चातुर्मास का ठाट
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