महाराष्ट्र की राजनीति में बदलते हुए घटनाक्रम ने पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस को उप-मुख्यमंत्री के पद पर खड़ा कर दिया। राजनीति में होने वाले उतार-चढ़ाव की यह सबसे बड़ी बानगी है, कि पन्दह मिनट पहले जिस व्यक्ति ने उपमुख्यमंत्री का पदभार संभालने से मना किया एवं सरकार में शामिल होने के बजाय बाहर से अपना समर्थन देने का की घोषणा की। वह सिर्फ और सिर्फ केंद्र के निर्देश पर महाराष्ट्र राज्य के उप मुख्यमंत्री के पद पर आसीन होने के लिए तैयार हो गया। शायद यह देवेंद्र फडणवीस के जीवन का मुश्किल फैसला रहा होगा कि जो पद वह व्यक्तिगत रूप से नहीं पसंद कर पा रहे थे, उसे केंद्र का आदेश मानकर स्वीकार करना पड़ा। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह देवेंद्र फडणवीस की गरिमा को ठेस पहुंचाने वाला कदम है। जिसका विरोध वे तेजी से बदलते हुए घटनाक्रम में नहीं कर पाए।
तेजी से बदलते हुए घटनाक्रम ने सभी राजनीतिक विश्लेषकों एवं राजनीतिक पंडितों के कयासों को गलत साबित कर दिया। किसी ने भी सपने में भी नहीं सोचा था कि देवेंद्र फडणवीस इस तरह से सरकार के मंत्रिमंडल में दूसरे नंबर का पद स्वीकार करेंगे। महाराष्ट्र की राजनीति में कल का दिन सरप्राइस का दिन माना जा सकता है। उद्धव ठाकरे की शिवसेना को भी इस बात का अंदाजा नहीं था कि महाराष्ट्र में मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे को बनाया जाएगा। वास्तव में खुद एकनाथ शिंदे को भी यह गुमान नहीं था कि उसे मुख्यमंत्री पद की कुर्सी प्रदान की जाएगी। सरकार के इस निर्णय ने सबको चकित कर दिया।
राजभवन के घटनाक्रम से एक बात तो स्पष्ट हो गई कि राजनीति में कुछ भी स्थाई नहीं होता। राजनीति में सभी बातों की संभावनाएं बनी रहती है। अतः जब तक कोई कार्य घटित ना हो जाए तब तक उसके बारे में कयास लगाना निरर्थक है। कल की घटना क्रम ने सारे राजनीतिक विश्लेषकों, पंडितों, विचारकों,की सोच के सारे गणित फेल कर दिए। शायद खुद देवेंद्र फडणवीस नहीं समझ पाए कि आगे के दस मिनट में क्या घटित होने वाला है? उन्होंने माइक पर आकर राजभवन में घोषणा की, कि आज सिर्फ एक ही व्यक्ति का शपथ ग्रहण समारोह होगा और वह भी मुख्यमंत्री के तौर पर एकनाथ शिंदे का। किंतु कुछ ही समय बाद आनन-फानन में स्टेज पर रखी गई दो कुर्सियों में एक कुर्सी का इजाफा किया गया।
देवेंद्र फडणवीस ने उप मुख्यमंत्री के पद की शपथ ली। देवेंद्र फडणवीस का उपमुख्यमंत्री बनना यह किसी के भी कल्पना के बाहर की चीज थी। कुछ लोगों का कहना है कि केंद्र का यह निर्णय 2024 के लोकसभा इलेक्शन को ध्यान में रखकर लिया गया, तो कुछ लोगों का कहना है कि देवेंद्र फडणवीस को उप मुख्यमंत्री बनाना यह उसने बढ़ते हुए राजनीतिक कद को छोटा करना है, कुछ लोगों का कहना है कि यह हमेशा से मोदीजी की नीति रही है कि लोगों को सरप्राइस देना। एकनाथ शिंदे ने भी मुझे मुख्यमंत्री बनाओ इस बात की कदापि ज़िद नहीं की होगी। किंतु यह पूर्ण रूप से केंद्र का ही एक तरफा निर्णय रहा कि एकनाथ शिंदे को मुख्यमंत्री बनाया जाए। न जाने केंद्र की इसमें क्या दूरगामी सोच है? जिसे महाराष्ट्र की जनता समझने में असमर्थ रही। जनता को आशा थी कि विधानसभा में सबसे बड़ी पार्टी भारतीय जनता पार्टी के मुखिया के रूप में देवेंद्र फडणवीस ही राज्य के मुख्यमंत्री बनेगें।
चूंकि राजनीति हमेशा संभावनाओं का खेल है और विशेष रूप से देेश के प्रधानमंत्री मोदी जनता को सरप्राइस देने के लिए प्रसिद्ध है। अतः यह निर्णय भी उसी श्रेणी में आता है। ऐसा माना जा सकता है। कुछ हद तक राजनीतिक स्थिरता के लिए देवेंद्र फडणवीस का सरकार से जुड़ा रहना एक अच्छी बात है। एकनाथ शिंदे को राज्य के दैनिक काम काज में आने वाले उतार-चढ़ाव के बारे में देवेंद्र फडणवीस का हमेशा साथ और सहकार रहेगा। अब देखना यह है कि देवेंद्र फडणवीस एवं एकनाथ शिंदे कितने समय तक सामंजस्य बनाकर रख पाते हैं। एकनाथ शिंदे का अब यह दायित्व बनता है कि वह महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री जरूर बने हैं, किंतु देवेंद्र फड़नीस को हमेशा बड़े भाई की भूमिका में देखें एवं राज्य के कल्याणकारी एवं अन्य विकास की योजनाओं के लिए उनसे सलाह मशवरा करें। तभी महाराष्ट्र में राजनीतिक स्थिरता बनी रह सकती है। एकनाथ शिंदे को भविष्य में उद्धव ठाकरे की शिवसेना से भी अपनी जंग जारी रखनी है। महाराष्ट्र के प्रशासन, आने वाले मुंबई महानगर पालिका के चुनाव, राज्य में चलने वाली कई विकास परियोजनाओं से जनता को बड़ी उम्मीदें है। अतः इन सभी में बड़ा सामंजस्य बिठाना होगा। उन्हें ज्यादा परिपक्वता को प्रदर्शित करते हुए राज्य का नेतृत्व करना होगा।
देवेंद्र फडणवीस का मुख्यमंत्री ना बनाना… लगा कयासों का अंबार
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