– लुणकरणसर वासियों पर कृपावृष्टि कर शांतिदूत का हुआ मंगल विहार
– पूज्यप्रवर ने दी ज्ञानयुक्त आचरण की प्रेरणा
25.05.2022, बुधवार, ढाणी भोपालाराम, बीकानेर (राजस्थान)।अपना जीवन मानवता के उत्थान के लिए समर्पित कर 53,000 किलोमीटर की पदयात्रा करने वाले अहिंसा यात्रा के प्रणेता पूज्य आचार्य श्री महाश्रमण जी ने आज प्रातः लूणकरणसर से मंगल प्रस्थान किया। बोथरा भवन से विहार कर आचार्यश्री तेरापंथ भवन पधारे एवं वहां वयोवृद्ध साध्वी श्री पानकुमारी जी (द्वितीय) को दर्शन प्रदान किए।तत्पश्चात श्रद्धालुओं की अर्ज पर कई स्थानों पर मंगल पाठ प्रदान करते हुए पूज्यप्रवर गंतव्य की ओर गतिमान हुए। अपने आराध्य को अपने आंगन में समक्ष पाकर श्रद्धालु श्रावक-श्राविका समाज धन्यता की अनुभूति कर रहा था। कई रुग्ण एवं वरिष्ठजनों को भी आचार्यप्रवर ने पावन आशीष प्रदान किया। आज का विहार लगभग 9 किलोमीटर का रहा।अपनी धवल सेना के साथ शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमण ढाणी भोपालाराम के राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय में पधारे। मार्ग में श्री कृष्ण गौशाला भी आचार्यश्री के चरणों से पावन बनी।
मंगल प्रवचन में शांतिदूत ने कहा – ज्ञान और आचार ये दोनों तत्व एक दुसरे से जुड़े हुए है। आचरण को सही रखने के लिए सही ज्ञान भी अपेक्षित है।ज्ञान विहीन आचरण है या आचरण विहीन ज्ञान ज्ञान है तो मानना चाहिए कि कुछ कमी है अगर सम्यक् ज्ञान होता है तो कार्य भी सही तरीके से हो सकता है। धर्म के क्षेत्र में भी सम्यक् ज्ञान होना बहुत जरूरी है। संयम की साधना करनी है तो जीव, अजीव, पुण्य, पाप आदि नौ तत्वों का ज्ञान भी होना चाहिए। लौकिक आध्यात्मिक हर जगह ज्ञान की उपयोगिता है।
अचार्यवर ने एक संस्कृत श्लोक की व्याख्या करते हुए आगे कहा कि ज्ञान का सार आचार है। जिस ज्ञान से वैराग्य बढ़े, जिससे व्यक्ति के भीतर मैत्री भाव उभरे, वह कल्याणकारी कार्य करे ऐसा ज्ञान सारभूत होता है। ज्ञान तो बहुत है। दुनिया में न जाने कितने कितने पुस्तकालय पुस्तकों से भरे पड़े है। हर कोई सब पढ़ भी न पाये किंतु जो उपयोगी, श्रेयस्कर हो उसे ग्रहण अवश्य करे। आज विभिन्न तरह की शिक्षाएं दी जाती है। कोई चाहे किसी भी क्षेत्र में हो राजनीति, सामाजिक, व्यापारिक, चिकित्सा सभी के साथ -साथ आध्यात्मिक ज्ञान भी रहे तो जीवन बढ़िया बन सकता है और कुछ बनने से व्यक्ति अच्छा इंसान बने यह जरूरी है।
कार्यक्रम में गुरुदेव की प्रेरणा से ग्रामवासियों ने अहिंसा, नशामुक्ति के संकल्पों को स्वीकार किया।
इस अवसर पर लुणकरणसर व्यवस्था समिति अध्यक्ष श्री हंसराज बरडिया, श्रेयांस बैद, ढाणी भोपालाराम के जगदीश जी ने अपने विचार रखे। तेयुप लुणकरणसर ने गीत का संगान किया। जैन विश्व भारती लाडनूं द्वारा “शासन श्री” मुनि सुखलाल जी की नवीन कृति ‘चिंतन महावीर का’ एवं ‘सच्चे बच्चे’ पूज्यचरणों में उपह्रत कर लोकार्पित की गई।