- अक्षय तृतीया पर 25 तपस्वियों ने वर्षीतप तप की, की पूर्णाहुति
- तेरापंथ सभा द्वारा आयोजित हुआ अभ्यर्थना कार्यक्रम
साहूकारपेट, चेन्नई 03.05.2022। श्री जैन श्वेताम्बर तेरापंथी सभा चेन्नई के तत्वावधान में मुनि श्री सुधाकरकुमारजी के सान्निध्य में अक्षय तृतीया के अवसर पर वर्षीतप आराधकों के अभिनन्दन, अनुमोदना का कार्यक्रम आयोजित हुआ। नमस्कार महामंत्र से प्रारम्भ अभ्यर्थना में आराधकों के साथ विशाल जनमेदनी को सम्बोधित करते हुए मुनि श्री सुधाकरकुमार ने कहा कि इतिहास बनता नहीं, बनाया जाता हैं। जो धीर, वीर, गम्भीर होते है, वे ही तप के क्षेत्र में गतिशील होते हैं और वे उदाहरण पेश कर दूसरों के लिए अनुकरणीय बन जाते हैं, इतिहास गड़ जाते हैं। असी, मसी, कृषि के प्रणेता ऋषभ ने सामाजिक मानव जीवन को नई दशा, दिशा दी थी। वही तप के क्षेत्र में स्वयं शरणन्यास कर आध्यात्मिक जीवन के उत्थान में तप की लौ जलाई थी।
मुनि श्री ने स्वच्छ, स्वस्थ, सफलतम आध्यात्मिक जीवन विकास के त्रिसूत्रों का प्रतिपादन करते हुए कहा कि उच्च शिखर पर आरोहण में बाधक बनता है – अन्तराय कर्म। आपने कहा कि ऋषभ ने अनाज को बैलों से बचाने के उपाय के रूप में सीका बांधने का निर्देश दिया था, लेकिन उस समय के ऋजु प्रवृत्ति के मानव संध्या को बैलों के मुंह पर लगे सीके निकाले नहीं। फिर ऋषभ के निर्देश पर सीके खोले और बैल घास खाने लगे। कहते हैं वही कुछ समय का बैलों को खाने का अन्तराय उन्हें दीक्षा के चार सौ दिनों तक बिना आहार पानी के रूप में भुगतान करना पड़ा।
मुनि श्री ने भगवान ऋषभ के जीवन के तप से जुड़े दिवस पर तपस्वियों के आध्यात्मिक जीवन की शुभकामना के साथ प्रेरणा पाथेय प्रदान करते हुए कहा कि कभी भी, कहीं भी, जीवन में जान या अनजान में, मोह या प्रमाद में दूसरों को अन्तराय नहीं देनी चाहिए, क्योंकि पता नहीं किस समय, किस परिस्थिति में उसका भुगतान करना पड़ सकता है। इसलिए सदैव सजगता से जीवन जीना चाहिए। दूसरे सूत्र के रूप में अज्ञानता वश बंधें हुए अंतराय कर्म को तोड़ने के लिए “तित्थराय मे पसीयंतु” का प्रतिदिन जाप करना चाहिए।
जीवनोपयोगी मुख्य तीसरे सूत्र का विश्लेषण करते हुए मुनि श्री ने कहा कि जीवन में तप बढ़े, ताप घटे। ताप बढ़ने से तपस्या मलीन, दूषित बन जाती हैं। तप के साथ कषायों में पतलापन हो, रसनेन्द्रिय पर विजय हो। रसनेन्द्रिय के प्रथम कार्य खाने के असंतुलन से पेट बिगड़ता है, वहीं दूसरे बोलने के असंयम से सम्बंध बिगड़ जाते हैं। अतः जीभ और मन को विशिष्ट साधना के द्वारा साधना चाहिए, कंट्रोल करना चाहिए।
आपने आज के इस अवसर पर कहा कि वर्तमान में जहां भौतिकता की चकाचौंध बढ़ रही हैं, वही तप के क्षेत्र में भी लोग निरंतर गतिशील है। आज जहां 70 वर्षीय तपस्विनी श्रीमती विमलादेवी वैदमुथा अपना 38वॉ वर्षीतप लेकर आई है, वहीं 32 वर्षीय युवक दर्शन सेठिया दूसरा वर्षीतप तप लेकर आया है। सभी परिवार वालों ने भी अपनी समतानुसार तपस्वियों का मनोबल, आत्मबल बढ़ाया, उनकी अनुमोदना में सहभागी बने हैं। सभी तपस्वी तप के क्षेत्र में निरन्तर आगे बढ़ते हुए अपना आध्यात्मिक जीवन विकास करते रहे।
मुनि श्री नरेश कुमार ने सफल संचालन करते हुए गीतिका के माध्यम से सभी को सरोबोर किया। सभी संघीय संस्थाओं की ओर से विमलजी चिप्पड़ ने चेन्नई में प्रवासीत साध्वी मंगलप्रज्ञाजी की सहवर्तनी साध्वी राजुलप्रभाजी के दूसरे उपवास वर्षीतप और साध्वी सिद्धियशाजी के एकाशन वर्षीतप के पूर्णाहुति की अनुमोदन की।
अनुमोदन के स्वर
श्री प्यारेलालजी पितलिया, घीसूलाल बोहरा, डॉ कमलेश नाहर, संतोष सेठिया, पुष्पा हिरण ने तपस्वियों के तप की अनुमोदन गीत, व्यक्तव्य के माध्यम से की।
परिवारीजनों द्वारा अभ्यर्थना
तपस्वी परिवार से गौतमचन्द सेठिया, सोनिका डागा, ललिता बरलोटा, राजेश नाहर, सपना चौपड़ा, दीक्षिता आंचलिया, डॉ.सुष्मिता बोकाड़िया, भवित नाहर, राजेश नाहर, धोका परिवार एवं बरलोटा परिवार की बहनें, ममता धारीवाल, जय खाँटेड, मेहुल दुगड़, चन्दना चौपड़ा, अक्षित परमार, शर्मिला गुंदेचा इत्यादि भाई बहनों ने अपनों की अनुमोदन गीत, मुक्तक, कविता, व्यक्तव्य के द्वारा की।
इनकी रही सहभागिता
प्रचार प्रसार प्रभारी स्वरूप चन्द दाँती ने बताया कि अभ्यर्थना समारोह में तेरापंथी सभा के साथ, तेरापंथ ट्रस्ट मण्डल साहूकारपेट, युवक परिषद्, अणुव्रत समिति, टीपीएफ आदि संस्थाओं का अतुलनीय सहयोग रहा। कार्यक्रम के व्यवस्था पक्ष में तेरापंथ महिला मंडल का विशेष सहयोग रहा। मंगलाचरण महिला मण्डल की बहनों ने, आभार ज्ञापन गजेन्द्र खांटेड़ ने किया। कार्यक्रम के संयोजक मनोज डुंगरवाल ने सफल संचालन करते हुए तपस्वियों का परिचय प्रस्तुत किया। तेरापंथ सभा की ओर से तपस्वियों का अभिनन्दन पत्र भेट कर सम्मान व्यक्त किया। तपस्वियों ने मुनिवृंद को इशू रस बहराया। मुनिश्रीजी के मंगलपाठ और मंगल मंत्रोच्चार के सम्मुच्चारण के साथ कार्यक्रम सानन्द सम्पन्न हुआ।
ऊँ अर्हम्