- लगभग 8 कि.मी. का विहार के दौरान सैंकड़ों श्रद्धालु दर्शन और आशीष से हुए लाभान्वित
- प्रतिकूल परिस्थितियों में बनी रहे शांति: शांतिदूत आचार्य महाश्रमण
- हर्षित श्रद्धालुओं ने दी भावनाओं को अभिव्यक्ति दी, प्राप्त किया मंगल आशीर्वाद
23.03.2022, बुधवार, अणुव्रत भवन, आइ.टी.ओ. (दिल्ली)। मानव-मानव को सद्भावना, नैतिकता और नशामुक्ति की प्रेरणा प्रदान करने वाले जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के वर्तमान अनुशास्ता, भगवान महावीर के प्रतिनिधि, अहिंसा यात्रा के प्रणेता, अणुव्रत अनुशास्ता आचार्यश्री महाश्रमणजी बुधवार को अपनी धवल सेना का कुशल नेतृत्व करते हुए दिल्ली के आइ.टी.ओ. के पंडित दीनदयाल उपाध्याय मार्ग पर स्थित अणुव्रत भवन में पधारे। अखिल भारतीय अणुव्रत न्यास से जुड़े लोगों ने आचार्यश्री का भावभीना अभिनंदन किया।
बुधवार को प्रातः सूर्योदय के कुछ समय पश्चात आचार्यश्री ने लाजपत नगर से मंगल प्रस्थान किया। दिल्लीवासियों को आशीष से आच्छादित करते हुए लगभग आठ किलोमीटर का विहार सुसम्पन्न कर आचार्यश्री अपनी धवल सेना संग पंडित दीनदयाल उपाध्याय मार्ग पर स्थित अणुव्रत भवन में पधारे। यह अणुव्रत भवन तेरापंथ समाज की दृष्टि से बहुत महत्त्वपूर्ण स्थान है। यहां परम पूज्य आचार्यश्री तुलसी का चतुर्मास हुआ है। यहां से अणुव्रत तथा तेरापंथ धर्मसंघ की अनेकानेक गतिविधियां संचालित होती हैं। आचार्यश्री से मंगल आशीर्वाद प्राप्त कर अणुव्रत भवन के नवीनीकृत भवन का लोकार्पण भी किया गया।
भवन के नीचे तल पर बने प्रवचन हॉल में उपस्थित श्रद्धालुओं को आचार्यश्री ने पावन प्रेरणा प्रदान करते हुए कहा कि शास्त्रों से अनेक प्रकार के पथदर्शन प्राप्त होते हैं। जैन आगम में एक आगम है दसवेआलियं। इस आगम को साधु-साध्वियां कंठस्थ भी करते हैं। साधु का जीवन कैसा हो, उसकी आहार, विहारचर्या आदि कैसी हो, इन सभी का वर्णन इसमें प्राप्त होता है। जीवन में एक प्रश्न हो सकता है कि आदमी सुखी कैसे बने? उसमें लिए आदमी को सुकुमारता छोड़ स्वयं को तपाना होगा। कठिनाइयों को झेलने, उन्हें सहन करने और उससे पार पाने का अभ्यास हो तो आदमी का जीवन सुखी हो सकता है। सुविधाओं का आदि हो जाना सुखी जीवन की बाधा है। प्रतिकूल परिस्थितियों में आदमी को समता और शांति को बनाए रखने का अभ्यास करना चाहिए। आदमी को ज्यादा भौतिक सुविधाओं की कामना को नियंत्रित करने का प्रयास करना चाहिए। आदमी को प्रतिकूल परिस्थितियों को समता, शांति और सहिष्णुता से पार करने का प्रयास होना चाहिए।
आचार्यश्री ने अणुव्रत भवन आगमन के संदर्भ में कहा कि मैं सन् 1974 में दिल्ली आया था। मुझे इसी अणुव्रत भवन में परम पूज्य गुरुदेव तुलसी ने साधु प्रतिक्रमण सीखने को मुनि दीक्षा प्रदान करने की आज्ञा प्रदान की थी। यह स्थान बहुत महत्त्वपूर्ण है। यह मानों पूरी दिल्ली का सेण्टर स्थान है, पूरी दिल्ली का यह स्थान है। पूर्वाचार्यों के यहां कितने-कितने प्रवचन हुए हैं। यहां अणुव्रत की गतिविधियां चलती रहें। अणुव्रत से लोगों को संयम की खुराक मिलती रहे। अणुव्रत से अहिंसा, नैतिकता की चेतना का विकास होता रहे। कार्यकर्ताओं में खूब सहयोग और सेवा की भावना का विकास होता रहे।
आचार्यश्री के मंगल प्रवचन से पूर्व मुख्यनियोजिकाजी ने भी श्रद्धालुओं को उद्बोधित किया। अखिल भारतीय अणुव्रत न्यास के मुख्य ट्रस्टी श्री के.सी. जैन ने भावाभिव्यक्ति दी। अणुव्रत से जुड़ी हुई महिलाओं ने गीत का संगान किया। अखिल भारतीय अणुव्रत न्यास से वर्तमान पदाधिकारियों द्वारा वरिष्ठ श्रावक श्री कन्हैयालाल जैन पटावरी तथा श्री सम्पत नाहटा को सम्मानित किया गया। इस दौरान श्री पटावरी व श्री नाहटा ने भी अपनी भावाभिव्यक्ति दी। इस संदर्भ में आचार्यश्री ने आशीर्वाद प्रदान करते हुए कहा कि अच्छा कार्य करना और उसका कुशल संचालन अच्छी बात होती है। दोनों सम्मान प्राप्तकर्ता खूब अच्छा कार्य करते रहें। सम्मान कार्यक्रम का संचालन श्री शांतिकुमार जैन ने किया।