अमृतसर:पंजाब में आम आदमी पार्टी की जीत उनकी चुनावी रणनीति की कामयाबी है। चुनाव नजदीक आते ही आप ने मुद्दों से कैंपेन शुरू किया। अच्छे सरकारी स्कूल और बेहतर अस्पताल की बात की। फिर 400 यूनिट मुफ्त बिजली और 18 साल से बड़ी हर महिला को प्रतिमाह एक-एक हजार रुपए देने की घोषणा कर दी। इसके बाद एक कदम आगे बढ़कर घर-घर से गारंटी कार्ड भरवाए।
इसके जरिए चुनाव के ऐलान से पहले ही आप गरीब और दलित भाईचारे के घर-घर तक पहुंच चुकी थी। गांवों में लोग आप के समर्थन में थे, इसलिए अविवादित चेहरों को टिकट दिए। शहरों में थोड़ी मुश्किल लग रही थी, ऐसे में खुद का आधार रखने वाले दूसरे दलों के करीब 50 नेताओं को पार्टी में शामिल कर उन्हें टिकट दिया। नतीजा यह हुआ कि गांव के साथ शहरों से भी कांग्रेस जीती।
इन 3 बड़े मुद्दों से समझिए आप को कैसे हुआ फायदा ?
1. बदलाव सुन मौका मांगने लगे केजरीवाल : पंजाब में आप मुद्दों पर अड़ी थी। अचानक गांवों से बदलाव की बात निकली, तो अरविंद केजरीवाल ने तुरंत प्रचार का तरीका बदला। वे एक मौका मांगने लगे। इसका बड़ा असर मालवा में दिखा, जहां 69 में से 65 सीटें आप जीत गई।
2. पंजाबी Vs बाहरी का वक्त पर जवाब : कांग्रेस ने आप को बाहरी पार्टी बताया। मौका देख केजरीवाल ने भगवंत मान को सीएम चेहरा घोषित कर दिया। फीडबैक से लेकर घोषणा तक इसे इस कदर इवेंट बनाया कि समर्थकों से लेकर विरोधियों की जुबान पर यह बात चर्चा में रही। जब केजरीवाल के मौके मांगने पर सवाल हुआ, तो तुरंत स्लोगन बदलकर एक मौका भगवंत मान के नाम पर मांगने लगे।
3. गठजोड़ न करने का जिम्मेदार किसान नेता बना दिए : AAP की बड़ी चिंता पंजाब में चुनाव लड़ रहे 22 किसान संगठनों का संयुक्त समाज मोर्चा था। किसान नेता बलबीर राजेवाल आप से गठजोड़ की बात नकारते रहे, लेकिन केजरीवाल ने खुलकर इसे कबूल किया। केजरीवाल ने कह दिया कि वह 90 सीटें घोषित कर चुके, बची सीटें लेने के लिए राजेवाल नहीं माने। गांवों में किसान नेताओं की सत्ता लालसा का संदेश जाने से वोट नहीं बंटे।
जातिगत और डेरे के लिहाज से समझिए परिणाम?
डेरा फैक्टर : डेरा सच्चा सौदा का दावा था हर सीट पर उनके 5 से 20 हजार तक वोट हैं। उन्होंने अकाली दल और भाजपा को सपोर्ट किया। डेरे के दबदबे के दावे वाले मालवा में ही यह दोनों बुरी तरह हार गए। अब इस बात पर बहस शुरू हो गई है कि श्रद्धालुओं ने डेरे की बात नहीं मानी या फिर डेरा फैक्टर जैसी कोई चीज है ही नहीं। यह इसलिए क्योंकि 2017 में अकाली दल को डेरा का सपोर्ट मिलने के बावजूद उसे सिर्फ 15 सीटें मिली थी।
दलित फैक्टर : पंजाब में 32% दलित वोटर हैं। कांग्रेस ने चरणजीत चन्नी को CM चेहरा बना यह कार्ड खेला। इसका कांग्रेस को एकतरफा फायदा नहीं मिला। दलित लैंड कहे जाने वाले दोआबा में गारंटी के जरिए आप पहले ही इसमें घुसपैठ कर चुकी थी। फिर आप ने दलित भाईचारे के बच्चों की शिक्षा और डॉ. भीमराव अंबेडकर के बहाने उनसे करीबी बढ़ाई। यहां की सीटों पर 5 से 10 हजार वोट बैंक बसपा का भी है, जो अकाली दल के खाते में चला गया।
जट्टसिख फैक्टर : पंजाब में 19% जट्टसिख आबादी है। मतदान में इनका जोर भले न हो, लेकिन सत्ता में दखल जरूर रहता है। आम आदमी पार्टी ने जट्टसिख कम्युनिटी से आने वाले भगवंत मान को सीएम फेस बनाया। इसके उलट कांग्रेस ने जट्टसिख चेहरों नवजोत सिद्धू और सुखजिंदर रंधावा को इग्नोर कर चन्नी पर दांव खेला। इसका लाभ आप को मिला। सुखबीर भी जट्टसिख कम्युनिटी से हैं लेकिन उनका नेतृत्व अकाली दल के कैडर को पसंद नहीं आ रहा था।
हिंदू वोट बैंक : पंजाब में 38% हिंदू वोट बैंक है। यह बात केजरीवाल ने भी समझी। PM मोदी की सुरक्षा चूक को CM चन्नी ने पंजाब, पंजाबी और पंजाबियत से जोड़ा। इसके उलट केजरीवाल ने इसे हिंदुओं के डर से जोड़ा। भाजपा को छोड़ सब इस पर चुप थे, लेकिन केजरीवाल ने व्यापारियों के बहाने खुलकर यह मुद्दा उठाया। हिंदू वोटर बहुल इलाकों में तिरंगा यात्रा निकाली। नतीजा, केजरीवाल के अंतिम दिनों में खालिस्तानी लिंक के आरोपों को लोगों ने तरजीह नहीं दी।