- चूरू से लाखाऊ और लाखाऊ से ख्याली पहुंचे महातपस्वी आचार्य महाश्रमण
- चूरू जिले से आचार्यश्री ने किया झुंझुनू जिले में मंगल प्रवेश
- भोग, रोग से नहीं, योग से भावित हो मानव जीवन: आचार्य महाश्रमण
26.02.2022, शनिवार, चूरू (राजस्थान)। पृथ्वी की परिधि से सवा गुना अधिक की पदयात्रा कर चुके जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें अनुशास्ता, भगवान महावीर के प्रतिनिधि, अहिंसा यात्रा के प्रणेता, महातपस्वी अखण्ड परिव्राजक आचार्यश्री महाश्रमणजी ने जनकल्याण के लिए शनिवार को लगभग 23 किलोमीटर की प्रलम्ब यात्रा कर अपनी परिव्राजकता को राजस्थान की धरा पर मानों प्रतिपादित कर दिया। इस प्रलम्ब पदयात्रा के दौरान आचार्यश्री ने अपनी धवल सेना संग चूरू जिले की सीमा को अतिक्रान्त झुंझुनू जिले की सीमा में मंगल प्रवेश किया। शनिवार को प्रातः की मंगल बेला में आचार्यश्री ने चूरू जिला मुख्यालय स्थित श्री जैन श्वेताम्बर तेरापंथी उच्च माध्यमिक विद्यालय से प्रस्थान किया। चूरूवासियों को आशीर्वाद प्रदान करते हुए आचार्यश्री आज के निर्धारित गंतव्य की ओर गतिमान हुए। पश्चिम बंगाल, बिहार, झारखण्ड, उत्तरप्रदेश, दिल्ली आदि क्षेत्रों में हुई बारिश के कारण यहां के मौसम में भी परिवर्तन देखा जा सकता था। आसमान हल्के बादल दिखाई दे रहे थे, किन्तु पूरब की ओर से बहने वाली हवा शीतलता लिए हुए थी। मार्ग के अनेक गांवों को अपने दर्शन और आशीर्वाद से लाभान्वित करते हुए आचार्यश्री लगभग 14 किलोमीटर का विहार कर लाखाऊ स्थित राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय में पधारे। विद्यालय के शिक्षकों और विद्यार्थियों ने आचार्यश्री का भावभीना स्वागत किया।
आचार्यश्री ने समुपस्थित श्रद्धालुओं और ग्रामीणों को पावन पाथेय प्रदान करते हुए कहा कि तीन शब्द हैं-भोग, रोग और योग। आदमी के जीवन के साथ भोग जुड़ा हुआ है। आदमी पदार्थों का भोग करता है। खान-पान, रहना, उठना-बैठना, कपड़े, वाहन आदि अनेक साधनों को उपभोग करता है। आदमी भोग करता है तो कभी रोग की बात भी हो जाती है। आदमी को कई बार ऐसा रोग हो जाता है कि डॉक्टर भी जवाब दे देते है। इसलिए आदमी के जीवन में योग की प्रधानता होनी चाहिए। भोग का संयम कर आदमी रोग से बच सकता है। आदमी को अतिभोग पर नियंत्रण करने का प्रयास करना चाहिए। योग का अर्थ संयम करना होता है। आदमी को शरीर को स्वस्थ रखने के लिए भोजन करना होता है, किन्तु आदमी कई बार स्वाद के कारण भोजन का अतिसेवन कर लेता है और रोगग्रस्त हो जाता है। इसलिए आदमी को स्वाद नहीं, स्वास्थ्य के दृष्टि से भोजन करने का प्रयास करना चाहिए। संतोष के साथ भोजन हो, अस्वाद की साधना का प्रयास हो। इसी प्रकार आदमी को बोलने, सुनने आदि का संयम करने का प्रयास करना चाहिए। भोग का संयम हो और योग की साधना चले तो जीवन अच्छा हो सकता है।
आचार्यश्री की प्रेरणा से समुपस्थित शिक्षकों और विद्यार्थियों ने अहिंसा यात्रा की संकल्पत्रयी स्वीकार की। विद्यालय के प्रधानाचार्य श्री ओम प्रजापत ने कहा कि मैं विद्यालय परिवार की ओर से महान संत आचार्यश्री महाश्रमणजी का हार्दिक स्वागत एवं अभिनंदन करता हूं। आपके आगमन से हमारे विद्यालय की धरती पावन हो गई। मंगल प्रवचन और अल्पकालिक प्रवास के उपरान्त आचार्यश्री ने पुनः चार बजे के आसपास लाखाऊ से सान्ध्यकालीन विहार को गतिमान हुए। रास्ते में आने वाले अनेक गांव के लोगांे को आचार्यश्री के दर्शन और आशीर्वाद का लाभ प्राप्त हुआ। राष्ट्रीय राजमार्ग को छोड़ आचार्यश्री पुनः ग्रामीण सड़क पर यात्रायित हुए। आज के विहार मार्ग के दोनों ओर जहां-तहां खेतों में चना, गेहूं और सरसों आदि की फसलें नजर आ रही थीं। आचार्यश्री अपने सान्ध्यकालीन विहार के दौरान चूरू जिले की सीमा को अतिक्रान्त कर झुंझुनू जिले की सीमा में मंगल प्रवेश किया। लगभग नौ किलोमीटर की प्रलम्ब यात्रा कर आचार्यश्री ख्याली गांव स्थित राजकीय माध्यमिक विद्यालय के प्रांगण में पधारे। जहां आज का रात्रिकालीन प्रवास हुआ। सुबह और सान्ध्यकालीन विहार को मिलाकर आचार्यश्री ने एक दिन में कुल 23 किलोमीटर की पदयात्रा की।