- संयम रूपी रत्न को संजो कर रखें चारित्रात्माएं
- अपने आराध्य के मंगल प्रवचनों का नित्य लाभ उठा रहे बीदासरवासी
13.02.2022, रविवार, बीदासर, चूरू (राजस्थान)। वीरभूमि बीदासर की धरती जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के वर्तमान अनुशास्ता, अध्यात्म जगत के महासूर्य आचार्यश्री महाश्रमणजी का मंगल सान्निध्य प्राप्त कर जगमगा रहा है। आचार्यश्री की मंगलवाणी का प्रकाश यहां के जन-जन के मानस को आलोकित कर रहा है। अपने आराध्य की मंगलवाणी के श्रवण, दर्शन और उपासना के लिए श्रद्धालु निरंतर तत्पर नजर आ रहे हैं।
रविवार को समाधिकेन्द्र परिसर में बने प्रवचन पंडाल से महातपस्वी आचार्यश्री महाश्रमणजी ने आगम वाङ्मय के माध्यम से पावन प्रेरणा प्रदान करते हुए कहा कि कई बार आदमी थोड़े के लिए अधिक को खो देता है, यह उसकी अल्पज्ञता को दर्शाता है। फिर भी आदमी मोह के वशीभूत होकर ऐसा कर लेता है। जैसे आदमी थोड़े लाभ के लिए चोरी कर लेता है, और ईमानदारी जैसी अमूल्य निधि को गंवा देता है। इसी प्रकार आदमी तात्कालिक लाभ के लिए झूठ का उपयोग कर लेता है, ठगी कर लेता है, यह उसकी बुद्धिमत्ता नहीं होती। आदमी को ईमानदारी और सत्य रूपी अमूल्य निधि को बचाने का प्रयास करना चाहिए। आदमी किसी का धन न चुराएं, किसी को फंसाने के लिए झूठा आरोप नहीं लगाने का प्रयास करना चाहिए। आदमी को अपने जीवन में ईमानदारी, सत्य और संयमरूपी मूल्यों को बनाए रखने का प्रयास करना चाहिए।
इसी प्रकार संयम रूपी रत्न प्राप्त करने के बाद भी कोई चारित्रात्मा यदि इससे मुक्त होने का विचार भी करे तो यह उसकी मूर्खता की बात हो सकती है। आध्यात्मिक जीवन को तुच्छ बात के लिए छोड़ने की बात सोचना भी अल्प के लिए ज्यादा गंवाने वाली बात हो जाती है। संयमरूपी रत्न के सामने तो संसार के करोड़ों के रत्न भी बेकार है। इसलिए चारित्रात्माओं को संयमरूपी जीवन को पूर्ण जागरूकता के साथ पालन करने का प्रयास करना चाहिए। गृहस्थों को भी अपने जीवन के अच्छे नियमों का पूर्ण जागरूकता से पालन करने का प्रयास करना चाहिए। इस प्रकार आदमी अपने जीवन में अल्प लाभ के लिए ज्यादा को खोने से बच सकता है।
आचार्यश्री के मंगल प्रवचन के उपरान्त साध्वी जगतवत्सलाजी ने अपने आराध्य के समक्ष अपनी श्रद्धासिक्त अभिव्यक्ति देकर आचार्यश्री से पावन आशीर्वाद प्राप्त किया। सुश्री एकता सुराणा ने आचार्यश्री के समक्ष अपनी भावाभिव्यक्ति दी। बालिका उपासना तथा तेरापंथ महिला मण्डल-सूरत की सदस्याओं ने गीत का संगान कर अपनी प्रणति पूज्यचरणों में अर्पित की।