- अपनी धवल सेना संग अहिंसा यात्रा प्रणेता ने नागौर जिले में किया मंगल प्रवेश
- पूज्यप्रवर ने लगभग साढ़े सोलह कि.मी. का प्रलम्ब विहार
- गोविन्दी गांव स्थित राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय पूज्यचरणों से हुआ पावन
07.01.2022, शुक्रवार, गोविन्दी, नागौर (राजस्थान)। राजस्थान की राजधानी गुलाबी नगरी जयपुर शहर को ही नहीं, जयपुर जिले के अनेकानेक गांवों को अपने ज्योतिचरणों से पावन बनाने वाले तथा अपने मंगल प्रवचन से जन-जन के मानस को अभिसिंचन प्रदान करने वाले जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें अनुशास्ता, भगवान महावीर के प्रतिनिधि, अहिंसा यात्रा के प्रणेता आचार्यश्री महाश्रमणजी ने शुक्रवार को जयपुर जिले की सीमा को अतिक्रान्त कर राजस्थान के नागौर जिले में मंगल प्रवेश किया तो नागौर की धरती पूज्यचरणों का स्पर्श पाकर पुलकित हो उठी।
शुक्रवार को प्रातः खतवाड़ी कला से आचार्यश्री ने अगले गंतव्य की ओर विहार किया। स्थानीय ग्रामीणों ने आचार्यश्री के दर्शन कर मंगल आशीर्वाद प्राप्त किया। सूर्य के नहीं उगने से ठंड अपना रंग दिखा रही थी। लोग गर्म कपड़ों से लदे दिखाई दे रहे थे, किन्तु समता के साधक आचार्यश्री अपनी धवल सेना संग गतिमान हो चुके थे। मार्ग के आसपास के गांवों के लोगों को आचार्यश्री के दर्शन का लाभ भी प्राप्त हो रहा था। विहार के दौरान आचार्यश्री ने जयपुर जिले से राजस्थान के नागौर जिले में मंगल प्रवेश किया तो मानों नागौर की धरती भी पूज्यचरणों का स्पर्श पाकर पुलकित हो उठी। अहिंसा यात्रा प्रणेता आचार्यश्री महाश्रमणजी लगभग साढे सोलह किलोमीटर का प्रलम्ब विहार कर नागौर जिले में स्थित गोविन्दी गांव स्थित राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय के प्रांगण में पधारे तो विद्यालय के प्रधानाध्यापक, शिक्षक व विद्यार्थियों आदि ने आचार्यश्री का भावपूर्ण स्वागत किया।
विद्यालय के कमरे से वर्चुअल रूप में आयोजित मंगल प्रवचन में आचार्यश्री ने मंगल संबोध प्रदान करते हुए कहा कि दुनिया में यथार्थवाद और मृषावाद चलता है। यथार्थवाद अर्थात् जो जैसा है, जैसी वस्तुस्थिति है उसे वैसा ही बता देना यथार्थ और वस्तुस्थिति से भिन्न बताना मृषावाद होता है। आदमी समूह में रहता है। परिवार अथवा समाज में रहता है तो वहां अपने विचारों के आदान-प्रदान के लिए भाषा की आवश्यकता होती है। सामूहिक जीवन में भाषा की अपेक्षा होती है। आदमी का आपस में लेन-देन भी होता है। आदमी को ध्यान देना चाहिए कि अपने दैनिक के व्यवहार में कितना यथार्थ अथवा कितना अयथार्थ बोला। आदमी को मृषावाद अर्थात् झूठ बोलने से बचने का प्रयास करना चाहिए। आदमी का यदि संकल्प बल मजबूत हो तो आदमी मृषावाद से बच सकता है। सत्य परेशान हो सकता है, किन्तु पराजीत नहीं होता। हालांकि आदमी प्रारम्भिक परेशानियों के कारण मृषावाद में चला जाता है, किन्तु अंतिम विजय तो सत्य की ही होती है। आदमी अपने जीवन में यह प्रयास करे कि किसी पर झूठा आरोप न लगाए। लोकतांत्रिक प्रणाली में न्यायपालिका का महत्त्वपूर्ण स्थान है। यदि वहां मृषावाद का प्रवेश न हो तो वह स्थान मंदिर बन सकता है। आदमी के जीवन में सत्य होता है, तो उसका कल्याण संभव हो सकता है।