राखी सरोज।।
16 दिसंबर 2021 को लड़कियों को शादी की उम्र 18 साल से बढ़ाकर 21 साल करने के प्रस्ताव पर कैबिनेट की मुहर लग गई है। अब इसे कानूनी शक्ल देने के लिए मौजूदा कानून में संशोधन किया जाएगा। इसके लिए केंद्र सरकार संसद में प्रस्ताव पेश करेगी। अभी के कानून के अनुसार कानून देश में पुरुषों के विवाह की न्यूनतम आयु 21 साल और महिलाओं की न्यूनतम आयु 18 साल है। नीति आयोग में जया जेटली की अध्यक्षता में बनी कमेटी ने इस बाबत सिफारिश की थी। इस कमेटी के सदस्य नीति आयोग के डॉ. वीके पॉल भी थे।
भारत देश जहां हम किसी भी धर्म जाति की बात करें, विवाह को महत्व दिया जाता है। जहां एक ओर विवाह को हमारे यहां ईश्वर की मर्जी से जुड़ने वाला रिश्ता माना जाता है। वहीं दूसरी ओर इस रिश्ते को जोड़ने की उम्र को लेकर हमेशा बहस होती रही है। जिसे बहुत से लोग भेदभाव के रूप में देखते रहे। किन्तु आज हमारे देश में लड़कियों की शादी की उम्र को लेकर एक फेसला लिया गया है। जिससे इतिहास में दर्ज किया जाएगा, क्योंकि इस फैसले से लड़कियों और महिलाओं के बीच होने वाले भेदभावों को दूर किया गया। साथ ही साथ एक समाज में लड़कियों की विवाह की आयु लड़कों से कम होने पर उठने वाले सवालों पर रोक लगा दी।
जब हम विचार करतें हैं कि सरकार को क्या आवश्यकता थी इस फ़ैसले की। मकसद जनसंख्या पर नियंत्रण पाना नहीं है। इस कानून का असल मकसद था महिलाओं का स्वास्थ। जो छोटी उम्र में मां बनने के कारण अक्सर संकट में आ जाता है। राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वे (एनएफएचएस 5) के ताजा आंकड़े बताते हैं कि कुल प्रजनन दर (टीएफआर) में कमी आई है और जनसंख्या नियंत्रण में है। लड़कियों की शादी की उम्र बढ़ाने के पीछे असली मकसद महिलाओं का सशक्तिकरण करना है।’ प्रजनन दर में गिरावट दर्जगत नवंबर में केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने राष्ट्रीय परिवार कल्याण सर्वेक्षण-5 के दूसरे चरण के आंकड़े जारी किए। इस रिपोर्ट में देश में प्रजनन दर में गिरावट दर्ज की गई। यह 2.2 से घटकर दो रह गई है। 2005-2006 में नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे-3 के दौरान भारत का टीएफआर 2.7 था, जो कि 2015-2016 में घटकर 2.2 हो गया। टीएफआर में गिरावट यह दर्शाता है कि देश में निकट भविष्य में जनसंख्या विस्फोट नहीं होने जा रहा है। टास्क फोर्स का गठन जून 2020 में किया गया था। इस कमेटी ने दिसंबर 2020 में कमेटी की रिपोर्ट को सबमिट किया था। टास्क फोर्स का कहना था कि, ‘पहले बच्चे को जन्म देते समय बेटियों की उम्र 21 साल होनी चाहिए। वहीं विवाह में देरी का परिवारों, महिलाओं, बच्चों और समाज के आर्थिक सामाजिक और स्वास्थ्य पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
इस संशोधन का कोई मतलब नहीं है यह कहते हुए हमें बहुत से लोग मिल जाएंगे। जब उन्हें कानून का उलंघन होता नजर आयेगा। किन्तु यह कह कर हम किसी कानून के महत्व को नाकारा नहीं सकते हैं। हमें समझना होगा कि कानून हमारे भले के लिए बनाएं जातें हैं और यह कानून हमारी हर बहन, बेटी को जीवन देगा। उन्हें पढ़ने लिखने का मौका देगा। अपने लिए सोचने समझने लायक बनने तक का समय प्रदान करेगा।
लड़कियों की विवाह की आयु में बदलाव क्यों?
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