- सवाई माधोपुर के पग-पग को अध्यात्म से जगमग कर बढ़ चले ज्योतिचरण
- लगभग नौ किलोमीटर का विहार कर पहुंचे सूरवाल गांव
- वर्षों के प्यासे सूरवालवासियों ने अपने आराध्य का किया भव्य अभिनन्दन
- महातपस्वी महाश्रमण ने की कृपावृष्टि, गुरुधारणा संग ग्रहण कराई संकल्पत्रयी
- सान्ध्यकालीन विहार का क्रम भी रहा जारी, अहिंसा यात्रा पहुंची सिनोली
14.12.2021, मंगलवार, सूरवाल, सवाई माधोपुर (राजस्थान)। तीन ओर से पहाड़ों से घिरे राजस्थान की प्राचीन व ऐतिहासिक नगरी सवाई माधोपुर जिसे लोग अमरूदों की नगरी के नाम से भी जानते हैं। यहां का रणथम्भौर राष्ट्रीय उद्यान, त्रिनेत्र गणेश मंदिर व किला विश्व प्रसिद्ध है। ऐसे नगरी के पग-पग को अपने ज्योतिचरण से जगमग कर जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के एकादशमाधिशास्ता, भगवान महावीर के प्रतिनिधि, अखण्ड परिव्राजक आचार्यश्री महाश्रमणजी ने मंगलवार को अपनी धवल सेना संग सवाई माधोपुर जिला मुख्यालय स्थित आदर्शनगर से मंगल प्रस्थान किया। विहार मार्ग के दोनों ओर गेहूं, सरसों के दूर-दूर तक फैले खेत प्रकृतिप्रेमियों को अपनी ओर आकर्षित कर रहे थे। इसके साथ ही अमरूदों के बगानों में लगे फल भी इस नगरी के उपनाम को सार्थक बना रहे थे। बागानों में काम करने वाले ग्रामीण श्रद्धालु ऐसे महान संत की अभिवंदना में अमरूद की टोकरी तो कहीं अपने गमछे व आंचल में अमरूद लेकर समर्पित कर रहे थे, किन्तु जैन साधुचर्या के अनुशास्ता सभी के भावों को स्वीकार कर लोगों को आशीर्वाद प्रदान कर आगे बढ़ते रहे। लगभग नौ किलोमीटर का विहार कर आचार्यश्री सूरवाल गांव की सीमा में पहुंचे तो वर्षों प्यासे मन को मानों तृप्ति प्राप्त हो गई। भव्य स्वागत जुलूस के साथ सूरवालवासी अपने आराध्य के चरणों का अनुगमन करते हुए चल पड़े। यहां जैन एवं जैनेतर का भेद करना कठिन था। स्वागत जुलूस के साथ आचार्यश्री सूरवाल स्थित राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय के प्रांगण में पधारे।
विद्यालय परिसर में आयोजित प्रवचन कार्यक्रम में आचार्यश्री के आगमन से पूर्व मुख्यनियोजिका साध्वी विश्रुतविभाजी ने लोगों को उत्प्रेरित किया। तत्पश्चात् आचार्यश्री मध्याह्न करीब बारह बजे मंचासीन हुए। मंगल महामंत्रोच्चार कर सर्वप्रथम शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी ने सूरवालवासियों को सम्यक्त्व दीक्षा (गुरुधारणा) कराई। तदुपरान्त समुपस्थित जनसमूह को मंगल प्रेरणा प्रदान करते हुए कहा कि एक नीतिगत बात बताई गई कि थोड़े लाभ के लिए ज्यादा हानि नहीं उठानी चाहिए। इसलिए दुर्लभ मानव जीवन को व्यर्थ नहीं गंवाना चाहिए। क्षणिक सुखानुभूति के लिए आदमी परम सुख को नहीं गंवाना चाहिए। चोरी, हिंसा, झूठ, धोखाधड़ी से बचने का प्रयास करना चाहिए। आदमी अमूल्य ईमानदारी को तुच्छ बेईमानी के लिए नहीं खोना चाहिए। अन्याय, अनीति से नहीं बल्कि न्याय और नीति से धनोपार्जन करने का प्रयास करना चाहिए। दुकान व बाजार में ईमानदारी और नैतिकता की देवी रहें तो अच्छा हो सकता है।
आचार्यश्री ने कहा कि सूरवाल एक छोटा गांव होते हुए भी पूर्व समय में तेरापंथ धर्मसंघ को अपना महादान दिया है। यहां से कितने-कितने साधु-साध्वियां दीक्षित हुए हैं। हम यहां पहली बार पधारे हैं। यहां के लोगों मंे खूब आध्यात्मिकता का विकास होता रहे। लोगों में धर्म की लौ जलती रहे, यह काम्य है। आचार्यश्री ने समुपस्थित लोगों को पावन प्रेरणा प्रदान संकल्पत्रयी ग्रहण करने का आह्वान किया तो भावाविभोर लोगों ने श्रीमुख से अहिंसा यात्रा के तीनों संकल्पों को स्वीकार किया।
आचार्यश्री के स्वागत में स्थानीय तेरापंथी सभा के अध्यक्ष श्री राजेश जैन, महिला मंडल से श्रीमती सीमा जैन, सुश्री पारुल व सैफाली जैन व श्री धर्मेश जैने अपने हृदयोद्गार व्यक्त किए। सूरवाल पंचायत समिति के डायरेक्टर श्री नमोनारायण मीणा ने भी आचार्यश्री के स्वागत में अपनी भावाभिव्यक्ति दी।
अल्पकालिक विश्राम के बाद भीलवाड़ा चतुर्मास के बाद से प्रायः सन्ध्या के समय भी विहार करने के अपने क्रम को जारी रखते हुए शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी सूरवाल से प्रस्थित हुए। लगभग आठ किलोमीटर का विहार कर आचार्यश्री अपनी धवल सेना का कुशल नेतृत्व करते हुए सिनोली स्थित राजकीय उच्च प्राथमिक विद्यालय के प्रांगण में पधारे। जहां आचार्यश्री ने रात्रिकालीन प्रवास किया।