- अहिंसा यात्रा पहुंची पापड़ी गांव, लगभग 15 कि.मी. का रहा विहार
- अहिंसा यात्रा के संकल्पों को स्वीकार कर पापड़ीवासी हुए धन्य
- पापड़ी को धन्य बना गतिमान हुए ज्योतिचरण, 6 कि.मी. का किया सान्ध्यकालीन विहार
- लाखेरी स्थित महाराजा मूलसिंह डिग्री कॉलेज व पब्लिक स्कूल ज्योतिचरण से हुआ पावन
08.12.2021, बुधवार, पापड़ी, बूंदी (राजस्थान)। बूंदी जिले में मानवता का संदेश देते हुए जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें अनुशास्ता, भगवान महावीर के प्रतिनिधि, अहिंसा यात्रा प्रणेता आचार्यश्री महाश्रमणजी बुधवार को अपनी धवल सेना संग देईखेड़ा गांव से प्रातःकाल मंगल प्रस्थान किया। अब तक कंटिले झाड़, पथरीले पहाड़ ही मार्ग में दिखाई देते थे, किन्तु अब इस क्षेत्र में जहां-तहां सरसो आदि की फसल भी खेतों में लहलहा रही है। इससे यह प्रतीत हो रहा है कि इस क्षेत्र में पानी की उपलब्धता है, जिससे खेती की जा रही है। रास्ते में आने वाले गांवों के ग्रामीण आचार्यश्री को वंदन कर उनके आशीर्वाद से लाभान्वित हुए। लगभग पन्द्रह किलोमीटर का विहार कर आचार्यश्री पापड़ी स्थित राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय के प्रांगण में पधारे।
विद्यालय परिसर में आयोजित मंगल प्रवचन में आचार्यश्री ने समुपस्थित ग्रामीण श्रद्धालुओं को पावन प्रेरणा प्रदान करते हुए कहा कि ध्यान अध्यात्म साधना का एक महत्त्वपूर्ण स्तंभ है और ध्यान काफी प्रसिद्ध भी है। ध्यान के चार प्रकार बताए गए हैं- आर्त ध्यान, रौद्र ध्यान, धर्म ध्यान और शुक्ल ध्यान। एक आलम्बन पर मन को केन्द्रित कर देना ध्यान होता है। आदमी ध्यान शुभ और अशुभ भी हो सकता है। मन की एकाग्रता यदि राग-द्वेष से युक्त हो तो अशुभ ध्यान होता है और राग-द्वेष से मुक्त ध्यान शुभ होता है। राग-द्वेष से युक्त ध्यान जो आर्त और रौद्र होते हैं, वे अशुभ ध्यान होते हैं तथा धर्म और शुक्ल ध्यान शुभ ध्यान हैं।
तेरापंथ धर्मसंघ के दसवें आचार्यश्री महाप्रज्ञजी ने प्रेक्षाध्यान का क्रम चलाया। उन्होंने न जाने कितनी-कितनी प्रेक्षाध्यान आदि के शिविरों में लोगों को विभिन्न प्रकार के ध्यान कराए। प्रेक्षाध्यान के माध्यम से राग-द्वेष से मुक्त ध्यान के द्वारा स्वयं को देखने का प्रयोग किया जाता है। आदमी को राग-द्वेष से मुक्त मन को एकाग्र करने का प्रयास करना चाहिए। मन की एकाग्रता आध्यात्मिक रूप से हो तो वह आत्मा के लिए कल्याणकारी हो सकती है। मन को स्थिर रखने में शारीरिक स्थिरता और वाणी की स्थिरता योगभूत बनती है। व्यग्र मन होता है तो विभिन्न आलम्बनों पर जाता है और एकाग्र मन एक आलम्बन पर केन्द्रित हो जाता है। मन को एकाग्र करने के लिए दीर्घ श्वास आदि का प्रयोग करने का प्रयास करना चाहिए।
आचार्यश्री ने प्रसंगवश लोगों को शनिवार की सामायिक करने की विशेष प्रेरणा प्रदान करते हुए कहा कि सामायिक के दौरान अखबार पढ़ना अथवा टेलीविजन के माध्यम से न्यूज आदि नहीं देखना चाहिए। सामायिक में तो प्रवचन श्रवण, किसी धार्मिक पुस्तक का स्वाध्याय, जप आदि करने का प्रयास करना चाहिए। प्रवचन श्रवण और सामायिक हो जाए तो और अच्छी बात हो सकती है। आचार्यश्री ने मंगल प्रवचन के पश्चात पापड़ीवासियों को अहिंसा यात्रा की अवगति प्रदान कर संकल्पत्रयी ग्रहण कराई।
प्रवचन के कुछ समय पश्चात अपराह्न लगभग तीन बजे अखण्ड परिव्राजक आचार्यश्री महाश्रमणजी एक और सान्ध्यकालीन विहार को प्रस्थित हुए। आचार्यश्री पापड़ी स्थित राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय परिसर से मंगल प्रस्थान किया। इस विहार पथ के दोनों ओर खेतों में कहीं सरसों की फसल लहरा रही थी, तो कहीं खेतों में गेहूं, जौ, व शरद ऋतु की सब्जियों की क्यारियां लगी हुई थीं। कुछ दूरी बाद आचार्यश्री ने मेज नदी पर बने पुल को पार कर लगभग छह किलोमीटर का विहार कर लाखेरी स्थित महाराजा मूलसिंह शिक्षा एवं विकास समिति के अंतर्गत संचालित महाराजा मूलसिंह डिग्री कॉलेज व पब्लिक स्कूल के संयुक्त परिसर में पधारे। इस शिक्षा सोसायटी से जुड़े लोगों ने आचार्यश्री का भावपूर्ण अभिनन्दन किया तो आचार्यश्री ने उन्हें पावन आशीर्वाद प्रदान किया। आचार्यश्री का रात्रिकालीन प्रवास इसी परिसर में हुआ।