- ज्ञान के साथ-साथ आचरण को विशुद्ध बनाने को आचार्यश्री ने किया उत्प्रेरित
- जगा भीलवाड़ावासियों का भाग, गुरुमुख से गुरुधारणा को स्वीकार करने का मिला सुअवसर
14.11.2021, रविवार, आदित्य विहार, तेरापंथ नगर, भीलवाड़ा (राजस्थान)। भीलवाड़ा के भव्य चतुर्मास की सम्पन्नता के अंतिम रविवार को मानों भीलवाड़ावासियों का सौभाग्य अपने चरमोत्कर्ष पर था। जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें अनुशास्ता, भगवान महावीर के प्रतिनिधि, मानवता के मसीहा, अखण्ड परिव्राजक आचार्यश्री महाश्रमणजी के नित्य जीवनोपयोगी मंगल प्रवचन के साथ ही आज उन्हें अपने गुरुमुख से गुरुधारणा (सम्यकत्व दीक्षा) ग्रहण करने का सुअवसर भी प्राप्त हो गया। अपने आराध्य के श्रीमुख से गुरुधारणा कर मानों पूरा भीलवाड़ा अपने सौभाग्य पर इतरा रहा था। तत्पश्चात भीलवाड़ावासियों ने अपनी मंगलभावनाएं भी श्रीचरणों में अर्पित की।
भीलवाड़ा चतुर्मास के अंतिम रविवार को चतुर्मास प्रवास स्थल परिसर में बने भव्य ‘महाश्रमण समवसरण’ से आचार्यश्री महाश्रमणजी ने ‘सूयगडो’ आगमाधारित अपने मंगल प्रवचन में कहा कि कई व्यक्ति बहुश्रुत होते हैं। शास्त्रों का वेत्ता होना बड़ी बात होती है। बहुश्रुत के पास बहुत सुना हुआ, पढ़ा हुआ, देखा हुआ ज्ञान होता है। अनेक भाषाओं का ज्ञान, विभिन्न विषयों का ज्ञान किसी के पास भी हो सकता है। कोई साधु यदि बहुश्रुत हो जाए तो सोने पे सुहागा वाली बात हो सकती है। सयंम साधना का जीवन और विभिन्न विषयों, शास्त्रों का ज्ञान हो तो बहुत विशिष्ट बात हो जाती है।
ज्ञान होना विशिष्ट बात है, किन्तु ज्ञान आचरण में उतर जाए तो मानों पूर्णता की बात हो सकती है। केवल ज्ञान से ही नहीं अपने आचरणों के माध्यम से आदमी सम्मान को प्राप्त कर सकता है। बहुश्रुत होने के साथ-साथ अच्छा आचरण हो तो वह सम्माननीय हो जाता है। ज्ञान आचार के साथ हो तो परिपूर्णता की बात हो सकती है। विद्यालयों, महाविद्यालयों और विश्वविद्यालयों में विद्यार्थी ज्ञान अर्जित करते हैं। उनमें ज्ञान के साथ-साथ आचरण की शुद्धता का भी विशेष ध्यान देने का प्रयास करना चाहिए। कदाचार, भ्रष्टाचार, व्यभिचार, अनाचार से बचने ओर सदाचार की दिशा में गति-प्रगति करने का प्रयास करना चाहिए।
मंगल प्रवचन के पश्चात आचार्यश्री ने भीलवाड़ावासियों को अपने श्रीमुख से सम्यकत्व दीक्षा (गुरुधारणा) करवाई तो पूरा पंडाल जयघोष से गुंजायमान हो उठा। तदुपरान्त मुनि सुरेशकुमारजी ‘हरनावां’ की आत्मकथा ‘जो मैंने जीया’ पूज्यचरणों में लोकार्पित की गई। पुस्तक के संदर्भ में मुनि सम्बोधकुमारजी ने अवगति प्रस्तुत की। आचार्यश्री ने मंगल आशीष प्रदान करते हुए कहा कि शासनश्री मुनि सुरेशकुमारजी हमारे धर्मसंघ के एक अग्रणी, विनम्र, संघनिष्ठ व सजग संत हैं। वर्तमान में मुनिश्री एकान्त साधना का भी अभ्यास कर रहे हैं। इस ग्रन्थ से पाठक को अच्छा जीवन जीने की प्रेरणा प्राप्त हो। मुनिश्री खूब अच्छी साधना व यथासंभव धर्मसंघ की सेवा भी करते रहें। नाहर सिस्टर्स (आकांक्षा-चुनौती), हिरेण चोरड़िया, सुश्री अपेक्षा पामेचा व श्री संजय भनावत ने अपने-अपने गीतों के माध्यम से श्रीचरणों में अपनी मंगलभावनाएं अर्पित कर आशीर्वाद प्राप्त किया।