- आचार्यश्री ने आर्थिक शुचिता बनाए रखने को किया उत्प्रेरित
- पूज्य सन्निधि में पहुंचे राजस्थान हाईकोर्ट के न्यायाधीश मनोज गर्ग
31.10.2021, रविवार, आदित्य विहार, तेरापंथ नगर, भीलवाड़ा (राजस्थान)। वस्त्रनगरी भीलवाड़ा वर्तमान में मानों धर्मनगरी का रूप धारण कर स्वयं को गौरवान्वित महसूस कर रही है। जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के एकादशम अधिशास्ता, भगवान महावीर के प्रतिनिधि, अखण्ड परिव्राजक, राष्ट्र संत आचार्यश्री महाश्रमणजी का भव्य चतुर्मास क्रमशः सम्पन्नता की ओर है, लेकिन विशिष्ट अतिथियों का आगमन और श्रद्धालुओं को नियमित गुरुदर्शन और प्रवचन श्रवण पूर्ण उत्साह के साथ जारी है। आचार्यश्री सूर्योदय के साथ ही तेरापंथ नगर में भ्रमण को निकल रहे हैं तो यहां रहने वाले श्रद्धालुओं को सहजतया ही अपने आराध्य के मंगल दर्शन करने और पावन आशीष ग्रहण करने का सुअवसर प्राप्त हो जा रहा है। जिसे श्रद्धालुजन आह्लादित और स्वयं को सौभाग्यशाली महसूस कर रहे हैं। रविवार को आचार्यश्री के मुख्य मंगल प्रवचन में जहां एक ओर मेवाड़ चेम्बर ऑफ कॉमर्स से जुड़े पदाधिकारीगण उपस्थित थे तो वहीं पूज्य सन्निधि में राजस्थान हाईकोर्ट के न्यायाधीश मनोज कुमार गर्ग भी पहुंचे। उन्होंने बड़ी श्रद्धा के साथ आचार्यश्री का मंगल प्रवचन श्रवण कर पावन पथदर्शन भी प्राप्त किया।
रविवार को प्रातःकाल के मुख्य प्रवचन कार्यक्रम में आचार्यश्री के मंगल उद्बोधन से पूर्व तेरापंथ धर्मसंघ की असाधारण साध्वीप्रमुखा कनकप्रभाजी ने श्रद्धालुओं को तीन प्रकार के चक्षुओं का वर्णन करते हुए अपने जीवन को अच्छा बनाने के लिए अभिप्रेरित किया। तत्पश्चात् आचार्यश्री ने अपनी मंगलवाणी के माध्यम से वर्चुअल रूप से जुड़े हजारों श्रद्धालुओं को पावन पाथेय प्रदान करते हुए कहा कि दो शब्द हैं – वित्त और वृत्त। वित्त का अर्थ धन और पैसा है तो वृत्त का अर्थ चरित्र, व्यवहार। साधुओं के पांच नियमों में अंतिम नियम सर्व परिग्रह त्याग का नियम होता है। गृहस्थ जीवन में वित्त का महत्त्व होता है। गृहस्थ को अर्थ आदि की व्यवस्थाओं पर भी ध्यान देना होता है। आदमी को अर्थ के उपार्जन में शुचिता बनाए रखने का प्रयास करना चाहिए।
अर्थ और अर्थाभाष को आचार्यश्री ने विवेचित करते हुए कहा कि न्याय, नीति से प्राप्त धन अर्थ तथा अन्याय अनीति से प्राप्त धन अर्थाभाष होता है। आदमी को आर्थिक शुचिता को बनाए रखने का प्रयास करना चाहिए। उसे यह प्रयास करना चाहिए उसके घर आने वाला अर्थ धर्म, न्याय और नीति से युक्त हो। अन्याय, अनैतिकता और अधर्म से कमाया गया धन घर में न आए। आदमी को अर्थ के प्रति भी ज्यादा आसक्ति या मूर्च्छा रखने से भी बचने का प्रयास करना चाहिए। आदमी के व्यापार में ईमानदारी रहे और अर्थ के प्रति अनासक्ति की भावना रहे तो आर्थिक शुचिता बनी रह सकती है। आदमी के जीवन की सबसे बड़ी सम्पत्ति ईमानदारी है। गृहस्थ अपने जीवन में ईमानदारी रखने का प्रयास करे तो कल्याण हो सकता है।
मंगल प्रवचन के पश्चात् आचार्यश्री ने समुपस्थित मेवाड़ चेम्बर ऑफ कॉमर्स के लोगों के जिज्ञासाओं को भी समाहित किया। आचार्य महाश्रमण चतुर्मास प्रवास व्यवस्था समिति के अध्यक्ष श्री प्रकाश सुतरिया ने भावाभिव्यक्ति दी। राजस्थान हाईकोर्ट के न्यायाधीश श्री मनोज कुमार गर्ग ने आचार्यश्री के आज के प्रवचन को अपने जीवन में आत्मसात करने की बात कहते हुए कहा कि आपकी दिव्य शिक्षा जिसके जीवन में भी उतर जाए उसके जीवन का कल्याण हो जाए। आचार्यश्री ने उन्हें न्याय की शुचिता बनाए रखने के लिए प्रलोभन और मुक्त रहने की प्रेरणा प्रदान की। मेवाड़ चेम्बर ऑफ कॉमर्स के पूर्व चेयरमेन श्री श्यामजी बोरानी और मंत्री श्री आरके जैन ने भी अपनी श्रद्धासिक्त भावाभिव्यक्ति दी और पूज्यप्रवर से पावन आशीर्वाद प्राप्त किया। श्री अभिनव चोरड़िया ने गीत का संगान किया।