जो बदलाव दुनिया में देखना चाहते हैं, वह खुद में लाओ।
दुनिया बदल देना इंसानी महानता है बल्कि असली महानता तो खुद को बदलने में है। अगर तुमने खुद को बदल लिया तो दुनिया भी बदल लोगे। तुम्हारी सोच बदली तो तुम्हारे भाव और प्रतिक्रियाएं भी बदल जाएंगी। फिर तुम उसी दुनिया को नए विचारों की नजर से देखोगे। यह बदलाव ही तुम्हें ऐसे फैसले लेने की ताकत देगा जिसकी तुम कल्पना नहीं कर सकते थे। अगर तुमने खुद को नहीं बदला और दुनिया बदलने में लग गए तो भले दुनिया बदल जाए पर उस बदलाव को तुम महसूस नहीं कर पाओगे। उस नई स्थिति को समझने लायक तुम्हारी मन: स्थिति ही नहीं होगी। तुम उसी नकारात्मक भाव में फंसे रहोगे और इस घमंड में सिर्फ नए दुश्मन खोजोगे जो तुम्हारे लिए और बड़ी समस्या खड़ी कर देंगे।
‘मेरी अनुमति के बिना कोई मुझे दुख नहीं पहुंचा सकता।’
तुम क्या महसूस करते हो और किस बात पर कैसी प्रतिक्रिया दोगे, यह पूरी तरह तुम पर निर्भर करता है। हालांकि भावनाएं व्यक्त करने के सामान्य तरीके भी हैं और लोग एकाएक कुछ भी कह देते हैं। हर एक व्यक्ति हर एक स्थिति के लिए अपने विचार, अपनी प्रतिक्रिया और भावनाओं का चुनाव कर सकता है। उसके लिए यह जानना जरूरी है कि हर बात पर तुरंत जवाब देना या नकारात्मक भाव से फट पड़ना बिल्कुल आवश्यक नहीं। जैसे-जैसे तुम्हें अहसास होगा कि कोई दूसरा तुम्हारी सोच पर कब्जा नहीं कर सकता या तुम्हारी प्रतिक्रियाओं को नियंत्रित नहीं कर सकता, फिर तुम्हें बस इस विचार को अपने रोजमर्रा जीवन में अभ्यास के सहारे आदत बनाना होगा। इस तरह तुम खुद को जीत लोगे जो सबसे अहम है।
‘कमजोर कभी माफ नहीं कर सकता, माफ करना मजबूत व्यक्ति का गुण है।’
आंख के बदले आंख का विचार पूरी दुनिया को अंधा बना देगा। पापी से लड़कर किसी को कुछ नहीं मिलेगा इसलिए हमें अपनी भावनाओं का चुनाव करना सीखना चाहिए। क्षमा करना और उस स्मृति को यादों की जकड़न से ढील देना तुम्हारी दुनिया में सुकून लाता है। जब तुम यह समझ लोगे कि किसी नकारात्मक घटना से एक सीख ली जा सकती है तो तुम उस स्मृति को बार-बार याद करके अपना समय नहीं गंवाओगे। ऐसे नकारात्मक यादें सिर्फ तुम्हें विचारों को जकड़ती हैं और तुम्हें कोई फैसला लेने लायक नहीं छोड़तीं। अगर तुम उस घटना और उससे जुड़े व्यक्ति को माफ नहीं करते, तब तुम उन दोनों चीजों को अपने ऊपर कब्जा करने देते हो। जब तुम उन्हें माफ करते हो तो असल में उस बंधन से खुद को निकाल लेते हो और हाल में जीना सीख जाते हो।
‘टनों भर भाषण से रत्ती भर अभ्यास मूल्यवान है।’
किसी विचार को मूर्त रूप देना या उसका अनुसरण करना एक मुश्किल और परेशानी भरा कदम होता है। हो सकता है कि तुम्हारा मन तुम्हें उस फैसले का पालन करने से रोके, तुम तुम प्रवचन या उपदेश का सहारा लो जो तुम्हें प्रेरणा देंगे। लगातार और अंतहीन पठन से ऐसा लगता है कि हम आगे बढ़ रहे हैं लेकिन असलियत में हमें उससे कोई वास्तविक फल नहीं मिलता। इस कारण अगर तुम वाकई अपने लक्ष्य तक पहुंचना चाहते हो, खुद को सच में समझना चाहते हो तो तुम्हें अभ्यास करना होगा। किताबें सिर्फ तुम्हें ज्ञान दे सकती हैं। तुम्हें कदम उठाकर उस ज्ञान का प्रयोग मनचाहे परिणाम पाने में करना होगा। जैसे-जैसे तुम प्रवचनों के हिसाब से अपने जीवन में नए-नए कदम उठाते जाओगे, तुम्हें अपने पिछले कदमों की खामियों के बारे में पता चलता जाएगा। इस तरह तुम लगातार बेहतर होते जाओगे।
भविष्य का पूर्वानुमान नहीं करना चाहता
‘मैं भविष्य का पूर्वानुमान नहीं करना चाहता। मुझे सिर्फ वर्तमान को बेहतर बनाने की चिंता है। ईश्वर ने मुझे ऐसी कोई शक्ति नहीं दी है कि मैं गुजरते क्षण को नियंत्रित कर सकूं। फैसले लेने से रोकने वाले आंतरिक प्रतिरोध से उभरने का सबसे अच्छा रास्ता वर्तमान में रहना और जितना संभव हो स्वीकार करना है। वर्तमान में रहने का सबसे ज्यादा लाभ आने वाले ऐसे पल की चिंता से बच जाना है जिस पर कोई इंसानी बस नहीं। साथ ही इस तरह मन के उस प्रतिरोध से भी बचा जा सकता है जो भविष्य की नकारात्मक कल्पना करके हमें फैसले लेने से रोकता है। इस तरह बिना भटके हम अपना काम करते रह सकते हैं। वर्तमान में रहना भी एक तरह की आदत है जो अभ्यास से हमारे अंदर मजबूत हेाती है।
पूर्णता आश्वस्त होना नासमझी
अपनी बुद्धिमत्ता के बारे में पूर्णत: आश्वस्त होना नासमझी है। यह याद रखना बहुत फायदेमंद है कि सबसे मजबूत व्यक्ति भी मजबूत कमजोर हो सकता है और सबसे बुद्धिमान भी सबसे बड़ी गलती कर सकता है। वह किसी भी दूसरे की तरह अपनी हर गलती के लिए खुद को जिम्मेदार मानते हैं। साथ ही उन्होंने विनम्र होने की जरूरत बताते हैं कि हम सब अपनी-अपनी गलतियों को सुधार सकें। किसी भी व्यक्ति के असाधारण कार्यों अथवा अनैतिक कार्यों को देखकर हम उसके बारे में कोई भ्रम पाल लें तो ऐसा करने से आपसी दूरी ही बढ़ेगी। उस दोनों स्थितियों में तुम महसूस करोगे कि तुम उनके जैसे नहीं हो सकते। ऐसे में यह ध्यान रखना जरूरी है कि हर कोई सिर्फ एक इंसान है और कोई भी किसी दूसरे से ज्यादा कीर्तिमान रच सकता है। यह भी याद रखना चाहिए कि इंसान होने के नाते हर कोई गलती कर सकता है। किसी भी व्यक्ति के बारे में पूर्वानुमान लगाने से बचें, इससे अनचाहे झगड़े ही होंगे और तुम्हारे अंदर निराशा घर कर लेगी।
खुद पर भरोसा रखो
पहले वे तुम्हें नकारेंगे, फिर वे तुम पर हंसेंगे, फिर वे तुमसे लड़ेंगे और फिर तुम जीत जाओगे। अपने विचारों के हिसाब से अनवरत काम करते रहो। तब ऐसा मौका जरूर आएगा कि तुम्हें रोकने वाले विरोधियों की शक्ति क्षीण हो जाएगी। वे खुद ही तुम्हारा रास्ता छोड़ देंगे। इतना ही नहीं तुम्हें आगे बढ़ने से रोकने वाला आंतरिक प्रतिरोध और तुम्हारे मन की विध्वंशक मानसिकता कमजोर हो जाएगी। यह सब संभव है, बस तुम यह खोजों कि तुम क्या करना चाहते हो। फिर उसे करने के आतंरिक प्रेरणा भी तुम पा लोगे जो तुम्हें आगे बढ़ाती जाएगी। गांधी के सफल होने की सबसे बड़ी ताकत अपने काम से पीछे न हटना थी। तुम जितनी उम्मीद करोगे, सफलता उससे ज्यादा समय बाद तुम्हें मिलेगी लेकिन तुम्हें हिम्मत नहीं हारनी है। गांधी की तरह हास्य का हाथ पकड़े रहो, उन्होंने कहा था हास्य कठिन से कठिन समय को आसान बनाने का नजरिया देता है।
दूसरों के अच्छे गुणों से सीखो
मैं केवल दूसरों के अच्छे गुणों को देखता हूं। इसका मतलब यह नहीं कि मैं दोषमुक्त हूं, मैं बस दूसरों के दोषों की जांच नहीं करना चाहता। जो इंसान अपने साथियों के साथ मिलकर समाज हित में काम करता है, वह महान बनता चला जाता है। नेतृत्व का मतलब हट्टे-कट्टे शरीर वाला व्यक्ति होना नहीं बल्कि ऐसी शख्सियत बनना है जो सबको साथ लेकर आगे बढ़े। हर किसी में कोई अच्छा तो कोई बुरा गुण है। तुम्हें सिर्फ लोगों के अच्छे गुणों का चुनाव करना है। लोगों को महत्व देने से न सिर्फ तुम उनके जीवन को बेहतर बनाते हो, बल्कि एक समय के बाद तुम्हें ठीक वही परिणाम मिलने शुरू हो जाते हैं जो तुम चाहते थे। इस तरह सकारात्मक ऊर्जा का एक तंत्र तैयार होता है जो आगे और लोगों का मददगार बनता है।
विचार और काम में समानता हो
असली खुशी तब है जब आपके विचार, आपकी बातें और आपके काम में समानता हो। अपने व्यक्तित्व में गांधी की तरह सामाजिक कौशल लाने के लिए जरूरी है कि हमारे विचार, शब्द और कर्मों में कोई अंतर न हो। साथ ही लगातार अपने विचारों को शुद्ध करने का प्रयास करते रहेा। हर व्यक्ति संवाद की प्रमाणिकता पर भरोसा करता है पर ऐसा प्रभावी संवाद तब ही संभव है जब तुम हो कह रहे हो, वो तुम्हारे व्यक्ति की सच्ची झलक देता हो। जब तुम्हारे भाव और काम एक जैसे हों तो उससे पैदा होने वाला भाव बहुत आनंद देता है। तुम खुद में बहुत मजबूत महसूस करते हो। जब तुम्हारे कहने और सोचने में अंतर होगा तो इससे तुम अपने व्यक्तित्व को ही खत्म करोगे।
सतत विकास जीवन का नियम
सतत विकास जीवन का नियम है लेकिन जो व्यक्ति लगातार बिना रुके और बिना किसी गलती के आगे बढ़ने का हठ करता रहता है, वह असल में एक मिथ्या स्थिति में है। हम खुद में सुधार लाने के लिए मेहनत कर सकते हैं। अपनी आदतों की समीक्षा कर सकते हैं और इस तरह अपने बारे में और दुनिया को लेकर नई समझ बना सकते हैं। इस प्रक्रिया में कभी ऐसा लग सकता है कि हमारा अभ्यास छूट गया, कई बार अपने काम को लेकर नासमझी जैसे भाव आ सकते हैं। कभी यह भी लग सकता है कि हम जो कर रहे हैं और जो कह रहे हैं, उसमें अंतर है। लेकिन यह सब इस पूरे सफर का हिस्सा है। अगर कभी तुम्हें यह सब महसूस न हो तब तुम्हें जरूर चिंता करनी चाहिए कि कुछ जरूर गलत हुआ है।