मुंबई। आ. रविशेखरसूरीश्वरजी म. सा. की निश्रा में नेमानी वाड़ी, ठाकुरद्वार के प्रांगण में आज पं. ललितशेखरविजयजी म. सा. ने “18 पापस्थानक” के दूसरे पाप “मृषावाद” विषय पर प्रवचन दिया।
मृषावाद यानी झूठ बोलना। तीर्थंकरों ने सदा सत्य बोलने का नहीं बोला पर झूठ मत बोलो ऐसा फरमाया हैं, ऐसा सत्य बोलो जो प्रिय या हितकारी हो, किसी को ठेस पहुचाये वैसा सत्य भी झूठ के समान ही होता हैं। क्रोध, मान, माया और लोभ इन 4 कारणों से झूठ बोला जाता हैं।
दूसरे स्थूल मृषावाद विरमण व्रत के 5 अतिचार यानी झूठ के 5 प्रकार के पाप 1. सहस ही जैसे तैसे झूठ बोल देना, 2. दूसरों के रहस्यों को उजागर कर देना, 3. खुद की पत्नी या पति की मर्म (गुप्त) बातों को जाहेर कर देना, 4. झूठे उपदेश देना और 5. झूठे लेख वगैरा लिखना। वचन के कारण आत्मा का कल्याण हो वो वचनगुत्ति और आत्मा को दंड मिले वो वचनदंड।
एकेन्द्रिय जीवों के पास सिर्फ स्पर्शनेन्द्रिय होती हैं, बेइंद्रिय से पंचेन्द्रिय जीवों में रसनेन्द्रिय (जीभ) होती हैं, मनुष्य भव में बोलने वाली जीभ मिली हैं अगर उसका गलत इस्तेमाल करके भव बर्बाद कर देंगे तो 52 लाख योनि वाले एकेन्द्रिय जीवों के अनंतकाल भव के बाद बेइंद्रिय जीव का भव मिलेगा और पंचेन्द्रिय मनुष्य भव फिर से अनंतकाल के बाद मिलेगा। हमारी वाणी के शब्द अल्प होने चाहिए, उनमें मिठास होनी चाहिए और मार्मिक बोध भी होना चाहिए।
वाणी के गुण, मधुरम यानी मीठा बोलना, निपुण यानी होशियारी पूर्वक बोलना, स्तोकम यानी अल्प या कम बोलना और अवसरोचित यानी अवसर आने पर बोलना।
किशन सिंघवी और कुणाल शाह के अनुसार ठाकुरद्वार प्रवचन में संघ के पदाधिकारी और समर्पण ग्रुप के कार्यकर्ताओं के अलावा सैकड़ों श्रावक-श्राविकाओं की उपस्थिति रही। सोमवार को झालो की मंदार संघ अध्यक्ष मोहन पामेचा के नेत्रत्व मे 2021 चातुर्मास विनती करने को पधारे।
जो सत्य किसी को ठेस पहुचाये वो सत्य भी झूठ के समान ही होता हैं: ललितशेखरविजयजी म. सा.
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