पेरिस:संयुक्त राष्ट्र ने मंगलवार को कहा कि एचआईवी की वजह से होने वाली मौतों की संख्या घटकर पिछले साल सात लाख 70 हजार हो गई, जो साल 2010 के मुकाबले तकरीबन 33 फीसदी कम है। हालांकि, संयुक्त राष्ट्र ने चेतावनी दी कि इस बीमारी के उन्मूलन के वैश्विक प्रयास अवरुद्ध हो रहे हैं क्योंकि वित्तपोषण बंद हो रहा है।
यूएनएड्स ने अपनी वार्षिक रिपोर्ट में कहा कि एक अनुमान के मुताबिक फिलहाल तकरीबन 3.79 करोड़ लोग एचआईवी से संक्रमित हैं। इनमें से 2.33 करोड़ लोगों की ‘एंटी रेट्रोवाइरल थेरेपी’ तक पहुंच है।
1990 के दशक के मध्य में एड्स ने भयंकर महामारी का रूप ले लिया था। तब से इस रोग की रोकथाम में हुई प्रगति को सामने रखते हुए रिपोर्ट में बताया गया है कि 2017 में इस रोग से 8,00,000 मारे गये थे जो पिछले साल घटकर 7,70,000 हो गये।
वहीं दूसरी ओर दुनिया भर में भूख से निपटने के तमाम प्रयासों के बावजूद पिछले तीन वर्ष में ऐसे लोगों की संख्या बढ़ी है जिन्हें पर्याप्त भोजन नहीं मिल रहा है और हर नौ में से एक व्यक्ति भूख से पीड़ित है। संयुक्त राष्ट्र की सोमवार (15 जुलाई) को जारी एक रिपोर्ट के मुताबिक विश्व में वर्ष 2018 में 82 करोड़ से अधिक लोगों के पास खाने के लिए पर्याप्त भोजन नहीं था, जबकि वर्ष 2017 में यह संख्या 81.1 करोड़ थी। यह स्थिति 2030 तक विश्व को ‘भुखमरी से मुक्त’ करने के सतत विकास लक्ष्य की राह में बहुत बड़ी बाधा है। वहीं दूसरी ओर दुनिया के कई देशों में अधिक वजन और मोटापे की समस्या विकराल रूप धारण कर रही है।
रिपोर्ट के मुताबिक जिन देशों में आर्थिक विकास दर धीमी है, खास तौर पर मध्य आय वर्ग वाले देश तथा ऐसे देश जो ‘इंटरनेशनल प्राइमरी कमोडिटी ट्रेड’ पर पूरी तरह निर्भर हैं, उनमें भूख से पीड़ति लोगों की समस्या काफी गंभीर रूप अख्तियार कर रही है। इसके अलावा कई देशों में आय की असमानता के कारण भी बड़ी संख्या में गरीब और हाशिये के लोगों को पयार्प्त भोजन उपलब्ध नहीं हो पा रहा है। ऐसे लोग आर्थिक मंदी और संकट से उबर पाने में सक्षम नहीं हैं।
रिपोर्ट के अनुसार सबसे खराब स्थिति अफ्रीका में है क्योंकि यहां भूख से पीड़ित लोगों की संख्या विश्व में सर्वाधिक है। चिंता की बात यह है कि ऐसे लोगों की संख्या लगातार बढ़ती ही जा रही है। पूर्वी अफ्रीका में आबादी की एक तिहाई हिस्सा अल्पपोषित है। जलवायु, संघर्ष तथा आर्थिक मंदी पर्याप्त भोजन उपलब्ध होने की दिशा में बहुत बड़ी चुनौती हैं। वर्ष 2011 से अफ्रीका के आधे से अधिक देशों में आर्थिक मंदी के कारण भूख से पीड़तिों की संख्या बढ़ी है।