आदित्य तिक्कू।।
इस वर्ष अभी तक एक्यूट इंसेफेलाइटिस सिंड्रोम से 132+ बच्चों के जीवन की ज्योति बुझ चुकी है। देश के स्वास्थ्य मंत्री हर्षवर्धन ने आश्वासन दिया है कि महत्वपूर्ण कदम उठाये जायेंगे और सुशासन के प्रतीक नीतीश कुमार ने तकरीबन 17 दिनों बाद मौतों का भी जायजा ले लिया है व संवेदना भी व्यक्त कर दी है और हमने सरकार और विपक्ष को निकम्मे से लेकर निर्दयी जैसे शब्दों से सुशोभित करके सोशल मीडिया पर परोस भी दिया है। सरल व स्पष्ट शब्दों में कहा जाये तो सबने अपना-अपना इस वर्ष का चमकी बुखार पर फ़र्ज़ पूरा कर दिया है। जी हां, यह कटु लग सकता है परन्तु सत्य है। अन्यथा यह कैसे सम्भव है कि 2014 में भी 139 बच्चों की मौत हो गई थी, 2012 में 178 बच्चों की मौत हो गई थी। कोई ऐसा साल नहीं गुज़रता है जब यहां अप्रैल से लेकर जून के बीच बच्चों की मौत की ख़बरें नहीं आती हैं। भावुक होने के लिए हम सब 2012 में भी भावुक हुए थे, 2014 में भी हुए होंगे और 2019 में भी हो ही रहे हैं। एक क्षण रुकिये और सोचिये हम भावुक है या ढोंगी? किसी को उत्तर देने की जरुरत नहीं है बस सोचने की जरुरत है।
109+ बच्चों की मौत हो चुकी है। यह आधिकारिक आंकड़ा है। मीडिया में आंकड़ा तो 130+ पार कर गया है। इन दोनों में से कोई एक हमें मूर्ख बना रहा है और हम बन रहे हैं, कुछ आदत सी भी हो गयी है।
श्री कृष्ण मेडिकल कालेज अस्पताल के कुछ वीडियो लेकर तड़क-भड़क करने से कुछ नहीं होगा। आप अभी भी स्वास्थ्य से जुड़े असली मसलों से भाग रहे हैं। यह एक दिन का मामला नहीं है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पहली बार श्री कृष्ण मेडिकल कालेज गए। इतने दिनों से इस घटना पर रिपोर्टिंग हो रही है … जी हां आप ने भी क्रांति की मशाल जलायी हुई है शायद उसी की रौशनी में जब मुख्यमंत्री अस्पताल जाते हैं तो उन्हें दिखता है कि अस्पताल में डाक्टर नहीं हैं और साफ-सफाई ठीक नहीं है। यह तब पता चला जब मुख्यमंत्री से पहले बिहार के स्वास्थ्य मंत्री जा चुके हैं। केंद्र के स्वास्थ्य मंत्री वहां जा चुके हैं। इसके बाद भी अगर अस्पताल की सफाई ठीक नहीं है और वहां पर्याप्त डाक्टर नहीं हैं तो सवाल वही है कि इन दौरों से क्या हासिल हुआ?
सुशासन बाबू यहां के आईसीयू वार्ड में जाते हुए दौरे की औपचारिकता पूरी कर रहे हैं या बिहार के स्वास्थ्य व्यवस्था की अपनी बनाई तस्वीर को देख रहे थे? श्री कृष्ण मेडिकल कालेज बिहार के पहले मुख्यमंत्री के नाम पर बना है। इसका उद्घाटन भी बिहार के मुख्यमंत्री दारोगा प्रसाद राय ने किया था। आज यहां एक मुख्यमंत्री ही तो दौरा कर रहे थे लेकिन 59 साल के इतिहास में इस मेडिकल कालेज में बाल रोग विशेषज्ञ बनाने के लिए पोस्ट ग्रेजुएट की सीट नहीं है। यह मेडिकल कालेज है, पढ़ाई भी होती है और यहां अस्पताल भी है। अगर इस अस्पताल की यह हालत है कि इतनी तबाही के बाद मुख्यमंत्री को डाक्टर कम नज़र आया तो फिर बाकी की क्या स्थिति होगी आप अंदाज़ा कर सकते हैं और सोशल मीडिया पर विलाप कर सकते है।
सन 1970 में एसके मेडिकल कालेज की स्थापना हुई थी। इतना पुराना मेडिकल कालेज है और यहां सर्जरी और बाल रोग विभाग में पोस्ट ग्रेजुएट की सीट नहीं है। लेकिन बिहार के प्राइवेट मेडिकल कालेजों में पोस्ट ग्रेजुएट की सभी सीटें हैं। इसका संबंध धंधे से है, हल्का शब्द प्रतीत हो सकता है पर सटीक है।
यह सब आप को क्यों बता रहा हूं? यह जानने से आपको क्या फायदा? एक फायदा है, फेसबुक पोस्ट- ट्वीटर पर ट्वीट कर सकते है। आप लिखिए जब बिहार का स्वास्थ्य बजट ही 7000 करोड़ का है तो 1500 बिस्तरों वाला सुपर स्पेशियालिटी अस्पताल बनाने के लिए 1500 करोड़ और 2500 बिस्तरों वाले सुपर स्पेशियालिटी वाला अस्पताल बनाने के लिए 2500 करोड़ किस खाते से आएगा? कौन इतना पैसा देगा? 2017-18 के बजट में बिहार ने अस्पताल बनाने के लिए 819 करोड़ का ही बजट रखा था। 2018 में बिहार कैबिनेट ने एक फैसला लिया था कि पटना मेडिकल कालेज को दुनिया का सबसे बड़ा अस्पताल बनाएंगे। वहां 1700 बेड हैं जिसे बढ़ाकर 5462 बेड किया जाएगा। इसे पूरा होने में सात साल लगेंगे और बजट होगा 5540 करोड़। आप खुश हो जाएंगे सुनकर। लेकिन पूछिए एक सवाल, डाक्टर कहां से आएंगे? इसकी क्या तैयारी है? क्या बिहार के मेडिकल कालेजों में मेडिकल की सीट बढ़ाई गई हैं? सरकारी अस्पताल में सैलरी कम है, पेंशन नहीं है इसलिए भी डाक्टर नहीं आ रहे हैं।
यदि 100+ बच्चों की मौत न होती तो हमारी सरकार ना भावुकता दिखती ना ही हम। स्वार्थ की कीचड़ से बाहर निकालिये अन्यथा कल हम अस्पताल में होंगे, कोई और मौत की नुमाइश कर रहे होंगे।
सोचिये- सवाल कीजिए पर मौत की नुमाइश नहीं
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