- तनाव मुक्ति का साधन है प्रेक्षाध्यान – मुनिश्री जिनेश कुमार जी
साउथ कोलकाता। युगप्रधान आचार्य श्री महाश्रमण जी के सुशिष्य मुनिश्री जिनेश कुमार जी ठाणा 3 के सानिध्य में प्रेक्षा वाहिनी कोलकाता के तत्वावधान मे प्रेक्षाध्यान कार्यशाला का आयोजन साउथ कोलकाता तेरापंथी सभा द्वारा आयोजित कि गई। इस अवसर पर मुनि श्री जिनेश कुमार जी ने कहा जो व्यक्ति वर्तमान के प्रति जागरुक होता है वह वास्तव में ही अतीत और भविष्य के प्रति जाग जाता है इसलिए वर्तमान का बहुत बड़ा मूल्य हैं। हम इससे यथार्थ परिप्रेक्ष्य में समझे। वर्तमान को संवारने में जागरूकता की महत्वपूर्ण भूमिका रहती है। जागरुकता के चार सूत्र है- ध्यान चेतना का विकास, व्रतचेतना का विकास, उपासना का विकास व तप चेतना का विकास। ध्यान अतीत को पढने का सक्षम माध्यम हैं। ध्यान के द्वारा ही व्यक्ति में अपने उत्तर दायित्व का भान होता है। ध्यान का अर्थ है विकल्पों का संयम करना। ध्यान निर्विचारता की साधना है। ध्यान से व्यक्ति नई दिशा को प्राप्त होता है। ध्यान स्वभाव परिवर्तन व जीवन को सुसंस्कृत बनाने की प्रक्रिया है।
उन्होंने आगे कहा- वर्तमान युग अवसाद का युग हैं। तनाव में खिंचाव आता है बिमारियां का जन्म होता है। तनाव से मुक्ति पाने का साधन प्रेक्षाध्यान है। भगवान महावीर ने साधना काल में तप व ध्यान के द्वारा कर्मों के क्षय करके केवलज्ञान को प्राप्त किया। आचार्यश्री तुलसी व आचार्य श्री महाप्रज्ञजी ने भगवान महावीर की ध्यान साधना पद्धति को पुनजिवित किया। मुनिश्री परमानंद जी ने कहा- प्रेक्षाध्यान चित्त शुद्धि का उपक्रम है। प्रेक्षाध्यान आत्म उत्थान, तनाव मुक्ति का मार्ग हैं। मुनि श्री कुणाल कुमार जी ने गीत प्रस्तुत किया।
प्रेक्षागीत का संगान प्रेक्षा प्रशिक्षकों व प्रेक्षावाहिनी के सदस्यों द्वारा किया गया । प्रेक्षाध्यान कार्यशाला में आसन- जय घोषल, प्राणायाम – सुनीता जैन, कायोत्सर्ग आध्यात्मिक वैज्ञानिक पक्ष- संजय पारख, कायोत्सर्ग -अंजू जैन, दीर्घ श्वास प्रेक्षा आध्यात्मिक पक्ष- अरूण नाहटा, श्वास प्रयोग – रश्मि सुराना, प्रेक्षा ध्यान – राकेश सिंघी, मंगल भावना- रवि छाजेड़, ने प्रशिक्षण दिया। आभार ज्ञापन मंजू सिपाणी व सिमा गिडिया ने किया। कार्यक्रम को सफल बनाने में प्रशिक्षकों का सहयोग रहा।