- कब तक बेकारी, बेरोजगारी और कोरोना की दहशत में जिएंगे लोग?
- घर-घर वोटिंग की पर्ची पहुंचाने वाले यही राजनीतिक लोग घर घर वैक्सीन क्यों नहीं पहुंचा पा रहे?
देश पिछले दो सालों से कोरोना महामारी से जूझ रहा है। इस महामारी ने देश के लोगों पर चौतरफा हमला किया है। बीमारी से मौतें हुईं, लोगों का रोजगार छिना, काम-धंधा पूरी तरह से ठप्प हो गई, लेकिन सरकार की तरफ से दी गई राहतें बिल्कुल नाममात्र साबित हुईं। देश के लोगों को उनके हाल पर छोड़ दिया गया। लॉकडाउन लगाकर उसे तोड़ने पर जुर्माना भी वसूला गया, जो अब भी जारी है। टैक्स वसूली जारी है, बैंकों की ईएमआई में कोई राहत नहीं, ब्याजदर भी वही है, पेट्रोल, डीजल, रसोई गैस की महंगाई किसी से छुपी नहीं है। सब्जी, चावल, मसाले सहित आम जरूरी चीजों के भाव आसमान छू रहे हैं। ऐसे में आम आदमी के सामने आखिर क्या रास्ता बचता है कि वह सुकून की जिंदगी जी सके। लेकिन वैक्सीनेशन को लेकर कोई भी गंभीर नजर नहीं आता। महाराष्ट्र में तो लगभग हर हफ्ते 2 दिन के लिए सरकारी सेंटरों पर वैक्सीन यह कहकर बंद कर दिया जाता है कि वैक्सीन का स्टॉक नहीं है, वहीं प्राइवेट सेंटरों पर 730, 780 एवं 1400 रुपए खर्च करने पर वैक्सीन कभी भी मिल जा रही है। सरकार आम लोगों को पर्याप्त वैक्सीन उपलब्ध कराने में पूरी तरह से फेल होने के बावजूद लोकल ट्रेन में यात्रा करने के लिए शर्त लगा रखी है कि लोकल में सिर्फ उन्हीं को यात्रा की अनुमति दी जाएगी, जिसने वैक्सीन की दोनों डोज ले ली होगी। हैरत तो तब हुई, जब मुंबई में शॉपिंग मॉल एवं सभी तरह की दुकानों को 10 बजे तक खोलने की अनुमति के दो दिन ही बीते थे कि उद्धव ठाकरे सरकार ने उन पर यह कहते हुए फिर से प्रतिबंध लगा दिए कि दुकानों में काम करने वालों को वैक्सीन की दोनों डोज लेना जरूरी है जबकि अधिकतर लोग अब तक वैक्सीन इसलिए नहीं ले पा रहे हैं, क्योंकि राज्य में वैक्सीन की कमी का रोना रोया जा रहा है। वहीं, प्राईवेट सेंटरों प्रचुर मात्रा में उपलब्ध है, जिसके लिए कीमत तय कर दी गई है।
सवाल यह है कि जब सरकार के पास वैक्सीन की इतनी किल्लत है, वह वैक्सीन ही उपलब्ध कराने में पूरी तरह से फेल है तो किस मुंह से पब्लिक पर इस तरह की शर्त लाद रही है। आखिर यह किसी से छुपा नहीं है कि मुंबई की जीवन रेखा कही जाने वाली लोकल ट्रेनें जब तक शुरू नहीं होंगी, तब तक आम लोगों की आर्थिक स्थिति सुधार हो पाना नामुमकिन है। अब तो सरकारी नाकामी के चलते राज्य के युवाओं को एक और समस्या का सामना करना पड़ रहा है। वह यह कि एक तो लोगों के पास जॉब नहीं है, वहीं कहीं अगर वैकेंसी है भी तो आवेदनकर्ता में तमाम योग्यता होने के बावजूद शर्त रखी जा रही है कि वे तभी उस जॉब के लिए अप्लाई कर सकते हैं, जब उसने वैक्सीन की दोनों डोज ले ली हो।
एक तरफ दिल्ली, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, उत्तराखंड जैसे राज्यों में तमाम सरकारें सबकुछ सामान्य करने के लिए प्रयासरत हैं और कोशिश कर रही हैं कि जल्द ही सबकुछ सामान्य हो जाए वहीं दूसरी तरफ महाराष्ट्र सरकार पब्लिक को सिर्फ डरा रही है और प्रतिबंध लगाकर अभी भी घर में बंद करने पर आमादा है, जबकि इसमें सरकारी नाकामी ही नजर आ रही है। उल्लेखनीय है कि प्रतिबंधों में ढील की घोषणा के वक्त मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने कहा था कि यदि मरीजों की संख्या में बढ़ोत्तरी के चलते अक्सीजन की खपत बढ़ती है तो फिर से राज्य में कड़क लॉकडाउन लगा देंगे। इससे सहज अनुमान लगाया जा सकता है कि सरकारें जनहित में काम कर रही हैं या पब्लिक को चूसकर उसके लिए हर रास्ता बंद कर रही हैं?
बड़े बिजनेसमैनों को छोड़ दें तो आम बिजनेसमैन पूरी तरह से घाटे और उधारी में काम कर रहा है, उसे उम्मीद है कि आने वाले समय में सबकुछ सामान्य होगा। लेकिन सरकार अभी तक तीसरी लहर को लेकर डरा रही है। महाराष्ट्र की उद्धव ठाकरे सरकार आम आदमी को बीमारी से बचाने के लिए लॉकडाउन लगाने की बात तो कर ही रही है लेकिन वेक्सीनेशन की शिथिलता और बिजनेस शुरू कैसे हों, इन सवालों और प्रयासों से मुंह चुरा रही है। पिछले दो सालों से सरकारों के रवैये से यह जाहिर होता है कि क्या सरकारें पब्लिक की परेशानियों से अनभिज्ञ हैं? क्या उन्हें नहीं पता कि आखिर कैसे जिंदगी चलती है या परिवार चलाने के लिए लोगों को किन-किन चीजों या जरूरी सुविधाओं की आवश्यकता होती है?
अगर वैक्सीनेशन की बात करें तो हमारी सरकारें कुछ भी वादा करें, लेकिन देश में वैक्सीनेशन का काम बेहद धीमी गति से चल रहा है। बताते चलें कि कोरोना के खिलाफ लड़ाई में वैक्सीनेशन ही सबसे मजबूत हथियार है। ब्रिटेन ने 68 प्रतिशन वैक्सीनेशन के बाद पाबंदियां हटा दीं, लेकिन ऐसी स्थिति से भारत समेत कई देश काफी दूर हैं। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के मुताबिक भारत में कोविड-19 के टीके की 41 करोड़ से अधिक खुराक दी जा चुकी हैं। देश भर में 18 से 44 साल के कुल 12,73,70,809 लोगों को पहली खुराक और 50,58,284 लोगों को दूसरी खुराक दी जा चुकी है जबकि सरकार ने दिसंबर तक देश के हर वयस्क नागरिक के टीकाकरण का टारगेट रखा है, लेकिन वैक्सीनेशन जिस रफ्तार से चल रहा है उस हिसाब से ये टारगेट पूरा होता हुआ नहीं दिख रहा। इस बीच दुनिया में तीसरी लहर की शुरुआत ने चिंता बढ़ा दी है। अगर आंकड़ें देखें तो हम इतने पीछे कि सरकार द्वारा किए गए सारे वादों की पोल खुल जाती है। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, हमारे देश में 20 अगस्त तक मात्र 6.3 % लोगों का ही वैक्सीनेशन किया जा चुकी है जबकि अमेरिका में 48.21%, कनाडा में 49.70%, इटली में 43.70%, ब्राजील में 15.99 %, रूस में 14.18%, जापान में 21.67 %, UAE- 12.08 %, मलेशिया- 14.00%, द. कोरिया- 12.81 % वैक्सीनेशन हुआ है। इन आंकड़ों से यदि भारत की तुलसी करें तो पता चलता है कि उनमें सबसे पिछड़े हुए देश का भी आधा वैक्सीनेशन भी हम कर पाएं हैं। ऐसे में यदि हमारी सरकारें दावा करें कि हमने कोरोना के खिलाफ मजबूत लड़ाई लड़ी है तो यह सिर्फ उनकी बेशर्मी ही होगी। यह बेहद शर्मनाक है कि केंद्र सरकार से लेकर राज्य सरकारें तक दावा कर रही हैं कि हमने कोरोना के खिलाफ बेहद मजबूत लड़ाई लड़ी लेकिन जब असली तस्वीर देखें तो ऐसे लगता है कि हमारे देश की सरकारों ने हमारे साथ जितना बड़ा मजाक किया है, शायद किसी अन्य देश ने किया होगा। सवाल यह है कि सीमित में ही घर-घर वोटिंग की पर्ची पहुंचाने वाले यही राजनीतिक लोग घर घर वैक्सीन क्यों नहीं पहुंचा पा रहे? क्या इनकी नीयत में ही खोट है?