आदित्या तिक्कू।।
तक़रीबन 100 साल पुराने अयोध्या विवाद पर 29 अक्टूबर को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई होने वाली थी। लेकिन कुल चार मिनट की सुनवाई के बाद ही सुनवाई टल गई। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अब ये जनवरी में ही तय होगा कि इस मामले की सुनवाई कब होगी। इस मामले की सुनवाई चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली तीन जजों की बेंच कर रही थी। बेंच में चीफ जस्टिस के अलावा जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस केएम जोसेफ शामिल थे। चीफ जस्टिस ने कहा कि अब जनवरी में उचित बेंच ही सुनवाई की तारीख तय करेगी।
यह एक विडंबना ही है कि जिस मामले की सुनवाई यथाशीघ्र होनी चाहिए मेरी समझ से उसमें शीघ्र न्याय की कोई किरण नहीं दिख रही है। नि:संदेह अन्य अदालतों की तरह उच्चतम न्यायालय भी मुकदमों के बोझ से दबा हुआ है, लेकिन क्या यह भयावह स्थिति नहीं है? तीन सदस्यीय पीठ केवल यह सूचना देने के लिए बैठे कि मामले की सुनवाई नई पीठ करेगी? इससे इन्कार नहीं कि सुप्रीम कोर्ट दीवाली अवकाश के बाद शीत अवकाश से भी दो-चार होगा, लेकिन अयोध्या मामले की सुनवाई टलने से तो उन्हीं लोगों की आरज़ू पूरी हुई जो इस मामले को अगले आम चुनाव तक टाल देने की दलीलें दे रहे थे। यह दुखद स्थिति हो सकता है, लेकिन यह भी एक सच्चाई है कि कुछ लोगों की दिलचस्पी इसमें है कि अयोध्या मसला अनसुलझा ही बना रहे।
इस पर हैरत नहीं कि अयोध्या विवाद की सुनवाई टलने के बाद ऐसे स्वर और सुनाई देने लगे हैं और लगेंगे कि अब कानून का सहारा लिया जाना चाहिए। अयोध्या विवाद के निपटारे में देरी के चलते लोगों की बेचैनी बढ़ना स्वाभाविक है, लेकिन उत्कंठित हो गए लोग यह ध्यान रखें तो बेहतर है कि जब कोई मामला सबसे बड़ी अदालत के समक्ष हो तब उस पर कानून बनाने की अपनी कठिनाइयां हैं। एक तो विपक्ष के सहयोग के बिना ऐसा कोई कानून बनना संभव नहीं जो अयोध्या में राम मंदिर निर्माण का रास्ता साफ करे और यदि वह बन भी जाए तो उसे अदालत में चुनौती दी जा सकती है। इससे मामला वहीं पहुंचेगा जहां अटका है। ऐसे में यही उचित है कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले की प्रतीक्षा की जाए वह अपने धैर्य का परीचय दें क्योकि यही राष्ट्र के लिए उचित होगा और राष्ट्र से प्रमुख कुछ नहीं।
अयोध्या विवाद पर चार मिनट की सुनवाई
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