‘पहला लक्ष्य गुरुदेव की आज्ञा दूसरा संयम जीवन का जागरूकता से पालना करना’
तेरापंथ धर्मसंघ में प्रबुद्ध साध्वियों की लंबी कतार है, इन सभी में शासनश्री सोमलता जी का अपना अलग ही स्थान है। कांदिवली के तेरापंथ भवन में विराजित साध्वी श्री को 14 अक्टूबर 1968 संवत 2025 कार्तिक कृष्णा अष्टमी को आचार्य श्री तुलसी की आज्ञा से तत्कालीन साध्वी प्रमुखा श्री लाडांजी ने संयमरत्न प्रदान किया। खास बात है कि यह विलक्षण मौका था क्योंकि साध्वी प्रमुखा ने पूरे धर्मसंघ में सिर्फ आपको ही दीक्षा प्रदान की है। राजस्थान में बीकानेर जिले के गंगाशहर में श्रद्धा की प्रतिमूर्ति, कल्याण मित्रा संबोधन से सम्मानित श्रीमती केसरदेवी एवं पिताश्री रतनलाल बैद के घर 9 भाई-बहनों में पांचवीं संतान के रूप में आपका जन्म हुआ था। मिडिल क्लास पास करके उम्र के 13वें वर्ष में आपने संयम पथ की ओर अग्रसर होते हुए परमार्थिक शिक्षण संस्थान में प्रवेश कर लिया तथा 4 वर्षों में स्नातकोत्तर के समकक्ष शिक्षार्जन यहां करने के बाद बीदासर में दीक्षा स्वीकार की। शासनश्री साध्वी सोमलता जी के संयम पथ के 50 वर्ष पूर्ण हो चुके हैं। इस मौके पर सुरभि सलोनी के प्रबंध संपादक दिनेश चक्रवर्ती ने आपके संयम जीवन के स्वर्ण जयंती मौके पर साध्वी श्री के आध्यात्मिक जीवन पर चर्चा की। पेश है बातचीत के प्रमुख अंश –
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सबसे पहले अध्यात्मक के बारे में बताएं। आखिर अध्यात्म क्या है?
दुनिया का प्रत्येक व्यक्ति सुख एवं शांति की कामना करता है। सुख की प्राप्ति के लिए अनेक प्रकार के साधन जुटाता है। उन साधनों से उसे जो सुख मिलता है, वह शरीर को मिलता है मन को नहीं। मन की शांति के लिए व्यक्ति को बाहर से भीतर की ओर मुड़ना होता है। आत्म दर्शन या अध्यात्म की शरण उसे शांति की अनुभूति करवाता है। इसके लिए बाहरी संशाधन अपेक्षित नहीं होते हैं। मन को इंद्रियां जब बाहर से भीतर की ओर ले जाती हैं तो अध्यात्म का सूर्योदय होता है और तब उस प्रकाश में कभी समाप्त न होने वाला आनंद व शांति का साम्राज्य स्थापित हो जाता है। वहां व्यक्ति स्वयं अपना मालिक बन जाता है। इसे ही अध्यात्म कहते हैं।
आपके अध्यात्म की ओर मुड़ने की क्या वजह रही और पहली बार अध्यात्म ने आपको कब अपनी ओर आकर्षित किया?
मुझे बचपन से ही साधु-साध्वियों का सतत सान्निध्य उपलब्ध होता रहा। उनके चरणों में बैठकर मैंने जीवन के बारे में जानने की कोशिश की। इस दिशा में साधु-साध्वियों ने मेरी जिज्ञासाओं का समाधान किया और सांसारिक सुखों की नाश्वरता का बोध कराया। जैसे-जैसे समय बीतता गया, मेरा मन बाहर के आकर्षण से हटता रहा तथा एक समय वह आया जब हम उम्र, हम विचार वाली कई बहनों ने यह निश्चय किया कि हमें उस पथ का चयन करना है, जहां कोई अपने पराए का झमेला नहीं रहता। प्राणिमात्र के साथ मैत्री का अटूट रिश्ता कायम हो जाता है। प.पू. गुरुदेव तुलसी के सान्निध्य में हमें वह सबकुछ देखने को मिला जिसकी हमारे मन में कल्पना थी और हमने संसार से विरक्त होने का निर्णय कर लिया।
सांसारिक जीवन को आप किस रूप में देखती हैं?
अपना-अपना नजरिया है। जो किसी के लिए प्यारा हो सकता है, वह किसी के लिए खारा भी हो सकता है। मुझे समस्त रिश्तों में व अनुकूलताओं में वह स्वाद नहीं आया जिसकी मुझे चाहत थी।
अध्यात्म की सबसे ज्यादा जरूरत कहां है? शहरों में या गांवों में?
यूं तो अध्यात्म की जरूरत सब जगह है, पर गांवों में मन अब भी उतना टेढ़ा नहीं हुआ है, जितना शहरों में देखने को मिलता है। ग्रामीण लोगों में आज भी प्रेम, विश्वास और सुख-दुख में सहयोग की भावना देखी जाती है। ईमानदारी, दया, सरलता के कण यत्र-तत्र बिखरे पड़े हैं। शहरों में इसकी कल्पना करना भी दुरूह है।
तेरापंथ धर्मसंघ में विशेष क्या है?
सबसे बड़ी बात इस युग में भी जबकि पुत्र पिता की बात और शिष्य गुरु की बात नहीं मानता, वहां तेरापंथ धर्मसंघ में एक छत्र गुरु का अनुशासन चलता है। मर्यादा, व्यवस्था और समर्पण की घूंटी यहां प्रवेश के साथ ही दी जाती है, जिसका असर जीवनभर रहता है। साध्वी समाज में एक साध्वी प्रमुखा होती हैं। वर्तमान में संघ महानिर्देशिका महाश्रमणी साध्वी प्रमुखा श्री कनकप्रभा जी इस पद पर सुशोभित हैं।
धर्मसंघ में महिलाओं को कहां देखती हैं?
यूं तो पूरी दुनिया में महिलाओं ने क्रांति का बिगुल बजा दिया है। आज परिवार से लेकर समाज, राष्ट्र की सीमाओं से आगे बढ़कर महिलाओं ने सुरक्षा बल और सेना में भी प्रवेश पा लिया है। इन सबके बावजूद महिलाओं का गौरव उनके सफल मातृत्व में है। तेरापंथ धर्मसंघ में क्रांतिकारी आचार्य श्री तुलसी ने महिलाओं को विकास का खुला आसमान दिया। तेरापंथ महिला मंडल ने एक लंबी छलांग लगाई और आज वह किसी की मोहताज नहीं बल्कि मार्गदर्शिका बन गई है।
अब तक की आध्यात्मिक यात्रा के बारे में बताएं, कैसी रही?
मेरे जीवन की 50 वर्षों की आध्यात्मिक यात्रा को शब्दों में बताना संभव नहीं है। यदि मां के दूध को छानकर पिया जा सके तो मेरे अनुभव बता सकती। यह शाब्दिक नहीं आंतरिक अनुभूति का विषय है। इतना कह सकती हूं कि मैंने अपने आपको जिस दिन गुरु चरणों में समर्पित किया तब से लेकर आज तक मुझे अपने बारे में किसी प्रकार की चिंता नहीं करनी पड़ी। देश प्रदेशों की यात्राएं करके अनेक लोगों को सतपथगामी बनाने के लिए प्रेरित किया। संस्कृत, हिंदी, गुजराती, पंजाबी भाषा के अध्ययन व जैनेतर साहित्य का अध्ययन किया। आगम और अन्य स्तोत्र, थोकड़े आदि कंठस्थ हैं, जिसका अध्ययन और अध्यापन दोनों कर रहे हैं। अब तक हजारों गीत बनाए व गाए हैं।
आचार्य श्री तुलसी, आचार्य श्री महाप्रज्ञ व आचार्य श्री महाश्रमण जी ने अपने समय में किस तरह मानव मात्र एवं धर्मसंघ को नये आयाम प्रदान किए?
आचार्य श्री तुलसी ने पर्दाप्रथा, मृत्युभोज, दहेजप्रथा जैसी हजारों रूढ़ियों के बंधन से समाज को उन्मुक्त किया। जीवन जीने का नया नजरिया दिया। विकास के अनेक रास्ते उद्घाटित किये। आगम संपादन करके संपूर्ण जैन समाज को एक मंच पर लाने की सार्थक पहल की। उनके द्वारा प्रवर्तित अणुव्रत आंदोलन ने जाति, वर्ण, धर्म, संप्रदाय, भाषा आदि की मजबूत दीवारों को धराशायी करके मानवता का महान संदेश दिया। आचार्य श्री तुलसी बीसवीं सदी के महान क्रांतिकारी संत थे। समण दीक्षा उन्होंने ही शुरू की।
आचार्य श्री महाप्रज्ञ जी ने जीवन विज्ञान, प्रेक्षाध्यान, अहिंसा समवाय आदि अवदानों से समाज को जागृत किया। आचार्य श्री महाश्रमण जी अहिंसा यात्रा के मार्फत नैतिकता, नशामुक्ति और सद्भावना के संदेश को जन-जन तक पहुंचाने के लिए संपूर्ण भारत ही नहीं बल्कि विदेशों की पदयात्राएं कर रहे हैं।
इसके अलावा भी साध्वी श्री ने अपने जीवन के बारे में कई बातें बताईं। उन्होंने बताया कि कांदिवली तेरापंथ भवन चतुर्मासार्थ विराजित उग्रविहारी तपोमूर्ति मुनि कमलकुमार जी उनके संसार पक्षीय अनुज सहोदर हैं इनके अलावा साध्वी श्री विनम्र यशाजी संसारपक्षीय बड़ी भाभी हैं। अनुमान लगाया जा सकता है कि जिस परिवार से तीन-तीन लोग संयम पथगामी हों, उस परिवार के अध्यात्म एवं धार्मिक प्रवृत्ति का विकास किन ऊंचाईयों पर होगा। साध्वी श्री ने बातचीत करते हुए संदेश दिया कि लोग यथासंभव ईमानदारी व सात्विक जीवन शैली बनाएं। परपीड़ा को समझें एवं उसके निवारण का प्रयास करें। नैतिक मूल्यों के विकास में सहभागी बनें। लोगों की मदद करें। मेरा पहला लक्ष्य गुरुदेव की आज्ञा का पालन करने का तथा दूसरा संयम जीवन का जागरूकता से पालना करना है। यह मेरा स्वीकृत संकल्प भी है।
शासनश्री साध्वी सोमलताजीः संयम जीवन की स्वर्ण जयंती पर विशेष साक्षात्कार
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