नई दिल्ली: सीबीआइ का अंदरूनी विवाद अब जगजाहिर हो गया है और इस झगड़े में आरोपों के छींटे सरकार के दामन तक पहुंच गए हैं। इसकी वजह आलोक वर्मा का खुद को छुट्टी पर भेजे जाने के फैसले का विरोध करना और सुप्रीम कोर्ट चले जाना तो है ही साथ ही सुप्रीम कोर्ट में आलोक वर्मा ने याचिका में सीधे मौजूदा सरकार पर जांच में दखल देने जैसे गंभीर आरोप लगाए हैं।
दरअसल, सीबीआई निदेशक आलोक वर्मा और विशेष निदेशक राकेश अस्थाना के बीच चल रहे घमासान और एक दूसरे पर लगाए गए आरोपों को देखते हुए सरकार ने सीवीसी की सिफारिश पर कल देर रात वर्मा से सीबीआइ निदेशक का कामकाज वापस ले लिया और उनकी जगह संयुक्त निदेशक एम नागेश्वर राव को सीबीआइ निदेशक का कामकाज सौंप दिया था। वर्मा ने इसे चुनौती दी है।
बुधवार को सुबह जैसे ही कोर्ट खुला वकील गोपाल शंकर नारायण ने मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई की पीठ के समक्ष मामले का जिक्र करते हुए वर्मा से सीबीआइ निदेशक पद का कामकाज छीन लिये जाने और उन्हें छुट्टी पर भेजने का आदेश रद करने की मांग की। वकील ने कोर्ट से जल्द सुनवाई की गुहार लगाई। कोर्ट ने अनुरोध स्वीकार करते हुए शुक्रवार को मामले को सुनवाई के लिए लगाने की मंजूरी दे दी। हालांकि जिस समय कोर्ट के समक्ष मामले का जिक्र किया गया था तबतक औपचारिक रूप से याचिका दाखिल नहीं हुई थी।
याचिका में कहा गया है कि दिल्ली स्पेशल पुलिस स्टैबलिशमेंट (डीएसपीई) एक्ट की धारा 4-बी के मुताबिक सीबीआइ निदेशक का दो वर्ष का तय कार्यकाल होता है सरकार ने उनका कामकाज छीनकर इस नियम का उल्लंघन किया है। कानून की धारा 4ए कहती है कि प्रधानमंत्री, नेता विपक्ष और प्रधान न्यायाधीश की एक उच्च स्तरीय कमेटी होगी जो कि सीबीआइ निदेशक की नियुक्ति करेगी और धारा 4बी 2 के मुताबिक सीबीआइ निदेशक का स्थानांतरण करने से पहले इस समिति से अनुमति लेनी होगी। वर्मा का कहना है कि इन कानूनी प्रावधानों की अनदेखी करते हुए उनसे कामकाज छीनने का आदेश जारी किया गया है। जो कि गैरकानूनी है।
जरूरी नहीं सरकार की चाही दिशा में बढ़े जांच
याचिका मे कहा गया है कि उनका 35 साल सेवा का बेदाग रिकार्ड है। और इसीलिए उन्हें दो वर्ष के लिए जनवरी 2017 में सीबीआइ निदेशक पद पर नियुक्त किया गया। उनका कहना है कि सीबीआई से उम्मीद की जाती है कि वह स्वतंत्र और स्वायत्त एजेंसी के तौर पर काम करेगी। ऐसे हालात भी आते हैं जबकि उच्च पदों पर बैठे लोगों से संबंधित जांच की दिशा सरकार की इच्छानुसार न हो।
वर्मा कहते हैं कि हाल के दिनों में ऐसे मौके आये जबकि जांच अधिकारी और अधीक्षण अधिकारी से लेकर संयुक्त निदेशक और निदेशक तक सभी कार्रवाई के बारे में एक मत थे, सिर्फ विशेष निदेशक राकेश अस्थाना का मत भिन्न था। आलोक वर्मा ने अस्थाना पर कई महत्वपूर्ण मामलों की जांचो में अड़ंगेबाजी लगाने का आरोप लगाया है और यह भी कहा है कि इसी क्रम में अस्थाना ने उनकी छवि खराब करने के लिए उन पर फर्जी आरोप लगाए जिस पर सीबीआई ने अस्थाना के खिलाफ एफआईआर भी दर्ज की। अस्थाना ने उस एफआईआर को दिल्ली हाईकोर्ट में चुनौती भी दी है।
कोर्ट को सबूत देने की बात कही
वर्मा ने कहा है कि मौजूदा परिस्थिति तक आने से जुड़े बहुत से केसों का ब्योरा है जो कि अति संवेदनशील है, इसलिए उसे याचिका में देना ठीक नहीं है। कोर्ट चाहेगा तो वे उसे मुहैया कराएंगे। याचिका में वर्मा ने भारत सरकार के अलावा केन्द्रीय सर्तकता आयोग को भी पक्षकार बनाया है। वर्मा ने कहा है कि उन्हें सीबीआइ के अधिकारियों पर पूरा भरोसा है लेकिन सरकार की इस तरह की गैरकानूनी दखलंदाजी से अधिकारियों का मनोबल गिरता है। सीबीआई को डीओपीटी से मुक्त करने और स्वायत्त करने का अनुरोध किया गया है।
कौन हैं आलोक वर्मा
आलोक वर्मा 1979 बैच के आइपीएस अधिकारी हैं। उन्हें करीब 35 साल इस सेवा में हो चुके हैं। वर्मा दिल्ली के पुलिस कमिश्नर भी रह चुके हैं। जनवरी, 2017 में वर्मा को सीबीआइ का डायरेक्टर नियुक्त किया गया था।
सीबीआइ में घमासानः डायरेक्टर आलोक वर्मा ने लगाए सरकार पर दखलअंदाजी के गंभीर आरोप
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