-राकेश तिवारी
एकवेणी जपाकर्णपूरा नग्ना खरास्थिता। लम्बोष्ठी कर्णिकाकर्णी तैलाभ्यक्तशरीरिणी ।। वामपादोल्लसल्लोहलताकण्टकभूषणा। वर्धन्मूर्धध्वजा कृष्णा कालरात्रिर्भयन्करि ।।
माँ दुर्गा जी के सातवीं शक्ति “कालरात्रि” के नाम से जानी जाती हैं। इनके शरीर का रंग घने अन्धकार की तरह एकदम काला है। सिर के बाल बिखरे हुए हैं। गलेमें विद्युत की तरह चमकने वाली माला है। इनके तीन नेत्र हैं। ये तीनों नेत्र ब्रम्हांड के सदृश गोल हैं। इनके विद्युत समान चमकीली किरणें निःसृत होती रहती हैं। इनकी नासिका के श्वास-प्रश्वास से अग्नि की भयंकर ज्वालाएं निकलती रहती हैं। इनका वाहन गर्दभ-गदहा है। ऊपर उठे हुए दाहिने हाथ की वरमुद्रा से सभी को वर प्रदान करती हैं। दाहिनी तरफ का नीचेवाला हाथ अभयमुद्रा में है। बायीं तरफ के ऊपरवाले हाथ में लोहे का काँटा तथा नीचेवाले हाथ में खड्ग (कटार) है।
माँ कालरात्रि का स्वरूप देखने में अत्यंत भयानक है, लेकिन ये सदैव शुभ फल ही देनेवाली हैं। इसी कारण इनका एक नाम ‘शुभङ्करी’ भी है। अतः इनसे भक्तों को किसी प्रकार भी भयभीत अथवा आतंकित होने की आवश्यकता नहीं है।
दुर्गापूजाके सातवें दिन माँ कालरात्रि की उपासना का विधान है। इस दिन साधक का मन ‘सहस्त्रार’ चक्र में स्थित रहता है। उसके लिए ब्रम्हांड की समस्त सिद्धियों का द्वार खुलने लगता है। इस चक्र में स्थित साधक का मन पूर्णतः माँ कालरात्रि के स्वरूप में अवस्थित रहता है। उनके साक्षात्कार से मिलने वाले पुण्य का वह भागी हो जाता है। उसके समस्त पापों-विघ्नों का नाश हो जाता है। उसे अक्षय पुण्य-लोकों की प्राप्ति होती है।
माँ कालरात्रि दुष्टों का विनाश करनेवाली हैं। दानव, राक्षस, भूत, प्रेत आदि इनके स्मरणमात्र से ही भयभीत होकर भाग जाते हैं। ये गृह-बाधाओं को भी दूर करने वाली हैं। इनके उपासक को अग्नि-भय, जल-भय, जन्तु-भय, शत्रु-भय, रात्रि-भय आदि कभी नहीं होते। इनकी कृपा से वह सर्वथा भय-मुक्त हो जाता है।
माँ कालरात्रि स्वरूप-विग्रह को अपने हृदय में अवस्थित करके मनुष्य को एकनिष्ठ भाव से उनकी उपासना करनी चाहिए। यम, नियम, संयम का उसे पूर्ण पालन करना चाहिए। मन, वचन, काया की पवित्रता रखनी चाहिए। वह शुभङ्करी देवी हैं। उनकी उपासनासे होने वाले शुभों की गणना नहीं की जा सकती। हमें निरन्तर उनका स्मरण, ध्यान और पूजन करना चाहिए।