– डॉ. शम्भू पंवार
साहित्य जगत की अनमोल शख्सियत, हंसमुख, मिलनसार, मुखर अभिव्यक्ति की धनी अंतरराष्ट्रीय साहित्यकार डॉ. निक्की शर्मा ‘रश्मि’ बिहार के ग्रामीण अंचल से निकलकर महानगर मुंबई में अपनी लेखनी से राष्ट्रीय ही नहीं अपितु अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी विशिष्ठ पहचान कायम की है। साहित्य जगत में आपका नाम बड़े सम्मान के साथ लिया जाता है।डॉ. निक्की शर्मा साहित्य लेखन के साथ-साथ सामाजिक सरोकारों में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है। जैसे पर्यावरण जागरूकता, ग्रीन इंडिया परिवार और नीम, पीपल तुलसी अभियान के तहत समाज में जागरूकता करने का निरंतर प्रयास कर रही हैं।
डॉ निक्की शर्मा ‘रश्मि’ को अंतरराष्ट्रीय व राष्ट्रीय सम्मानों से संम्मानित किया जा चुका है।अभी तक 600 से करीब सम्मान मिल चुके है। प्रस्तुत है उनसे बातचीत के कुछ अंशः-
प्रश्न. आपको लिखने का शौक कब से आया?
उत्तर- मुझे बचपन से लेखन का शौक रहा है। नोटबुक के पीछे चार,पाँच लाइनें लिखी ही मिलती थी तब अपने लेखन पर विश्वास नहीं था। शायद मेरे दादाजी की लिखने की कला मुझ में आई थी। थोड़ी बड़ी हुई तो समझ में आया कविताएं मेरे दिल में बसी थी। हर वक्त हर चीज को अपने अलग नजरिए से देखती थी और डायरी में लिख डालती थी।
प्रश्न -शुरुआती दिनों में आपके लेखन पर किस तरह की प्रतिक्रिया आई घर वालों से और बाहर वालों से?
उत्तर- रिश्तेदारों में उपहास हमेशा उड़ता रहा।माँ का साथ हमेशा रहा।रिश्तेदारों में उस समय उपहास उड़ाया जाता था क्योंकि उन सब का सोचना था स्कूल की पढ़ाई ही सबकुछ है।सामना करना पड़ा था उपहास का और सालों बाद भी जब शुरुआत की तब भी उपहास उड़ा लेकिन मुझे ना तब परवाह थी ना आज हुई।मेरे गाँव परसिया में सब बहुत खुश होते हैं मेरी लेखनी पर।
बाहरवाले लोगों को हमेशा ही पसंद आई थी गलतियां भी बताते थे और हौसला भी बढ़ाते थे। आज भी उनसबका साथ मिलता रहता है।कुछ नया सिखने सिखाने का दौर चलता रहता है।
प्रश्न-परिवार का साथ किस तरह रहा?
उत्तर- पढ़ाई के दौरान परिवार वालों को यह पसंद नहीं था क्योंकि उन्हें लगता था पढ़ाई क्लास की पढ़ाई ही सबसे बड़ी बात होती है और क्लास की पढ़ाई के लिए डांट पड़ती थी।लेखन के लिए डॉट भी लगाते लेकिन कहते हैं कि दिल है कि मानता नहीं और मैंने चोरी छुपे अपनी डायरी में अपनी कविताएं लिखती। लेकिन कहीं भेज नहीं पाती थी। बीए के बाद मैंने अखबारों और पत्रिकाओं में रचना भेजना शुरू किया।दिल्ली प्रेस की पत्रिका में छपी और पत्रिका के साथ बहुत सारे पत्र आएं जो उन सब के थे जिन्होंने मेरी रचना पढ़ी थी और तारीफ की थी, लेकिन फिर भी घर में डांट पड़ी और लेखन बंद करना पड़ा था।
प्रश्न- पति और बच्चों के साथ आपने दोबारा शुरुआत की कैसे और किस परिस्थिति में?
उत्तर- शादी के बाद परिवार में रम गई। नई जगह नहीं परेशानियां सामना कर रही थी पति के साथ बिजनेस में लग गई थी। बच्चे और फिर परिवार की जिम्मेदारियां बढ़ती ही चली गई। जहां मैंने अपने आप को खो दिया था। 12 साल यूं ही बीत गए अपने आप को खोते हुए। कहां गई वो लेखन कहां गए वो जज्बात जो कागज कलम मिलते ही उकेर दिया करती थी। मन में आई विचारों को बहुत बार लिखने की कोशिश की लेकिन समय, हालात, परिस्थिति जवाब दे जाते और फिर मन में इच्छाओं को दबा कर रह जाती थी।
बच्चों के बड़े होने पर मन में फिर एक हुक सी उठी और पति का सहयोग रहा और फिर से लेखन की इच्छा जागी। पति ने डायरी कलम मेरे हाथों में थमाया।तनाव से घिरी थी मैं। पति ने समझा और तनाव से निपटने का बेहतर तरीका उन्हें यह सुझा था। परेशानियों से बाहर आने का यह तरीका मुझे भी बहुत पसंद आया कविता लेखन अखबारों में भेजती, छपते और फिर पुरस्कारों का सिलसिला शुरू हुआ।
प्रश्न-.आपकी पुस्तक “एहसास” के बारे में बतायें।
उत्तर- मेरी पहली पुस्तक “एहसास” 2019 में आई। जिसके कवर पेज को होटल ताज में सम्मानित किया गया और पुस्तक “एहसास” को भी छोटी कहानियों के लिए सम्मानित किया गया।एहसास छोटी कहानियों का संग्रह है।
प्रश्न-आप लेखन के क्षेत्र में जिस मुकाम पर है इसका श्रेय किसे देना चाहेंगी ।
उत्तर- मां के साथ बड़ी बहन नीतु दी का साथ हमेशा रहा। जहां खुद को खो चुकी थी। जिम्मेदारियों में आज खुद का नाम मिला। पिता, पति के नाम से नहीं आज मुझे मेरे नाम से जाना जाता है। आज में जिस मुकाम पर हु उसमे मेरे पति का साथ और मां का विश्वास ओर बड़ी बहन की प्रेरणा की वजह से हु।बड़ी बहन नीतू दी ने हमेशा साथ दिया हर सम्मान पर हौसला बढ़ाया। परिवार का साथ हो तो सबसे बड़ी खुशी होती है। माँ बड़ी बहन और पति को दिल से धन्यवाद कहना चाहुँगी और यही अपेक्षा रहेगी उनका आशीर्वाद हमेशा मिलता रहे।
प्रश्न-आप हमारे समाज की महिलाओं को क्या संदेश देना चाहेंगे?
उत्तर- महिलाएं कमजोर व अबला नहीं है ।अगर कमजोर होती तो इतिहास में उनका नाम दर्ज नहीं होता। शुरू से महिलाएं ताकतवर है और रहेंगी बस जरूरत है उन्हें अपनी शक्ति को जानने और पहचानने की। किसी के दबाव में झुकें नहीं सही गलत का चुनाव कर आगे बढ़ते रहें। महिलाएं दूसरी महिलाओं को आगे बढ़ने की प्रेरणा दें, सहायता करें और यह कहावत की “महिला ही महिलाओं के दुश्मन होती है” इसे खत्म करने की कोशिश करें।नारी अब अबला नही सबला हो गयी है। बस यह संदेश हर महिलाओं तक पहुंचने चाहिए।
विश्व नारी दिवस की आपको अनंत शुभकामनाएँ।