ऑर्थराइटिस में जोड़ों में सूजन आ जाती है, जिसके कारण मरीज को चलने-फिरने में परेशानी होने लगती है।आज की लाइफस्टाइल में लोग बिल्कुल गतिहीन हो गए हैं, जिसका बुरा असर उनके शरीर और हड्डियोंपर पड़ता है। यही वजह है कि आर्थराइटिस (खासतौर पर घुटनों का आर्थराइटिस) महामारी का रूप ले रहाहै। उम्र के साथ होने वाला आर्थराइटिस ऑस्टियोऑर्थराइटिस कहलाता है। भारत में ऑस्टियोऑर्थराइटिसआमतौर पर 55-6० की उम्र में होता है, लेकिन आज कम उम्र में भी लोग आर्थरिटिस और अपंगता काशिकार बन रहे हैं।
नोएडा स्थित जेपी हॉस्पिटल के डिपार्टमेंट ऑफ ऑर्थोपेडिक्स एंड जॉइंट रिप्लेसमेंट के एसोसिएट निदेशकडॉक्टर गौरव राठोर का कहना है कि अक्सर लोग ऑस्टियोपोरोसिस और ऑस्टियोआर्थराइटिस को एक हीसमझ लेते हैं। ऑस्टियोऑर्थराइटिस में जोड़ों में डीजनरेशन होने लगता है, वहीं ऑस्टियोपोरोसिस मेंहड्डियों में मांस कम होने लगता है और हड्डियां टूटने या फ्रैक्चर होने की आशका बढ़ जाती है।
ऑस्टियोपोरोसिस को मूक रोग कहा जा सकता है क्योंकि अक्सर सालों तक मरीज को इसका पता ही नहींचलता, जब हड्डियां टूटने लगती हैं, तब इस बीमारी का पता चल पाता है। इसमें मरीज को दर्द तभी दर्द होता है जब फ्रैक्चर हो जाता है।
डॉ. राठोर ने कहा कि आर्थराइटिस का सबसे आम प्रकार है ऑस्टियोआर्थराइटिस। इसका असर जोड़ों, विशेषरूप से कूल्हे, घुटने, गर्दन, पीठ के नीचले हिस्से, हाथों और पैरों पर पड़ता है। ऑस्टियोआर्थराइटिस आमतौरपर कार्टिलेज जॉइंट में होता है। कार्टिलेज हड्डियों की सतह पर मौजूद सॉफ्ट टिश्यू है, जो ऑर्थराइटिस केकारण पतला और खुरदरा होने लगता है। इससे हड्डियों के सिरे पर मौजूद कुशन कम होने लगते हैं औरहड्डियां एक दूसरे से रगड़ खाने लगती हैं। आर्थराइटिस के लक्षण इसके प्रकार पर निर्भर करते हैं। इसमें दर्द, अकड़न, ऐंठन, सूजन, हिलने-डुलने या चलने-फिरने में परेशानी होने लगती है।
उनके अनुसार, आर्थराइटिस का मुख्य कारण जीवनशैली से जुड़ा है। भारतीय आबादी में खान-पान के तरीकेभी इस बीमारी का कारण बन चुके हैं। शहरी लोग आजकल कम चलते-फिरते हैं, जिससे उनकी शारीरिकएक्टिविटी का स्तर कम हो गया है। महिलाएं कई कारणों से ऑर्थराइटिस का शिकार हो रही हैं, जैसे चलने-फिरने में कमी, जिसके कारण मसल कम होना आजकल आम हो गया है।
डॉ. गौरव ने कहा कि ऑर्थराइटिस से अक्सर सबसे ज्यादा असर घुटनों, कूल्हों के जोड़ों पर पड़ता है।लगातार बैठे रहने के कारण से मांसपेशियां निष्क्रिय और कमजोर होने लगती हैं। मांसपेशियों के कमजोरहोने से आर्थरिटिस का दर्द बढ़ जाता है और मांसपेशियां खराब होने लगती हैं।
उन्होंने कहा कि शारीरिक एक्टिविटी कम होने के कारण मोटापा भी बढ़ता है, जो आर्थराइटिस के मुख्यकारणों में से एक है। ऑर्थराइटिस का असर मरीज के चलने-फिरने की क्षमता, रोजमर्रा के कामों पर पड़ताहै। समय के साथ कम चलने के कारण उसके कार्डियो-वैस्कुलर स्वास्थ्य पर असर पड़ने लगता है औरडायबिटीज की आशंका भी बढ़ जाती है। उनके अनुसार, ऑर्थराइटिस एजिंग यानी उम्र बढ़ने का एक हिस्साहै, लेकिन सही जीवनशैली से इसकी आशंका को कम किया जा सकता है और आर्थराइटिस के कारण होनेवाली अपंगता से बचा जा सकता है।
डॉ. राठोर के अनुसार, आर्थराइटिस से बचने का सबसे अच्छा तरीका है अपने वजन पर नियंत्रण रखें। इसकेलिए आहार में काबोर्हाइड्रेट का सेवन सीमित मात्रा में करें, ट्रांस-फैट के सेवन से बचें। ध्यान रखें कि आपकेआहार में प्रोटीन की मात्रा भी सामान्य हो। ऑर्थराइटिस की शुरुआत में ही अगर व्यायाम शुरू कर दिया जाएतो घुटनों को खराब होने से बचाया जा सकता है। आप शारीरिक व्यायाम की मात्रा बढ़ाकर अपनी सेहत मेंसुधार ला सकते हैं। अच्छा मानसिक स्वास्थ्य भी बहुत जरूरी है।
आर्थराइटिस की रोकथाम के लिए चलना-फिरना जरूरी

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