कोरोना संकट के बाद स्वास्थ्य पर व्यय के मुद्दे पर नए सिरे से चर्चा शुरू हो गई है। आर्थिक सर्वेक्षण में कहा गया है कि दुनिया में भारत ऐसा देश है जहां लोगों को अपनी आय का सबसे ज्यादा व्यय स्वास्थ्य पर करना पड़ता है। ऐसा इसलिए है क्योंकि सरकारी निवेश कम है। इसमें कहा गया है कि 17 फीसदी आबादी अपनी कुल आय या घरेलू खर्च का 10 फीसदी से ज्यादा और चार फीसदी आबादी 25 फीसदी से ज्यादा स्वास्थ्य पर खर्च करती है। यह विश्व में सबसे ज्यादा है।
तीन फीसदी निवेश करना होगा
सर्वे में कहा गया है कि स्वास्थ्य पर जीडीपी का 2.5 से 3 फीसदी तक आवंटन करना होगा। इससे लोगों की जेब से होने वाले खर्च में कमी आएगी। अभी स्वास्थ्य पर 65 फीसदी व्यय लोग अपनी जेब से करते हैं क्योंकि जीडीपी का महज एक फीसदी के करीब ही स्वास्थ्य पर खर्च होता है। यदि ढाई-तीन फीसदी आवंटन स्वास्थ्य के लिए होता है तो लोगों के निजी व्यय को घटाकर 30 फीसदी तक किया जा सकता है। रिपोर्ट में कहा गया है कि चीन, इंडोनेशिया, फिलीपीन्स समेत कई देशों ने आवंटन बढ़ाकर स्वास्थ्य पर जेब से होने वाले खर्च को कम किया है।
स्वास्थ्य ढांचा मजबूत हो
रिपोर्ट में कहा गया है कि कोरोना संकट ने यह बता दिया है कि स्वास्थ्य का ढांचा मजबूत होना चाहिए। यह जरूरी नहीं है कि अगली महामारी भी संक्रामक बीमारी ही हो, हो सकता है वह किसी दूसरे स्वरूप में आए। इसलिए ऐसी चुनौतियों के मुकाबले के लिए हमें अपने स्वास्थ्य के बुनियादी ढांचे को मजबूत करना होगा।
रैंकिंग बहुत ही खराब
रिपोर्ट में अध्ययनों के हवाले से कहा गया है कि देश में स्वास्थ्य सेवाओं की गुणवत्ता एवं उपलब्धता के मामले में देश का रैंकिंग 180 में से 145 है यह अच्छी स्थिति नहीं है। हमसे नीचे कुछ ही देश हैं, जिनमें कुछ अफ्रीकी देश, नेपाल, पाकिस्तान शामिल हैं।
मातृ एवं शिशु मृत्यु दर कम करने होंगे
रिपोर्ट में कहा गया है कि हमें मातृ एवं शिशु मृत्यु पर में कमी लाने के लिए और प्रयास करने होंगे। चीन, बांग्लादेश, भूटान कंबोडिया जैसे छोटे देशों ने इस क्षेत्र में भारत से भी बेहतर कार्य किया है।
अस्पताल में भर्ती होने की दर कम
रिपोर्ट के अनुसार भारत में अस्पताल में भर्ती होने की दर 3-4 फीसदी ही है। जबकि कम आए वाले देशों में यह दर 8-9 फीसदी है और उच्च आय वाले देशों में 13-17 फीसदी है। यह स्वास्थ्य सेवाओं की कम उपलब्धता को दर्शाता है।
स्वास्थ्यकर्मियों की संख्या बढ़ानी होगी
विश्व स्वास्थ्य संगठन के मानकों के अनुसार देश में प्रति दस हजार पर 46 स्वास्थ्यकार्मिक होने चाहिए लेकिन देश में महज 23 की ही उपलब्धता है। इसे बढ़ाने की जरूरत है। सर्वे में कहा गया है कि बुजुर्गों को मिलने वाली स्वास्थ्य सेवाओं की उपलब्धता 2–4 में 19.9 फीसदी से बढ़कर 2018 24.7 फीसदी हुई है। इसी प्रकार सांस्थानिक प्रसव और बाद में होने वाली देखरेख की सेवाओं का दायरा भी बढ़ा है।
पीएमजेएवाई से मिली बड़ी मदद
आर्थिक समीक्षा में कहा गया कि प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना (पीएमजेएवाई) से बड़ी मदद मिली है। भारत सरकार द्वारा 2018 में समाज के वंचित एवं कमजोर वर्ग को स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध कराने के उद्देश्य से शुरु किया गया था। जिन राज्यों ने इस स्वास्थ्य योजना को अपनाया, उन राज्यों में इसका मजबूत सकारात्मक परिणाम सामने आया है। पीएमजेएवाई का उपयोग कम मूल्य में बेहतर स्वास्थ्य सेवाओं के सामान्य उपयोग के लिये किया जा रहा है।
पौने दो सौ साल पहले हाथ धोने की शुरुआत
कोरोना संकट ने हाथ धोने के महत्व को करीब 170 सालों के बाद एक बार फिर से रेखांकित कर दिया है। यह न सिर्फ संक्रामक बीमारियों से फैलाव रोकने में कारगर है बल्कि सबसे किफायती उपाय भी है। कोरोना संकट के दौरान यह बात साबित भी हुई। संसद में पेश किए आर्थिक सर्वेक्षण पर हाथ धोने की शुरूआत को लेकर एक संदर्भ का उल्लेख है। इसमें कहा गया है कि बीमारियों से बचाव के लिए हाथ धोने के महत्व को सबसे पहले 1846 में महसूस किया गया। दरअसल, तब डाक्टर न तो दास्ताने पहनते थे और न ही हाथ धोते थे। इसकी वजह यह थी कि तब किटाणुओं के संक्रमण के जरिये बीमारी फैलने की कोई थ्योरी अस्तित्व में नहीं थी। यानी इससे बीमारी फैलने का अंदाजा ही नहीं था।