आदित्य तिक्कू।।
कल हमने अपना 72 गणतंत्र दिवस बड़े हर्षोल्लास से मनाया। विश्व ने भारत की प्रगति की धाक देखिए कि इस बार हमारे गणतंत्र दिवस पर भले ही कोई विदेशी राजकीय मेहमान राजधानी में हुई परेड का साक्षी न बना हो, लेकिन इसके बावजूद जिस तरह से विदेशी मेहमानों की तरफ से बधाईयां आयी हैं, उससे वैश्विक स्तर पर भारत के बढ़े कूटनीतिक कद का पता चलता है। भारत को खास तौर पर बधाई देने में पड़ोसी देशों के अलावा रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन, ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बोरिस जानसन, आस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री स्कॉट मारीसन, इजरायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू जैसे नेता रहे हैं। इन सभी देशों के साथ भारत के रणनीतिक संबंध रहे हैं जो हाल के वर्षों में काफी मजबूत हुए हैं।
हम प्रसन्न थे पर आतंकी मानसिकता वाले लोगों को तो क्लेश करना और दिखाना था। शमा आतंकी मानसिकता वाले नहीं आतंकी ही थे। देश की राजधानी दिल्ली में जो स्तर हीन कृत्य जानबूझकर जिद्दी किसान नेताओं और उनके अराजक साथियों ने किया, वह अशोभनीय तो है ही देश विरोधी भी है। उन्होंने गणतंत्र दिवस मनाने का स्वांग किया और फिर उस के बहाने उसकी मर्यादा तार-तार की। शायद उनका इरादा भी यही था और इसलिए उन्होंने जानबूझकर गणतंत्र दिवस पर ट्रैक्टर रैली निकालने की जिद यह जानते हुए भी पकड़ी कि इस दिन दिल्ली पुलिस के लिए हजारों ट्रैक्टरों को संभालना आसान नहीं होगा। किसान नेताओं की दिलचस्पी अनुशासन का परिचय देने में नहीं थी, इसकी पुष्टि इससे होती है कि उन्होंने पुलिस से किए गए हर वादे को चुन-चुनकर तोड़ा। ट्रैक्टर रैली समय से पहले शुरू की गई और बैरीकेड भी तोड़े गए। उन्माद से भरे कथित किसान केवल यहीं तक सीमित नहीं रहे। उन्होंने पुलिस से मारपीट करने के साथ ट्रैक्टरों से उन्हें कुचलने की भी कोशिश की।
राजधानी में डेरा डाले किसान संगठनों के साये में आतंकी तत्व पल रहे थे, यह इससे साबित होता है कि इन तत्वों ने लाल किले पर धावा बोलकर राष्ट्रीय ध्वज का भी निरादर कर दिया। यह असहनीय है। सदियों के संघर्षो के बाद हमने स्वतंत्रता अर्जित की थी और शान से तिरंगा फहराया था। आखिर राष्ट्रीय अस्मिता के प्रतीक लाल किले पर चढ़ाई उस कृत्य से अलग कैसे है, जो कुछ दिनों पहले अमेरिका में वहां की संसद में ट्रंप समर्थकों की ओर से किया गया था? अराजक किसानों के उत्पात के लिए किसान नेताओं के साथ उन्हें उकसाने वाले राजनीतिक दल और खासकर कांग्रेस और वामपंथी दल भी जिम्मेदार हैं। वे इससे अनजान नहीं हो सकते कि किसान नेताओं का मकसद अराजकता का सहारा लेकर सरकार को झुकाने का था, न कि कृषि कानूनों पर अपनी आपत्तियों का समाधान कराना। इसी कारण केंद्र सरकार से बातचीत के दौरान वे लगातार अड़ियल रवैया अपनाए रहे।
इस आतंकी कृत के पश्चात किसान नेता यह कहकर देश की आंखों में धूल झोंकने की कोशिश कर रहे हैं कि हिंसा में उनके लोग नहीं थे और जो उत्पात हुआ, उससे उनका लेना-देना नहीं। वे दिल्ली को अराजकता की आग में झोंक देने के बाद पल्ला झाड़कर देश से फिर छल ही कर रहे हैं। वैसे ही जैसे पाकिस्तान ने संसद के हमले के बाद अपना पल्ला झाड़ लिया था। पर अब देश बदल गया है इसलिए उन्हें बचकर निकलने का मौका नहीं दिया जायेगा । उन्हें जवाबदेह बनाते हुए यह सुनिश्चित किया जायेगा कि उन्हें उनके किए की सजा मिले। उन्होंने गणतंत्र दिवस की गरिमा को तार-तार कर राष्ट्र का घोर अपमान किया है।