सूर्यकांत द्विवेदी।।
देवी का अर्थ है निर्भयता व प्रकाश। निर्भयता और प्रकाश के मेल से ही जीवन सार्थक होता है। नवरात्रि में शक्ति और कन्या पूजन के महत्व को रेखांकित करता आलेख.
शक्ति उपासना या नवरात्रि में हम देवी भगवती के रूप में एक नारी शक्ति को साकार रूप देते हैं। देवी भगवती के कई रूप हैं। हर स्त्री में हम जगदंबा के दर्शन करते हैं। उनमें ही आद्य शक्ति का भाव शामिल करते हैं। इसलिए, नवरात्रि के अवसरों पर हम कन्या पूजन करते हैं। लेकिन कन्या पूजन क्यों? देवी शक्ति स्त्री शक्ति क्यों? पुरुष शक्ति क्यों नहीं। देवी शास्त्र में स्त्री को प्रकृति तत्व कहा गया है। एक शक्ति हैं और एक शक्तिमान। समस्त देवों की शक्ति स्त्री हैं।
देवी यानी प्रकाश। शक्ति यानी भयमुक्त जीवन। देवी भगवती यही दोनों तत्व किसी न किसी रूप से हर स्त्री में देखना चाहती हैं। देवी शास्त्र में स्त्री या देवी का अर्थ है- निर्भय स्त्री। निर्भय स्त्री ही देवी है, जो असुरों का संहार कर दे, जो देवताओं का कल्याण कर दे। जो जगत की जननी है, मां है, वही शक्ति है। देवी सूक्तम में देवी भगवती अपने विभिन्न रूपों के दर्शन कराती हैं। देवी कवच के माध्यम से वह समस्त प्राणियों के लिए रक्षा कवच प्रदान करती हैं। देवी भगवती दो मुख्य बातें कहती हैं। एक अपने मन को स्थिर रखो। दूसरे, स्वस्थ रहो। स्वस्थ मन ही स्वस्थ तन है। जिनकी ये दोनों चीजें स्वस्थ हैं, वह शक्ति को प्राप्त करता है। शक्ति किसमें है? देवी कहती हैं कि शक्ति तो हरेक प्राणी में किसी न किसी रूप में विद्यमान है। बुद्धि भी हरेक प्राणी में होती है। अच्छे-बुरे का ज्ञान भी सभी में होता है। मनुष्य केवल इसलिए अलग है, क्योंकि उसके पास विवेक है, जो दूसरे प्राणियों में नहीं है। दुर्गा सप्तशती के माध्यम से देवी भगवती शक्ति के आयाम स्थापित करती हैं।
जगत जननी के सामने दो विषय आते हैं। एक को संतान ने घर से निकाल दिया। एक का शत्रुओं ने राजपाट छीन लिया। दोनों ही व्याकुल हैं। कुछ समझ में नहीं आ रहा कि क्या करें। मन मानने को तैयार नहीं है कि संतान या शत्रु भी ऐसा कर सकते हैं क्या? अपनों ने छल किया। सब कुछ छीन लिया। यही जीवन की आवृत्ति शोक-दुख-भय का कारण बनती है। यहीं पर देवी कहती हैं कि इस चित्त को संभालो। यह माया-मोह है। इससे बाहर निकलो।
दुर्गा सप्तशती में देवी के रूप : ब्राह्मणी, महेश्वरी, कौमारी, वैष्णवी, वाराही, नरसिंही, ऐन्द्री, शिवदूती, भीमादेवी, भ्रामरी, शाकम्भरी, आदिशक्ति और रक्तदन्तिका
इसलिए होता है नवरात्रि में कन्या पूजन: देवी एक शक्तिशाली स्त्री के रूप में अभिव्यक्त हैं। सिंह की सवारी है। अष्टभुजी हैं। शक्तिपुंज हैं, कल्याणी हैं, रुद्राणी हैं, सौभाग्य, आरोग्य प्रदायिनी हैं। दुर्गा सप्तशती के मध्यम चरित्र में सारे देवता मिलकर अपने तेज और शस्त्र-प्रदान करके एक देवी का निर्माण करते हैं। यही देवी महिषासुर का वध करती हैं। उत्तर चरित्र में वह शुम्भ-निशुम्भ के आतंक से देवताओं को मुक्त करती हैं। देवासुर संग्राम में विजय प्राप्त करने के बाद उनका शक्ति, मातृ, निद्रा, तृष्णा, क्षुधा और शांति के रूप में स्मरण किया जाता है। देवी भगवती पार्वती की देह से प्रकट होती हैं। यह सारी आवृत्तियां और वृत्तियां एक कन्या के रूप में देवी का निर्माण करती हैं।
पुराणों में स्त्री या कन्या का महत्व: सृष्टि को चलाने के लिए एक स्त्री आवश्यक थी। इसलिए, देवी पार्वती और भगवान शंकर का मांगलिक मिलन होता है। दोनों विवाह रचाते हैं। पुराणों में साठ दक्ष कन्याओं को उत्पन्न करने का उल्लेख मिलता है। वह सब देवों और ऋषियों की पत्नी हुईं। दक्ष का अर्थ है, दक्षता। यानी स्त्री को हर प्रकार से दक्ष बनाना। स्त्री में ही यह गुण ईश्वर प्रदत्त है कि वह एक समय में कई कार्य कर सकती है। इसलिए दक्ष उनके पिता हैं। साठ कन्याएं दक्ष की पुत्रियां। ऋग्वेद में दक्ष से अदिति का जन्म हुआ और अदिति से दक्ष। देवीभागवत पुराण में कन्या की पुष्टि के 10 स्तर कहे गए हैं। देवी शास्त्र में कांति, दीप्ति व कम् गुण एक नारी में माने गए हैं। यानी कामना करने वाली, देदीप्त और कार्य को गति देने वाली। इसलिए, कन्या देवी का अवतार कही गई। इसीलिए नवरात्रि कन्या व मातृ शक्ति की आराधना का पर्व है।
नवरात्रि: निर्भय कन्या का शक्ति पर्व
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