पंकज श्रीवास्तव/पटना। एक कहावत है राजनीति में भावना और निष्ठा का कोई मोल नहीं, मोल है तो सिर्फ मौकापरस्ती का। ये कहावत मौजूदा बिहार विधानसभा चुनाव के दरम्यान कम से कम दो लोगों पर तो सटीक बैठती नजर आ रही है। पहला डाक्टर करिश्मा राय (राजद) और दुसरा पूर्व डीजीपी गुप्तेश्वर पांडे (जदयू)। डाक्टर करिश्मा राय ने अभी हाल में ही अपने परिवार से बगावत मोल लेकर राजद ज्वाइन किया था। करिश्मा राय उसी ऐश्वर्या राय की चचेरी बहन हैं, जिसे राजद सुप्रीमो लालू यादव के बड़े बेटे तेज प्रताप यादव से शादी हुई थी और महज एक साल के भीतर ऐश्वर्या को कथित रूप से प्रताड़ित कर मुख्यमंत्री आवास से बाहर निकाल दिया गया था। फिलहाल ये मामला अदालत में है।
गुप्तेश्वर पांडे ने जदयू के टिकट के लिए आनन-फानन में वीआरएस तक ले लिया। उन्हें उम्मीद ही नहीं पूरा विश्वास था जदयू उन्हें बक्सर से उम्मीद बनायेगी लेकिन सीट भाजपा के खाते में चली गयी। वही डाक्टर करिश्मा ने राजद के शीर्ष नेतृत्व के आदेश पर दानापुर विधानसभा क्षेत्र में जमकर मेहनत की, संदेह नहीं इनकी वजह से लोगों के जेहन में जो राजद की जो छवि बैठी है उसमें सुधार की गुंजाइश भी दिखने लगी थी। मिलनसार और उच्य शिक्षा प्राप्त करिश्मा राय की जगह अचानक राजद ने रात के अंधेरे में बाहुबलि रीतलाल यादव को टिकट थमा दिया। टिकट से बेहाथ हुए दोनों की वेदना एक सी है लेकिन फर्क इतना है करिश्मा खुले तौर पर स्वीकार करती हैं कि वो किसी भी सूरत में आपराधिक छवि वाले रीतलाल यादव के लिए लोगों के बीच वोट माँगने नहीं जायेंगी। वही गुप्तेश्वर पांडे पार्टी (जदयू) के विरुद्ध कुछ भी बोलने से परहेज कर रहें हैं।
बिहार चुनावः राजनीति में निष्ठा व भावना का कोई मोल नहीं!

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