तेजबहादुर सिंह भुवाल।।
आज के समय में हर व्यक्ति बीमार है, जिधर देखों ईलाज के लिए भटक रहे हैं। छोटी से लेकर बड़ी बीमारियों तक व्यक्ति परेशान है। बच्चे हो या जवान, महिला हो या बुजुर्ग सभी बीमारियों के जाल में फसे हुए हैं। व्यक्तियों के बीमार होने के प्रमुख कारण मिलावट खानपान, गलत दवाइयों का उपयोग, गलत दिनचर्या, प्रदुषण हैं। व्यक्ति अपने स्वास्थ्य के प्रति जागरूक नहीं है, जिसके कारण उन्हें बिमारियां हो रही हैं। सभी अस्पतलों में लम्बी-लम्बी कतारें देखने को मिलती है। दिन-प्रतिदिन मरीजों की संख्या बढ़ती जा रही है। वर्तमान समय में पर्यावरण में प्रदूषण, मिलावटी खानपान, बिगड़ते दिनचर्या एवं बिना डाॅक्टरों की सलाह से अपने मन से दवाईयां खा लेना, इन सभी कारणों से बिमारियां बढ़ रही है। पर लोग जागरूकता एवं बचाव के अभाव में बीमार होते जा रहे है। इस बढ़ती बीमारी का प्रमुख कारण स्वच्छता भी हैं, व्यक्ति अपने भौतिक, सुख सुविधा के कारण कहीं पर भी कचरा फेक देते हैं और यह कचरा जगह-जगह फैली रहती है, इस कचरे से भी बहुत सी बीमारियां उत्पन्न होती है, इसके जिम्मेदार हम स्वयं होते हैं। इस बढ़ती बीमारी से प्रदेश एवं देश में स्थिति बहुत गंभीर होती जा रही है। शासन सबसे पहले स्वास्थ्य सुविधायें बेहतर करने के लिए प्रयास कर रही है। इस प्रयासों में अनेक योजनाओं के माध्यम से आमजन को लाभांवित किया जा रहा है।
प्रदेश के अनेक अस्पतालों में प्रतिदिन हजारों मरीज अपना ईलाज कराने पहुचते है। वहां पर आधुनिक तकनीकों के तमाम प्रकार के उपकरण मौजूद है। अस्पताल में बहुत से वरिष्ठ चिकित्सक भी है, जो वर्षो से अपनी सेवाएं दे रहे है। अस्पताल में सभी बीमारियों का ईलाज किया जाता है। इन अस्पतालों में ज्यादातर वह मरीज आते है, जिनके पास पर्याप्त पैसे नहीं होते और जो प्राइवेट अस्पताल से रिफर किये गए होते हैं। अस्पताल में ऐसी कोई चीज की कमी नहीं है, जिससे किसी मरीज को तकलीफ हो पर यहां बढ़ती मरीजों की संख्या क्षमता से कहीं अधिक होने के कारण स्थिति थोड़ी प्रतिकूल हो जाती है और मरीजों को कुछ परेशानी का सामना करना भी पड़ता है। जैसे अस्पताल में भर्ती के लिए जगह ना मिल पाना, बेड की कमी, समय पर चिकित्सक उपलब्ध ना हो पाना, स्टाफ की कमी, सही समय पर उपचार का ना मिल पाना। इस प्रकार की स्थिति कभी भी निर्मित हो जाती है।
चिकित्सालयों में ईलाज के लिए एक न एक सहयोगी की बहुत आवश्यकता होती है। कोई भी जांच कराने के लिए पहले नंबर लगाओ, फिर मरीज को ले जाओ। उसके बाद घंटो इंतजार करो। उसके बाद कही जाकर नंबर आएगा। फिर मरीज को वापस वार्ड में छोड़ो फिर बाद में रिपोर्ट लेने जाओ। एक बार में रिपोर्ट ना मिले तो फिर दुबारा जाना पड़ता है। प्रतिदिन दिनभर यही प्रक्रिया करते रहो। कभी दवाई लेने जाओ, कभी खून जाँच कराने जाओ दिन भर येही काम करना पड़ता है। मरीज के साथ सहयोगी भी दिनभर की भाग दौड़ से मरीज बनने के कगार में शामिल हो जाता है। शासकीय अस्पतालों में जेनेरिक दवाइयां किफायती दर पर तो मिलती है, पर बहुत सी दवाइयां ब्राण्डेड कंपनी की प्रिंट मूल्य पर बाहर से खरीदनी भी पड़ती है।
अस्पतालों में बढ़ते मरीजों की संख्या और दबाव के कारण यहां के स्टाफ चिड़चिड़े स्वभाव के हो जाते हैं। इस कारण मरीजों और उनके सहयोगी सदस्यों के साथ ठीक से व्यवहार नहीं करते है। इससे मरीजों और सहयोगियों को काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। इस तमाम समस्या को अस्पताल प्रबंधन को समय पर हल करना चाहिए और मरीजों के साथ अच्छा व्यवहार करना चाहिए। शासन के आदेशानुसार अस्पताल प्रबंधन को सभी मरीजों की अच्छे से अच्छा ईलाज और देखभाल करने की जिम्मेदारी होती है।
केंद्र और राज्य सरकार सबसे पहले स्वास्थ्य, शिक्षा, आवास और कौशल विकास को प्रथम प्राथमिकता दे रही है। विभिन्न योजनाओं के मध्यम से लोगों को लाभान्वित किया जा रहा है। पर लोगों की जागरूकता की कमी एवं प्रबंधन की लापरवाही से कई समस्या उत्पन्न होती है। आये दिन सुनने को मिलता है कि कई लोगों का आँख का ऑपरेशन हुआ, लोगों की आंखे चली गई। इस प्रकार डॉक्टरों एवं स्टाॅफ की लापरवाही उजागर होती है। धरती पर डॉक्टरों को भगवान का दर्जा दिया जाता है पर डॉक्टरों द्वारा अपने कर्तव्यों का पालन ठीक से नहीं किया जाता। सरकारी डॉक्टर होने के बावजूद वे अपने घर एवं प्राईवेट अस्पतालों में अपनी सेवाएं देकर मोटी रकम कमाते हैं, नतीजन शासकीय अस्पतालों में डॉक्टरों की कमी परिलक्षित होती है। सही समय मे डॉक्टर न होने पर मरीज दम तोड़ देते हैं। अधिकतर अस्पतालों में जूनियर डॉक्टर एवं प्रशिक्षणरत् डॉक्टरों के भरोसे अस्पताल चल रही है। इस मामले में शासन को सख्ती बरतनी चाहिए और शासकीय डॉक्टरों को प्राइवेट क्लीनिक चलाने पर प्रतिबंध लगाना चाहिए। जिस प्रकार सभी शासकीय अधिकारी और कर्मचारियों को अन्य माध्यम से इनकम करना नियम विरुद्ध है। एक ओर शासन प्रत्येक कार्य मे पारदर्शिता करने का बात करती है पर क्या डॉक्टरों पर यह नियम लागू नहीं होता है। अगर शासकीय डॉक्टर अपने कार्य को पूरी निष्ठा और ईमानदारी से करें तो प्राइवेट अस्पतालों की जरूरत ही नही पड़ेगी। प्राइवेट अस्पतालों में तो ईलाज के नाम पर लूट हो रही है। प्राईवेट अस्पतालों में दो दिन के इलाज को 7 दिन और 5 दिन के ईलाज को 15 दिन करके लोगों से पैसे वसूलती हैं।
शासन ने स्वास्थ्य के लिए बहुत से योजनाये संचालित की है, जिससे लोगों को स्वास्थ्य लाभ हो और पैसे की बचत हो। स्वास्थ्य स्मार्ट कार्ड से सभी प्राइवेट अस्पतालों में 50 हजार तक की ईलाज की व्यवस्था की गई है पर स्मार्ट कार्ड में भी फर्जीवाड़ा हो रहा है। कई अस्पतालों में इसे मान्य नहीं किया जाता और मान्य होने पर वास्तविक ईलाज से अधिक की राशि काट ली जाती है, इसके बाद लोगों से नगद राशि की भी मांग की जाती है। इस प्रकार होने वाले अव्यवस्था को ठीक किया जाना चाहिए।
माननीय प्रधानमंत्री जी ने 14 मई 2018 को बीजापुर जिले के जांगला से आयुष्मान योजना की शुरुआत की है। इस योजना से गरीब लोगों को ईलाज के लिए 05 लाख रुपये तक कि सुविधाएं मिलना शुरू हो चुका। इसके साथ ही सभी जिलों में वेलनेस सेंटर खोला जा रहा है, जहां पर सभी गरीब लोगों का स्वास्थ्य परीक्षण किया जाएगा। इससे होने वाली बीमारी का पहले ही जानकारी हो जाएगी और उसका समय पूर्व ही निदान किया जाएगा। इस योजना से पूरे भारत वर्ष के लोगों को होने वाली बीमारी से मुक्ति मिलेगी।
आज के समय में व्यक्ति अगर स्वस्थ्य है तो वहीं व्यक्ति सही मायने में धनवान और संपन्न होता है। लोगों को बिमारी से बचने के लिए जागरूक होना आवश्यक है। बहुत सी बिमारियों को स्वच्छता और बचाव से रोका जा सकता है। सभी व्यक्तियों को अपने खानपान और दिनचर्या का विशेष ध्यान देना चाहिए साथ ही जीवन में योग एवं व्यायाम को शामिल कर शरीर को स्वस्थ्य रखना चाहिए।
स्वास्थ्य सेवाओं का बेहतर क्रियान्वयन होना आवश्यक
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