ओबामा से लेकर नेल्सन मंडेला जैसी दुनिया की तमाम हस्तियों के प्रेरणास्नोत रहे युगद्रष्टा और राष्ट्रपिता गांधीजी की आगामी दो अक्टूबर को 149वीं जयंती है। सार्वजनिक रूप से हम सब उनके बताए रास्तों पर चलने और उनकी कही बातों को मानने का संकल्प करते हैं, लेकिन जहां बात व्यक्तिगत रूप से आती है, वहीं हम पीछे हट जाते हैं। चाहे बात सच्चाई की हो, अहिंसा की हो या साफ-सफाई की। पर्यावरण, जीवनशैली, समानता आदि मामलों में उनकी कही बातें आज अक्षरश: सही साबित हो रही हैं। लोग संजीदा हुए हैं लेकिन अभी भी उनकी तमाम बातें हम अनसुनी कर रहे हैं। गांधीजी दो तरह की सफाई के हिमायती थे। बाहरी और आंतरिक।
बाहरी साफ-सफाई को लेकर सरकार भी मुहिम छेड़े हुए है। उनकी 150वीं जयंती तक देश को खुले में शौच से मुक्त करने का संकल्प लेकर आगे बढ़ रही है। आंतरिक साफ-सफाई बेहद निजी मसला है। छल-कपट, धूर्तता, हिंसा, कलुष, भ्रष्टाचार, हिंसात्मक आंदोलन जैसे तमाम आंतरिक भाव को छोड़ने के लिए हम सबको किसी सरकार की बैसाखी की जरूरत नहीं है, फिर भी हम इसे त्याग कर स्वराज के उनके सपने को नहीं साकार कर पा रहे हैं। हम सबके जेहन में वे मौजूद हैं। इस अदृश्य गांधी को देखने के लिए हमें थोड़ी साधना तो करनी ही पड़ेगी। इस साधना के संकल्प का दिन दो अक्टूबर से बढ़िया और क्या हो सकता है? आइए, गांधी जी के बताए रास्ते पर चलकर हम राष्ट्र निर्माण में अपनी प्रभावी भागीदारी सुनिश्चित करें।
आज दुनिया के किसी कोने में किसी से भी दो भारतीय नामों के बारे में पूछिए तो वह आपको संभवतया गौतम बुद्ध और महात्मा गांधी का उल्लेख करे। पिछले 2600 वर्षों में पैदा हुए सभी भारतीयों में से ये दोनों हस्तियां सर्वाधिक लोकप्रिय रहीं। इसका प्रमुख कारण इनकी नीतियों और सिद्धांतों में समानता और वर्तमान परिवेश में भी उनका लागू होना है। 149वीं गांधी जयंती के अवसर पर आइए बापू के जीवन से जुड़े कुछ अनछुए तथ्यों पर डालें एक नजर:
गांधी को लेकर देश में भले ही दो राय बनाई जाती हो, लेकिन विश्व पटल पर यह शख्सियत समभाव से एक वैश्विक कार्यकर्ता की जानी जाती है। हालिया राजनीतिक धुरंधर विश्वपटल से गायब होते जा रहे हैं तो गांधीजी की राजनीतिक विरासत अक्षुण्ण बनी हुई है।
गांधीजी के पास कृत्रिम दांतों का एक सेट हमेशा मौजूद रहता था। इसे वे अपनी लंगोटी में लपेटकर चलते थे। भोजन करने के बाद उन्हें अच्छी तरह से धोकर, सुखाकर फिर से लंगोटी में लपेट रख लेते थे।
यह देखने के लिए कि कितने कम खर्च में वे जीवित और स्वस्थ रह सकते हैं, उन्होंने अपनी खुराक को लेकर भी प्रयोग किया। सैद्धांतिक रूप से वे फल, बकरी के दूध और जैतून के तेल पर जीवन निर्वाह करने लगे।
गांधीजी आयरिश उच्चारण वाली अंग्रेजी बोलते थे। इसका एक मात्र कारण था कि शुरुआती दिनों में गांधीजी को अंग्रेजी पढ़ाने वाले अध्यापकों में से एक आयरिश मूल के भी थे।
लंदन यूनिवर्सिटी में पढ़ाई करके अटार्नी बने लेकिन कोर्ट में पहली बार बोलने के प्रयास के दौरान उनकी टांगें कांप गई। वे इतना डर गए कि निराशा और हताशा के बीच उन्हें बैठने पर विवश होना पड़ा। लंदन में उनकी वकालत बहुत ज्यादा नहीं चली। बाद में वे अफ्रीका चले गए। वहां उन्हें बड़ी संख्या में मुवक्किल मिले। वे अपने कई मुवक्किलों के मामलों को अदालत से बाहर ही शांतिपूर्ण तरीके से सुलझा देते थे। इससे लोगों की समय के साथ आर्थिक बचत भी होती थी। दक्षिण अफ्रीका में वकालत के दौरान इनकी सालाना आय 15 हजार डॉलर तक पहुंच गई थी। उन दिनों में अधिकांश भारतीयों के लिए यह आय एक सपना थी।
सविनय अवज्ञा (नाफरमानी) की प्रेरणा उन्हें अमेरिकी व्यक्ति की एक किताब से मिली। हार्वर्ड यूनिवर्सिटी से ग्रेजुएट डेविड थोरियू मैसाचुसेट्स में एक संन्यासी की तरह जीवन बिताता था। उसने सरकार को टैक्स अदा करने से मना कर दिया, जिसके चलते उसे जेल भेज दिया गया। वहीं पर डेविड ने सविनय अवज्ञा पर एक किताब लिखी। भारत में वह किताब गांधीजी के हाथ लग गई। उन्होंने इस रणनीति को अजमाने का विचार किया। अंग्रेजी हुकूमत को सबक सिखाने के लिए उन्होंने लोगों से टैक्स देने के बजाय जेल जाने का आह्वान किया। इसके साथ उन्होंने विदेशी सामान के बहिष्कार का भी आंदोलन चलाया। जब ब्रिटिश हुकूमत ने नमक पर टैक्स लगा दिया तो गांधीजी ने दांडी यात्रा के तहत समुद्र तट पर जाकर खुद का नमक बनाया।
महात्मा गांधी कभी अमेरिका नहीं गए, लेकिन वहां उनके कई प्रशंसक और अनुयायी बन गए थे। इन्हीं में से एक उनके असाधारण प्रशंसक प्रसिद्ध उद्योगपति और फोर्ड मोटर के संस्थापक हेनरी फोर्ड भी थे। गांधीजी ने उन्हें एक स्वहस्ताक्षरित चरखा भेजा था। द्वितीय विश्व युद्ध के भयावह समय के दौरान फोर्ड इस चरखे से सूत काता करते थे। महान भौतिक विज्ञानी अल्बर्ट आइंस्टीन ने गांधीजी के बारे में एक बार कहा था, ‘हमारी आने वाली पीढ़ियां शायद ही यकीन कर पाएं कि कभी हांड़-मांस का ऐसा इंसान (गांधीजी) इस धरती पर मौजूद था।अपने अहिंसा और सविनय अवज्ञा जैसे सिद्धांतों से राष्ट्रपिता ने दुनिया के लाखों लोगों को प्रेरित किया। शांति के नोबेल पुरस्कार विजेता कई विश्व नेताओं ने गांधीजी के विचारों से प्रभावित होने की बात स्वीकारी है। इनमें मार्टिन लूथर किंग जूनियर (अमेरिका), दलाईलामा (तिब्बत), आंग सान सू की (म्यांमार), नेल्सन मंडेला (दक्षिण अफ्रीका), एडोल्फो पेरेज इस्क्वीवेल (अर्जेंटीना) और बराक ओबामा शामिल हैं। ये बात और है कि महात्मा गांधी को नोबेल पुरस्कार से नामांकन के बाद भी वंचित रहना पड़ा।
प्रसिद्ध पत्रिका ‘टाइम’ ने राष्ट्रपिता महात्मा गांधी को तीन बार अपने कवर पेज पर स्थान दिया है। 1930 में गांधीजी को ‘मैन ऑफ द ईयर’ घोषित किया था। 1999 में पत्रिका द्वारा मशहूर भौतिक विज्ञानी अल्बर्ट आइंस्टीन को ‘पर्सन ऑफ द सेंचुरी ’ चुना गया तो महात्मा गांधी दूसरे स्थान पर रहे।
गांधी को लेकर देश में भले ही दो राय बनाई जाती हो, लेकिन विश्व पटल पर यह शख्सियत समभाव से एक वैश्विक कार्यकर्ता की जानी जाती है। हालिया राजनीतिक धुरंधर विश्वपटल से गायब होते जा रहे हैं तो गांधीजी की राजनीतिक विरासत अक्षुण बनी हुई है। गांधीजी के पास कृत्रिम दांतों का एक सेट हमेशा मौजूद रहता था। इसे वे अपनी लंगोटी में लपेटकर चलते थे। भोजन करने के बाद उन्हें अच्छी तरह से धोकर, सुखाकर फिर से लंगोटी में लपेट रख लेते थे।
फलस्तीन में इजरायल द्वारा किए जानेवाले क्षेत्रीय अतिक्रमण के खिलाफ गांधीजी एक नए राजनीतिक विकल्प बनकर उभर रहे हैं। हिंसा से कुछ पाने के बजाय बहुत कुछ खोने का अहसास होने के बाद गैर राजनीतिक संगठनों के एक नेटवर्क ने गांधी प्रोजेक्ट नाम से एक कार्यक्रम की शुरुआत की है। इसके माध्यम से इस आंदोलन को जारी रखने के लिए अहिंसा और सत्याग्रह के लाभों का प्रचार करना ही उनका उद्देश्य है।
गांधीजी की मूर्तियां न्यूयॉर्क, लंदन और पीटरमेरिट्जबर्ग में बड़ी शान से खड़ी हैं।
रैडिकली इटैलियानी नामक इटली के राजनीतिक दल के ध्वज पर विराजमान है गांधीजी का चित्र। इसके सदस्य अक्सर भूख हड़ताल (उपवास) पर चले जाते हैं, और इनका मुख्य राजनीतिक आंदोलन सविनय अवज्ञा के साथ ही चलता है। इटली में गांधी का नाम बहुत ही जाना-पहचाना है। वहां की पाठ्यपुस्तकों में उनके बारे विस्तृत जानकारी दी गई है
यरूशलम और रामल्ला के बीच स्थित एक गांव में इजरायली सरकार द्वारा बनाई गई फलस्तीन को अलग करने वाली दीवार पर गांधीजी का एक विशाल चित्र उकेरा गया है
यूरोप के कई देशों के साथ, अमेरिका, दक्षिण अफ्रीका, लाइबेरिया और फलस्तीन जैसे देशों की मुद्राओं पर गांधीजी के चित्र अंकित हैं।