सन 47 के जून के महीने में भीषण गर्मी के साथ-साथ राजनीतिक माहौल की गर्मी दिल्ली को और अधिक झुलसा रही थी। मज़हब के नाम पर पंजाब और बंगाल में जो आग लगी थी उसकी तपिश भी दिल्ली झेल रही थी। जून की ऐसी ही एक सुबह जब माउंटबेटन ने देश के बंटवारे को लेकर एक मीटिंग बुलाई तो सरदार पटेल और जिन्ना में गरमागरम बहस हुई। पटेल ने जिन्ना से साफ-साफ कहा कि वह अपने लोग और अपने इलाके की फिक्र करें। माउंटबेटन ने जून के तीसरे हफ्ते में पार्टीशन काउंसिल की बैठक फिर बुलाई लेकिन इस बैठक में जिन्ना चुपचाप रहे।दिल्ली में 2 घंटे तक चली इस बैठक में जिन्ना लगातार कुछ चित्र बनाते रहे। मीटिंग के बाद वो कागज वहीं मेज पर छूट गए। माउंटबेटन के प्रेस सलाहकार कैंपबेल जॉनसन के हाथ वो कागज लगे। जॉनसन ने कहा,” मैं मनोवैज्ञानिक होने का दावा तो नहीं कर सकता लेकिन इतना जरूर कह सकता हूं कि कागज पर उतारी गई इन तस्वीरों में सत्ता और ताकत की झलक दिखती है”
जून के तीसरे हफ्ते में यह तय हो जाने के बाद कि देश का बंटवारा होगा कश्मीर को लेकर लॉर्ड माउंटबेटन की चिंता बढ़ने लगी। उन्हें पता था कि कश्मीर का मसला दोनों देशों के बीच अटकेगा। वह आनन-फानन में कश्मीर के लिए रवाना हो गए। कश्मीर के राजा हरि सिंह से उनकी मुलाकात की तारीख भी तय हो गई। किंतु ठीक मुलाकात के दिन हरि सिंह ने कहा कि उनकी तबीयत ठीक नहीं है इसलिए वह नहीं मिल पाएंगे। कश्मीर को लेकर राजनैतिक ड्रामा चल रहा था।
27 जून 1947 की दोपहर सर रेडक्लिफ को लॉर्ड चांसलर के कमरे में बुलाया गया। जिस आदमी ने कभी भारत उपमहाद्वीप पर कदम नहीं रखा था, उसके सर पर भारत और पाकिस्तान के बीच लकीर खींचने की जिम्मेदारी दी जा रही थी। सबसे बड़ी चुनौती बंगाल और पंजाब में बंटवारे की लकीर खींचने की थी। एक घंटे बाद जब रेडक्लिफ के सामने भारत का नक्शा खोला गया तो वे हैरान रह गए। उन्हें करीब नौ करोड़ लोगों और एक लाख पचहत्तर हजार स्क्वायर मील जमीन का बंटवारा करना था। शायद पहली बार एक अंग्रेज अधिकारी के हाथ नौ करोड़ लोगों के भाग्य का फैसला होना था। रेडक्लिफ अपने मिशन के लिए भारत पहुंचा।
भारत की आजादी के बिल पर अभी ब्रिटिश संसद की मुहर लगनी बाकी थी। 4 जुलाई की दोपहर लंदन में बारिश हो रही थी और दिल्ली में गर्मी अपने उफान पर थी। रात 8:30 बजे हाउस अॉफ कॉमन्स के सदस्यों के सामने 2 सेकेंड के अंदर इंडियन इंडिपेंडेंस बिल रख दिया गया। जुलाई की एक ऐसी ही दोपहर को गांधी माउंटबेटन से मिलने वायसराय हाउस पहुंचे। गांधी ने कांग्रेस की तरफ से माउंटबेटन को देश के पहले गवर्नर जनरल बनने का न्योता दे दिया।
देश में बंटवारे की आशंका से ही दंगे भड़कने शुरू हो गए थे। जिसकी शुरुआत कलकत्ता से हुई। माउंटबेटन ने गांधी जी से कहा कि पंजाब की स्थिति को संभालने के लिए मैंने 55 हजार की फोर्स का इंतजाम कर लिया है किंतु कोलकाता को संभालना मेरी फौज के बस में नहीं है। मुझे सिर्फ अब आपका सहारा है।
राजा रजवाड़ों के मुद्दे पर 10 जुलाई को ब्रिटिश प्रधानमंत्री ने राजा रजवाड़ों से कहा कि वक्त बहुत कम है और वे जल्दी से फैसला करें कि उन्हें किधर जाना है। इसी दिन एटली ने संसद में घोषणा कर दी कि माउंटबेटन भारत के और जिन्ना पाकिस्तान के गवर्नर जनरल होंगे।
15 जुलाई भारत की आजादी की तय तारीख से ठीक 1 महीने पहले ब्रिटिश संसद ने इंडियन इंडिपेंडेंस बिल को मंजूरी दे दी। आजादी की तय तारीख से ठीक 25 दिन पहले माउंटबेटन ने 25 पन्नों का एक कैलेंडर सभी सरकारी अधिकारियों के ऑफिस भिजवा दिया। इस कैलेंडर में सत्ता परिवर्तन को कितने दिन और बचे हैं यह हर पन्ने पर बताया गया था।
ब्रिटिश हुकूमत उन चिन्हों और प्रतीकों को समेटने में लगी थी जिनमें उसके राजशाही ठाटबाट की झलक दिखती थी। 26 जुलाई को कैबिनेट की एक बैठक में प्रधानमंत्री एटली ने घोषणा की कि लखनऊ रेजीडेंसी पर 1857 से लगातार फहरा रहे यूनियन जैक को 14 अगस्त की शाम को उतारकर लंदन भेज दिया जाए।
अगस्त के महीने की शुरुआत से ही पूरे देश में आजादी का रंग जमने लगा था। 4 अगस्त को मुंबई के ताजमहल होटल ने अपनी छत पर बड़ा तिरंगा फहराने का फैसला किया। 7 अगस्त को जिन्ना ने दिल्ली को हमेशा-हमेशा के लिए अलविदा कहा और कराची के लिए रवाना हो गए।
आजादी का दिन 15 अगस्त तय हुआ था लेकिन ज्योतिषियों ने इस दिन को अशुभ बताकर टालने को कहा। नई दिल्ली के एक बंगले में रेडक्लिफ बंटवारे का ढांचा तैयार करने में जुटे हुए थे।उन्हें जो डेडलाइन दी गई थी उसमें सिर्फ 72 घंटे का वक्त बचा था, यानी कुल मिलाकर सिर्फ 3 दिन। अंग्रेज सरकार ने बड़ा जश्न मनाने की तैयारी की थी। जाने वह जश्न था या कि ब्रिटिश हुकूमत शोर-शराबे में बंटवारे की चीखों को दबा देना चाहती थी। माउंटबेटन नहीं चाहते थे कि किसी भी सूरत में बंटवारे का प्लान दोनों देश के स्वतंत्रता समारोह से पहले बाहर आए। 13 अगस्त की सुबह रेडक्लिफ की रिपोर्ट को दो लिफाफों में वायसराय हाउस पहुंचा दिया गया।14 अगस्त को महात्मा गांधी सौदपुर के आश्रम से निकलकर हैदरी हाउस की ओर रवाना हुए। वे सोहरावर्दी के साथ वहां ठहरे हुए थे, कोलकाता के दंगों को रोकने के लिए।
14 अगस्त के दिन गांधी के विरोधी जिन्ना इतिहास के सामने उस जीत का गवाह बनने जा रहे थे, जिसमें गांधी हार गए और जिन्ना देश को बांटने के अपने मंसूबे में जीत गए। कराची के उस परेड मैदान में इतिहास इस पल का गवाह बनने जा रहा था।
14 अगस्त की रात को 12:00 बजे तेज बारिश के बावजूद दिल्ली की कांस्टिवेंट एसेंबली के बाहर लोगों का तांता लगा था और अंदर भी हाल खचाखच भरा था। ठीक 12:00 बजे रात को जवाहरलाल नेहरू को प्रधानमंत्री पद की शपथ दिलाई गई।
15 अगस्त की आजादी की पहली सुबह आई। पूरा देश आजादी के जश्न में डूबा हुआ था। किंतु बंटवारे के कारण बहुत से लोग ये नहीं समझ पा रहे थे कि जश्न मनाएं या गम। माउंटबेटन और उनकी पत्नी भी खुश थे कि उन्होंने अपने एक बड़े मिशन में कामयाबी हासिल कर ली थी।
आजादी के पहले के वो 60 दिन
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