आदित्य तिक्कू।।
क्या लिखूं , क्या-क्या लिखूं ,पांच सौ वर्षों का संघर्ष है, कैसे चंद पंक्तियों में लिखूं। कलयुग में मेरे प्रभु राम का धैर्य लिखूं , राम सेवकों पर गोलियां चलवाती सत्ता की गाथा लिखूं या पुरुषोत्तम राम के आदर्शों की व्याख्या लिखूं। मेरे प्रभु राम ने तो इतने उतार-चढ़ाव, संघर्ष और जद्दोजहद के बाद आखिरकार 5 अगस्त 2020 को लोकतांत्रिक और सौहार्दपूर्ण तरीके से राममंदिर के पुनः निर्माण का कार्य प्रारंभ कराया । सरल शब्दों में जाना जाये तो सृष्टि के कर्ता-धर्ता मेरे राम ने यही सिखाया है कि धैर्य रखे और सदा धर्म के मार्ग पर चले।
मेरे राम के मंदिर के पुनः निर्माण से एक नए युग की शुरुआत हो गई, जो अब हर पल राम राज्य के लिए हमे प्रेरित करेगी और हर किसी को झकझोरेगी। हर किसी के मन को उद्वेलित करेगी कि भारत देश को उसकी गरिमा के अनुसार ऊपर उठाने के लिए हम सबने क्या किया, कन्याकुमारी से कश्मीर तक को एकता के सूत्र में पिरोने के लिए हमने क्या किया, समाज के हर वर्ग के विकास के लिए हमने क्या किया।
मेरे राम का मंदिर पुनः निर्माण हमारे लिए एक शुभ अवसर है। हम जिन अनिवार्य जीवन मूल्यों को भूलते जा रहे हैं, उन्हें फिर से जीवन मूल्यों में व्यवहार में लाने की शुरुआत करने का अवसर मिला है। मानवीयता, प्रेम, मित्रता, सद्भाव का जो अभाव अब दिखने लगा है, उसे दूर करना जरूरी है। देश को विश्व गुरु बनाने का जो सपना देखा गया है, उसे पूरा करने की दिशा में भी मेरे राम के गुण हमारे सबके काम आ सकते हैं। पूरे वैभव के साथ श्रीराम के विराजने का लाभ न केवल अयोध्या, बल्कि पूरे देश और दुनिया को होना चाहिए व होगा भी यह मुझे पूर्ण विश्वास है, क्योंकि मेरे राम तो सबके है बस अपना मानने की देरी है।
आज हम ऐसे समय में है जब कुदरती व मानवीय विध्वंसों से लोहा ले रहे हैं, निर्माण का महत्व कहीं अधिक शिद्दत से महसूस होना चाहिए। हमें कितना कुछ गढ़ना अभी शेष है, यह महामारी हमें बता रही है और देश की सरहदें भी इसका संकेत दे रही हैं। गौर कीजिए, देश में कोविड-19 से मरने वालों की तादाद 40 हजार तक पहुंच गई है और उनमें से कई सारे लोगों की जान हम इसलिए नहीं बचा सके, क्योंकि हमारे पास उनके इलाज की माकूल व्यवस्था नहीं थी। लाखों भारतीय हर साल बाढ़ की चपेट में आकर महीनों खानाबदोशी की जिंदगी जीते हैं। ऐसे में, एक सशक्त भारत रचने के लिए न सिर्फ हमें अभी बहुत सारे अस्पतालों व स्कूलों की दरकार है, बल्कि अनगिनत पुलों, पनाहगाहों, ताल-तलैयां और सीमाओं पर सड़कों-बंकरों के जाल की भी आवश्यकता है। जाहिर है, इनके लिए बहुत सारे संसाधनों की जरूरत है और यह कोई बाहर वाला हमें नहीं देगा। इस देश के नागरिकों को अपने कर्म से अर्जित करने पड़ेंगे। राष्ट्र-निर्माण के लिए उनमें भाईचारे की कमी नहीं पड़नी चाहिए।
अयोध्या में राम सेवकों की कमी न पहले थी और न भविष्य में पड़ेगी। कभी किसी धर्म के आयोजन में लोग अपनी श्रद्धा से न धन की कमी पड़ने देते हैं और न श्रम-बल की। आज भारत-निर्माण को भी उसी भाव की जरूरत है। खासकर कोरोना काल में देश को अपने नागरिकों की श्रद्धा युक्त समझदारी की बहुत जरूरत है। मर्यादा पुरुषोतम श्रीराम ने अपने जीवन में धीरज के साथ विकट संकटों का सामना किया, तभी वह जीत का पथ निर्माण कर सके थे। अयोध्या में प्रधानमंत्री का संयम के साथ कोरोना के मुकाबले का आव्हान राम के इसी रूप से प्रेरित था। धैर्य के साथ सरकार के दिशा-निर्देशों का पालन करके ही हम इस महामारी से अपने देश को मुक्ति दिला सकते हैं। एक लंबे विवाद और ध्वंस के पटाक्षेप के बाद अयोध्या की हवाओ ने खुशियों की खनक महसूस की है। और इस दिन की पटकथा लिखने में पूरे भारत के नागरिक समाज ने अपने धैर्य, उत्साह, संतोष और समझदारी की रोशनी झिलमिलाई है। भारत-निर्माण के लिए इसी भाव को स्थाई रूप देने की जरूरत है। बहुलतावादी भारत में बन रहा भव्य श्रीराम मंदिर हमारे सामाजिक-सामुदायिक भाईचारे और शांति का संदेश पूरी दुनिया को दे सके, यह पूरा देश चाहेगा। आखिरकार प्रभु श्रीराम सबके हैं और सब प्रभु श्रीराम के हैं।
बहुत सुंदर संपादकीय है । हमने पढ़ा और अच्छा लगा।