भारतीय परंपरा में भाई बहन के प्रेम के प्रतीक त्यौहार रक्षाबंधन को खासा महत्व दिया गया है। रेशमी धागे के बंधन को भाई की कलाई पर बांधकर जहाँ बहन अपने भाई के दीर्घायु होने की कामना करती है, वहीं भाई, बहन से रक्षा बंधवाकर उसकी रक्षा का भार अपने कंधों पर ले लेता है। सावन माह की पूर्णिमा तिथि को मनया जानेवाला यह त्यौहार इस वर्ष सावन माह के आखिरी सोमवार यानी की 3 अगस्त को मनया जाएगा।
इस त्यौहार की पवित्रता का बखान करते हुए ज्योतिषाचार्य पण्डित अतुल शास्त्री कहते हैं, “भाई बहन का पवित्र पर्व रक्षाबंधन इस बार बहुत खास होनेवाला है क्योंकि इस साल रक्षाबंधन ना सिर्फ सावन माह के आखिरी सोमवार को मनाया जानेवाला है बल्कि इस वर्ष इस त्यौहार पर सर्वाथ सिद्धि और दीर्घायु आयुष्मान का शुभ संयोग भी बन रहा हैं।”
अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए ज्योतिषाचार्य पण्डित अतुल शास्त्री ने यह भी कहा कि ज्योतिष के अनुसार रक्षाबंधन पर ऐसा शुभ संयोग 29 साल बाद आया है। इस बार यह त्यौहार इसलिए भी खास है क्योंकि इस वर्ष इस त्यौहार पर भद्रा और ग्रहण का साया नहीं पड़ रहा हैं तो आइए आज हम आपको रक्षाबंधन के शुभ मुहूर्त के बारे में बताते हैं।
रक्षाबंधन का शुभ मुहूर्त—
राखी बांधने का मुहूर्त— 09:27:30 से 21:11:21 तक
रक्षा बंधन अपराह्न मुहूर्त— 13:45:16 से 16:23:16 तक
रक्षा बंधन प्रदोष मुहूर्त— 19:01:15 से 21:11:21 तक
मुहूर्त की अवधि— 11 घंटे 43 मिनट।
रक्षाबंधन का त्यौहार कैसे मनाया जाए यह तो व्यक्तिगत रूप से प्रत्येक बहन पर निर्भर करता है लेकिन अधिक लाभ के लिए ज्योतिषाचार्य पण्डित अतुल शास्त्री हमें यह भी बता रहे हैं कि इसे कैसे मनाए जिससे ईश्वर की असीम अनुकंपा भाई बहन पर बरसे। राखी की थाली में रेशमी वस्त्र, केसर, सरसों, चावल, चंदन और कलावा रखकर भगवान की पूजा करनी चाहिए। इसके बाद राखी शिव की प्रतिमा को अर्पित करें। भगवान शिव को अर्पित किया गया धागा या राखी भाइयों की कलाई पर बांधे।
रक्षा-सूत्र या राखी बांधते हुए निम्न मंत्र पढ़ा जाता है, जिसे पढ़कर पुरोहित भी यजमानों को रक्षा-सूत्र बांधते हैं।
ॐ येन बद्धो बली राजा दानवेन्द्रो महाबलः।
तेन त्वामपि बध्नामि रक्षे मा चल मा चल।।
इस मंत्र के पीछे एक महत्वपूर्ण कथा है, जिसे प्रायः रक्षाबंधन की पूजा के समय पढ़ा जाता है। एक बार धर्मराज युधिष्ठिर ने भगवान श्रीकृष्ण से ऐसी कथा को सुनने की इच्छा प्रकट की, जिससे सभी कष्टों से मुक्ति मिल जाती हो। इसके उत्तर में श्री कृष्ण ने उन्हें यह कथा सुनायी।
प्राचीन काल में देवों और असुरों के बीच लगातार 12 वर्षों तक संग्राम हुआ। ऐसा मालूम हो रहा था कि युद्ध में असुरों की विजय होने को है। दानवों के राजा ने तीनों लोकों पर कब्ज़ा कर स्वयं को त्रिलोक का स्वामी घोषित कर लिया था। दैत्यों के सताए देवराज इन्द्र गुरु बृहस्पति की शरण में पहुँचे और रक्षा के लिए प्रार्थना की। श्रावण पूर्णिमा को प्रातःकाल रक्षा-विधान पूर्ण किया गया।
इस विधान में गुरु बृहस्पति ने ऊपर उल्लिखित मंत्र का पाठ किया; साथ ही इन्द्र और उनकी पत्नी ने भी पीछे-पीछे इस मंत्र को दोहराया। इंद्र की पत्नी इंद्राणी ने सभी ब्राह्मणों से रक्षा-सूत्र में शक्ति का संचार कराया और इन्द्र के दाहिने हाथ की कलाई पर उसे बांध दिया। इस सूत्र से प्राप्त बल के माध्यम से इन्द्र ने असुरों को हरा दिया और खोया हुआ शासन पुनः प्राप्त किया।
रक्षाबंधन मनाने के विधि विधान का विस्तृत वर्णन करते हुए ज्योतिषाचार्य पण्डित अतुल शास्त्री ने कहा, “रक्षा बंधन को मनाने की एक अन्य विधि भी प्रचलित है। महिलाएँ सुबह पूजा के लिए तैयार होकर घर की दीवारों पर स्वर्ण टांग देती हैं। उसके बाद वे उसकी पूजा सेवईं, खीर और मिठाईयों से करती हैं। फिर वे सोने पर राखी का धागा बांधती हैं। जो महिलाएँ नाग पंचमी पर गेंहूँ की बालियाँ लगाती हैं, वे पूजा के लिए उस पौधे को रखती हैं। अपने भाईयों की कलाई पर राखी बांधने के बाद वे इन बालियों को भाईयों के कानों पर रखती हैं।
इसके अलावा कुछ लोग इस पर्व से एक दिन पहले उपवास करते हैं। फिर रक्षाबंधन वाले दिन, वे शास्त्रीय विधि-विधान से राखी बांधते हैं। साथ ही वे पितृ-तर्पण और ऋषि-पूजन या ऋषि तर्पण भी करते हैं। कुछ क्षेत्रों में लोग इस दिन श्रवण पूजन भी करते हैं। वहाँ यह त्यौहार मातृ-पितृ भक्त श्रवण कुमार की याद में मनाया जाता है, जो भूल से राजा दशरथ के हाथों मारे गए थे।”
जैसा कि रक्षाबंधन पर्व से जुड़ी कुछ कथाएँ हम ऊपर बता चुके हैं। अब हम आपको कुछ अन्य ऐसी पौराणिक घटनाएँ बताते हैं, जो इस त्यौहार के साथ जुड़ी हुई हैं।
• मान्यताओं के अनुसार इस दिन द्रौपदी ने भगवान कृष्ण के हाथ पर चोट लगने के बाद अपनी साड़ी से कुछ कपड़ा फाड़कर बांधा था। द्रौपदी की इस उदारता के लिए श्री कृष्ण ने उन्हें वचन दिया था कि वे द्रौपदी की हमेशा रक्षा करेंगे। इसीलिए दुःशासन द्वारा चीरहरण की कोशिश के समय भगवान कृष्ण ने आकर द्रौपदी की रक्षा की थी।
• एक अन्य ऐतिहासिक जनश्रुति के अनुसार मदद हासिल करने के लिए चित्तौड़ की रानी कर्णावती ने मुग़ल सम्राट हुमाँयू को राखी भेजी थी। हुमाँयू ने राखी का सम्मान किया और अपनी बहन की रक्षा गुजरात के सम्राट से की थी।
• ऐसा भी कहा जाता है कि इस दिन देवी लक्ष्मी ने सम्राट बाली की कलाई पर राखी बांधी थी।
ज्योतिषाचार्य पण्डित अतुल शास्त्री ने यह भी कहा, “रक्षाबंधन पर इस वर्ष सर्वार्थ सिद्धि और दीर्घायु आयुष्मान योग के साथ ही सूर्य-शनि के समसप्तक योग, सोमवती पूर्णिमा, मकर का चंद्रमा श्रवण नक्षत्र, उत्तराषाढ़ा नक्षत्र और प्रीति योग भी बन रहा हैं। गौर करनेवाली बात यह है कि इससे पहले यह संयोग वर्ष 1991 में बना था। साथ ही इस बार रक्षाबंधन सावन के पांचवे व अंतिम सोमवार को होने के कारण देश के लिए भी शुभ है। भद्रा सूर्य की पुत्री है, जो इस बार रक्षाबंधन के दिन सुबह 9.29 बजे तक रहेगी। सोमवार को रक्षाबंधन की सुबह 7.20 बजे तक उत्तराषाढ़ा नक्षत्र है, उसके बाद श्रवण नक्षत्र लग जाएगा।”