- लोगों के सपने पूरे करने में निभा रहे हैं अहम रोल, न्यूज रीडिंग से राइटिंग तक उनके सफर की एक बानगी
भारत में कई ऐसे प्रतिभाशाली लोग मौजूद हैं जिन्होंने खुद के साथ दूसरों का भविष्य बनाने में अहम योगदान दिया है। ऐसे ही कुछ टैलेंटेड सक्सेसफुल लोगों में से एक हैं मुंबई के भरतकुमार सोलंकी। हिन्दुस्तान के मशहूर वित्त विशेषज्ञों में शुमार भरतकुमार सोलंकी के जीवन की कहानी किसी बॉलीवुड फिल्म से कम नहीं है। राजस्थान के एक छोटे से गांव से लेकर मायानगरी मुंबई का लोकप्रिय फाइनेंशियल एक्सपर्ट बनने का सफर उन्होंने तमाम मुश्किलों को झेलते हुए तय किया है। हालाकि भरतकुमार अपने जीवन की सभी उपलब्धियों को पिता दीपचंदजी सोलंकी से मिली शिक्षा पर समर्पित करते हैं। आइए आज जानते हैं उनके जीवन से जुड़े कुछ दिलचस्प पहलुओं को।
1989 में शादी के बाद भरतकुमार सोलंकी के साथ एक दिन कुछ ऐसा हुआ कि उनकी जिंदगी पूरी तरह से बदल गई। सोलंकी का जीवन और करियर एक नए पड़ाव से गुजरने वाला था। सोलंकी मानते हैं कि अगर उनके साथ ऐसा न हुआ होता तो वो शायद फाइनेंस और इश्योरेंस सेक्टर में कभी जा ही नहीं पाते, और तमाम लोगों की परेशानियां कभी दूर न हो पाती। वैसे तो भरतकुमार सोलंकी का स्वभाव बड़ा ही शांत है, मगर प्रबुद्ध लोगों की संगति करना उन्हें बेहद पसंद हैं। उनके तमाम चाहने वाले शायद ये नहीं जानते होंगे कि सोलंकी मुंबई शहर में रहकर भी गांव के साथ एक समन्वय बनाकर रखे हुए हैं। भरतकुमार को समाजसेवा विरासत में मिली हुई थी, जिसे उन्होंने फ्रेंड्स क्लब जैसी संस्था की स्थापना के ज़रिए पूरी करने की शुरुआत की। गांव के परेशान लोगों की दिक्कतों को दूर करने के लिए वो किसी भी हद तक जाने को तैयार रहते हैं।
भरतकुमार सोलंकी टेक्नॉलजी और बदलाव के पक्षधर हैं। वो हमेशा समय के साथ कदम से कदम मिलाकर साथ चलते आये हैं। सोलंकी के पास नब्बे के दशक में मोबाइल फोन हुआ करता था साथ ही उन्होंने 1988 में ही कम्प्यूटर चलाना सीख लिया था।
श्री सोलंकी का सपना युवाओं को उनकी मेहनत के बल पर करोड़पति बनाने का है। सोलंकी अब तक अपनी विशेषज्ञ सलाहों के जरिए 500 से अधिक लोगों को करोड़पति बना भी चुके हैं। इसके लिए वह लोगों को ट्रेनिंग भी मुहैया कराते हैं। सोलंकी अपने बेटे प्रतीक सोलंकी को वित्त एवं बीमा से जुड़ी बारीकियां सिखा रहे हैं। प्रतीक भी आज अपनी ख़ुद की एक टीम बनाकर तमाम नये लोगों को जोड़कर इंवेस्टमेंट-इंश्योंरेंस और म्यूचुअल फंड्स की उपयोगिता सिखा रहे हैं।
कोरोना वायरस की वजह से वैश्विक मंदी को लेकर जहां हर तरफ हाहाकार मचा हुआ है, वहीं भरतकुमार सोलंकी इसे नये युग की शुरुआत बता रहे हैं। सोलंकी का मानना है कि कोरोना वायरस सभी सेक्टर्स और लोगों की मानसिकता को शुद्ध करने आया है। सोलंकी तमाम पत्र-पत्रिकाओं, टीवी चैनल, डिजिटल और रेडियो के माध्यम से अपने विचार करोड़ों लोगों से साझा कर उनका ढांढस बंधाने का सराहनीय काम कर रहे हैं।
जीवन की शुरुआत के 20 साल
श्री सोलंकी के अनुसार, राजस्थान में पाली जिले के बागोल गांव में दो अक्टूबर के दिन उनका जन्म हुआ, 18 साल तक पिता स्वर्गीय दीपचंदजी सोलंकी सरपंच रहते हुए लोगों की सेवा करते रहे। 1979 तक गांव में ही आठवीं तक स्कूली शिक्षा हासिल की। आगे की पढ़ाई के लिए बड़े भाई साहब ने मुझे मुंबई बुला लिया। मुंबई के चीरा बाज़ार स्थित मारवाड़ी कमर्शियल में 9वी क्लास में एडमिशन भी मिल गया था। श्री सोलंकी बताते हैं कि मेरा लेखन का काम बचपन से ही चलता रहा है। मैं बचपन में स्कूल के दिनों में समाचार वाचन का काम करता था। स्कूल की सुबह वाली प्रार्थना सभा में समाचार वाचन करता था। हमारे गांव में अखबार दो दिन बाद आता था। जैसे कि आज अखबार सुबह शहर आया तो हमारे गांव में दो दिन बाद पहुंचता था। एक दिन मेरे टीचर ने कहा कि तुम बासी खबरों को लेकर आते हो तो अब ऐसा नहीं चलेगा। रेडियो पर समाचार सुनकर उन्हें लिखकर ले लाओ और उसे स्कूल की प्रार्थना सभा में छात्रों को सुनाओ। मैंने अगले ही दिन से ऐसा करना शुरू कर दिया। मैं रेडियो पर एक और कार्यक्रम पाठशाला पाठ्यक्रम भी प्रतिदिन सुनता था। इसके लिए टीचर द्वारा मुझे शाबाशी भी मिली थी।
मेरे मुंबई आने के बाद ऐसा हुआ कि आकाशवाणी ने अचानक स्कूल शिक्षा वाला कार्यक्रम बंद कर दिया। मैंने अपने स्कूल टीचर को कहा कि यह कार्यक्रम बंद हो गया, जो हमारे जैसे स्टूडेंट्स के लिए बहुत जरूरी है। मेरे हिन्दी टीचर दुबे जी के कहने पर मैंने एक पत्र नवभारत टाइम्स और ऑल इंडिया रेडियो को लिखा ताकि यह कार्यक्रम दोबारा शुरू हो। आकाशवाणी द्वारा मेरे पत्र के जवाब में कार्यक्रम दोबारा शुरू करने का आश्वासन दिया गया। सन 1979 में नवभारत टाइम्स में छपी मेरी इस चिट्ठी से प्रभावित होकर मुंबई की तेलगली में एक संस्था का गठन किया गया, जिसका नाम राजस्थान मीटरगेज प्रवासी संघ रखा गया। संघ के अन्य सभी कर्ता-धर्ता मेरी उम्र से मुझसे कई साल बड़े होने के कारण मुझे संस्था का सदस्य बनाना शायद उचित नहीं समझा लेकिन संस्था के बड़े बुज़ुर्ग कार्यकर्ताओं ने मज़बूत इरादों के साथ एक ज़ोरदार संघर्षपूर्ण आंदोलन लगातार चलाने के परिणामस्वरूप आज हम दिल्ली मुंबई ब्रॉडगेज सीधी ट्रेन सेवाओं का लाभ ले पा रहे हैं।
ऐसे शुरू हुआ काम
मैंने एलआईसी पॉलिसी लिया, जिसका मनी बैक रिफंड आने वाला था। मगर पॉलिसी बॉन्ड कहीं मिल नहीं रहा था तो एजेंन्ट ने बताया कि अब तो बड़ा मुश्किल काम होगा, लेकिन इस मामले को लेकर एलआईसी के विकास अधिकारी आरके सिन्हा को बताया तो उन्होंने कहा कि यह तो बड़ा ही आसान काम है। उन्होंने मुझे एलआईसी दफ्तर बुलाकर सिर्फ़ 13 रुपए शुल्क के तौर पर जमा कराए और तीन दिन में ही मेरा एलआईसी पॉलिसी का पैसा दिला दिया। मजे की बात तो ये रही कि मेरी पॉलिसी के कागजात मेरे दुकान पर ही कुछ दिनों बाद मुझे मिले। इसके बाद मेरी सिन्हा जी से अच्छी दोस्ती हो गई। उनसे मेरी मुलाकातों के दिन बढ़े। कालबादेवी में हमारा कपड़े का व्यवसाय था। मुंबई के कपड़ा बाज़ार में हमारी यह मशहूर दुकान थी। अक्सर वह मेरी दुकान पर आते जाते रहे और मुझे बताया कि ऐसे लोगों की मदद कीजिये, जिनके कागजात खो गये हैं। मेरी समाज सेवा में रुचि को देखते हुए उन्होंने मुझे एक लिस्ट दी जिसको मैंने ध्यान से देखा और उस लिस्ट में मैंने कई लोगों को खोजा और उनका क्लेम सेटेलमेंट कराया। ये सब करते रहने के साथ-साथ उन्होंने मुझे बताया कि आप जिन लोगों से मिलते हैं उनका एलआइसी जीवन बीमा भी करा सकते हैं। मैंने अपनी पत्नी धर्मिला के नाम पर एलआईसी का एजेंसी लिया। उसके बाद मार्केट में आसपास लोगों से भी बातचीत करना शुरू कर दिया। फिर तो कई लोगों से संपर्क किया, उनका क्लेम सेटलमेंट भी करवाया। वहीं उनमें से कुछ लोगों की नयी पॉलिसी भी बनवाई। जिनका क्लेम सेटलमेंट किया उन्होंने कई लोगों को कोटेशन बनाकर देना भी शुरू कर दिया।
जब मेरे पास 1994 में जनरल इंश्योरेंस का काम आया तो मैंने इसी काम को अपना जुनून बना दिया। साल 2000 आते-आते मुझे एलाईसी की ओर से तमाम पुरस्कार मिलते रहे। एलआईसी की ओर से विदेश जाने का मौका भी मिला था। लेकिन वीज़ा सम्बंधी तकनीकी कारण से नहीं जा पाया था। अभी दो साल पहले ही अमेरिका गया था, उससे पहले साउथ अफ्रीका, होंगकोंग, बैंक़ॉक, पटाया-थाईलेंड के अलावा कई बार दुबई भी अलग-अलग आयोजनों में जाने का मौका मिला
विरासत में मिली समाजसेवा शौक बन गई
श्री सोलंकी ने बातचीत करते हुए आगे बताया कि एक बार मैं अपने दोस्त की शादी में राजस्थान गया तो मुंबई आकर बीस साल की उम्र में एक संस्थान बनाई फ्रेंड्स क्लब। जिसके फंड राइजिंग के लिए विश्व विख्यात जादूगर पीसी सरकार का एक शो भी आयोजित किया गया। गांव के लोग क्लब के काम से काफी प्रभावित हुए। सांस्कृतिक कार्यक्रमों के अलावा सामाजिक कार्यों को भी कराना प्रभारंभ करा दिया। स्कूली छात्रों को निम्नतम मूल्य पर कॉपी किताब से लेकर पेंसिल कंपास बॉक्स इत्यादि तमाम सामग्री उपलब्ध कराई जाती थी।
नई तकनीक और गांव से हमेशा रहा लगाव
मुझे हमेशा ही नई तकनीकों से लगाव रहा है, यही वजह है कि मैंने 1997 में पहली बार मोबाइल फोन खरीदा था। उस समय मेरे मोबाइल की कीमत करीब 12500 रुपये थे। उस समय कॉल रेट 16 रुपये इनकमिंग- आउटगोइंग दोनों की रहती थी। लोग मुझे अमीर इंसान समझते थे। मुझको देखकर लोगों में गर्व होता था, जबकि इसकी वजह मेरा नई तकनीक के प्रति लगाव था। मैंने 1988 में पहली बार कम्प्यूटर लिया था जिसमें अपना सारा डेटा रिकॉर्ड डाल दिया था। एक दिन ऐसा हुआ जब मेरा पूरा डेटा उड़ गया। फिर भी मैंने हार नहीं मानी और उसे फिर से अपडेट किया। मैं हमेशा से तकनीकि के साथ चलता रहा हूं। 1989 में मेरी शादी राजस्थान में हुई थी। ये शादी मेरी वजह से ही गांव मे आयोजित कराई गई थी। इसकी वजह थी मेरा अपने गांव से प्रेम। गांव में पूरी मुंबईया स्टाइल में शादी एवं शादी का पूरा डेकोरेशन मुंबईया स्टाइल में हुआ था।
हेल्थ के साथ वेल्थ का ध्यान रखना जरूरी
मैं लोगों को लगातार जागरूक कर रहा हूं कि उन्हें अपने जीवन के साथ ही जीवन बीमा के प्रति हमेशा जागरूक रहना चाहिए। हेल्थ के साथ-साथ वेल्थ की ओर ध्यान देना आज हर इंसान की सबसे बड़ी जरूरत है। सबसे पहले लोगों को अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति करनी चाहिए। लोगों को स्व निर्भर रहना जरूरी है। 1985 में जब मैंने अपनी संस्था बनाई तो लोग कहते थे कि समाजसेवा के साथ खुद को मजबूत बनाना जरूरी है। उसी दौरान मैंने अपना विजन बदल दिया। लोगों का इश्योरेंस करते हुए दूसरों को मजबूत करने के साथ खुद को मजबूत बनाया। अभी तक सेक़ड़ो लोगों को करोड़पति बना चुका हूं साथ ही मेरा उद्देश्य है कि मैं कम से कम 500 लोगों को 10 करोड़ का करोड़पति बना दूं। मेरा सपना है कि मेरे साथ जो भी जुड़ेगा वो अपनी मेहनत से करोड़पति जरूर बनेगा।
कोरोना वायरस सभी सेक्टर्स और लोगों की मानसिकता को शुद्ध करने आया है। अगर अभी लोग न समझे तो फिर उन्हें समझाना बेहद मुश्किल होगा। हेल्थ के साथ-साथ वेल्थ की ओर ध्यान देना आज हर इंसान की सबसे बड़ी जरूरत है।