नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने सबरीमाला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश पर लगी पाबंदी को खत्म कर दिया है। दक्षिण भारत के इस प्रसिद्ध मंदिर में अब पचास वर्ष से कम उम्र की महिलाओं को प्रवेश मिल सकेगा। सबरीमाला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश पर फैसला सुनाते हुए सीजेआइ दीपक मिश्रा ने कहा कि धर्म एक है, गरिमा और पहचान भी एक हैं। अय्यप्पा कुछ अलग नहीं हैं, जो नियम जैविक और शारीरिक प्रक्रियाओं के आधार पर बने हैं। वे संवैधानिक परीक्षा में पास नहीं हो सकते। सुप्रीम कोर्ट ने यह फैसला 4-1 के बहुमत से आया है। जस्टिस इंदु मल्होत्रा ने अलग फैसला दिया है।
सबरीमाला मंदिर की परंपरा असंवैधानिक
शुक्रवार को भारत में महिलाओं के अधिकार के लिए बड़ा दिन बनाते हुए सीजेआइ ने कहा, ‘सबरीमाला मंदिर की परंपरा संवैधानिक नहीं है। सबरीमाला की पंरपरा को धर्म का अभिन्न हिस्सा नहीं माना जा सकता।’ वहीं फैसला सुनाते हुए जस्टिस रोहिंगटन नरीमन ने कहा कि मंदिर में महिलाओं को भी पूजा का समान अधिकार, यह मौलिक अधिकार है। जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने फैसला सुनाते हुए कहा कि पूजा से इंकार करना महिलाओं की गरिमा से इंकार करना है। उन्होंने सवाल किया, क्या संविधान महिलाओं के लिए अपमानजनक बात को स्वीकार कर सकता है?
इस मंदिर में दस से पचास वर्ष की उम्र के बीच की महिलाओं का प्रवेश प्रतिबंधित था। इस प्रतिबंध को चुनौती देने वाली कई याचिकाओं पर मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने आठ दिनों तक सुनवाई के बाद एक अगस्त को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था। पीठ में जस्टिस मिश्रा के अलावा न्यायमूर्ति आरएफ नरीमन, जस्टिस एएम खानविल्कर, न्यायमूर्ति डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस इंदु मल्होत्रा भी शामिल हैं।
इस विवादास्पद मामले में अपना रुख कई बार बदलने के बाद केरल सरकार ने 18 जुलाई को आखिरकार कह दिया कि वह मंदिर में महिलाओं के प्रवेश की पक्षधर है। शीर्ष कोर्ट ने पिछले वर्ष 13 अक्टूबर को यह मामला संविधान पीठ के हवाले किया था।
सुप्रीम कोर्ट ने सबरीमाला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश पर लगी पाबंदी को किया खत्म
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