आदित्य तिक्कू।।
चीन के विस्तारवादी इरादों को पूर्ण विराम लगाने के उद्देश्य से विश्व के सबसे बड़े लोकतांत्रिक राष्ट्र के प्रधानसेवक ने यकायक लेह पहुंचकर केवल वहां तैनात जवानों का मनोबल ही नहीं बढ़ाया, बल्कि उन्होंने चीन को यह सख्त व स्पष्ट संदेश भी दे दिया है कि भारत अब उसकी अतिक्रमणकारी हरकतों का अंत करने के लिए तैयार है। चीन ने विगत 15 जून को जिस तरह हमारे जांबाज सैनिकों का कत्ल किया था उससे हर देशवासी मर्माहत है और अपेक्षा कर रहा है कि चीन से इसकी कीमत वसूली जानी चाहिए, देश के सैनिकों के साथ राजनैतिक नेतृत्व का खड़ा होना बताता है कि शहीदों की वीरगति बेकार नहीं जानी चाहिए, परंतु दूसरी तरफ यह भी हकीकत है कि चीन अभी तक लद्दाख में खिंची नियन्त्रण रेखा के भारतीय क्षेत्र में चार जगह अतिक्रमण किये बैठा है और वापस अपने स्थान पर जाने का नाम ही नहीं ले रहा है।
इसके समानान्तर दोनों देशों के बीच वार्तालाप भी जारी है। दरअसल प्रधानसेवक का लद्दाख जाना इसलिए महत्वपूर्ण है कि नियंत्रण रेखा पर भारत व चीन दोनों की सेनाओं के बीच अभी भी तनाव है। प्रधानसेवक की यह यात्रा सेना के वीर जवानों को संदेश देती है कि उनका बलिदान व्यर्थ नहीं जाने दिया जाएगा और चीन ने भी उनके इस संदेश को ग्रहण करने के साथ ही उनके इस कथन पर अपनी प्रतिक्रिया भी व्यक्त की है। विस्तारवाद की सनक सदैव विश्व शांति के लिए खतरा होती है। हालांकि प्रधानसेवक ने चीन का नाम लिए बगैर उसे विस्तारवादी बताया। यह बात दिलचस्प है कि चीन को यह समझते देर नहीं लगी कि दरअसल उसके ही नापाक इरादों को रेखांकित कर उसे विश्व शांति के लिए खतरा बताया जा रहा है। परंतु बुद्धिजीवियों और विपक्ष को समझ में नहीं आ रहा है कि वह यही कह रहे है चीन का नाम क्यों नहीं लिया। … इस पर हसें या रोये ?
विस्तारवाद की भूख ने चीन को मानसिक रूप से बीमार कर दिया है। परंतु डरने की कोई बात नहीं है। विश्व जानता है कि भारतीय डॉक्टर हर बीमारी का इलाज जानते है। इनका भी इलाज होगा प्रक्रिया शुरू हो चुकी है। दवाओं से ठीक हो जाये तो अच्छा है, अन्यथा ऑपरेशन ही करना पड़ेगा, जिसमें जान का खतरा बरकरार रहता है। हम शांति प्रिय राष्ट्र है इसलिए चाहेंगे कि चीन भी खुशहाल जीवन जिए, क्योंकी ऑपरेशन हुआ तो कहीं पाक और नेपाल अनाथ ना हो जाये।
बीमार देश को इससे भी मिर्ची लगी है कि उसे बिना किसी लाग-लपेट विस्तारवादी कहा गया है। दूसरे देशों की जमीन पर फर्जी दावा करना और फिर छल-कपट से उस पर कब्जा करना उसकी बीमारी बन चुकी है। विस्तारवाद की उसकी इस बीमारी से केवल हम ही नहीं, उसके अन्य पड़ोसी भी त्रस्त हैं। अब तो पूरी दुनिया इससे अच्छी तरह परिचित है कि वह किस बेशर्मी के साथ अपने पड़ोसी देशों की जमीनों को निगलने की कोशिश करता है।
चीन अपने ही देश में हांगकांग की स्वतंत्रता का जिस बर्बर तरीके से दमन करने में जुट गया है, उससे दुनिया को यह भी पता चल गया है कि उसके लिए कोई अंतरराष्ट्रीय समझौता मायने नहीं रखता। आखिर ऐसे देश पर कोई भरोसा कैसे कर सकता है? हम तो अब बिल्कुल भी नहीं करेंगे, क्योंकि गलवन घाटी में चीन ने जो कुछ किया वह भरोसे का हनन ही है। चीन अपनी विस्तारवादी बीमार के लिए स्वयं ज़िम्मेदार है। चीन को समझना चाहिए की बीमार ठीक ना हो तो ऑपरेशन करना पड़ता है उसमें अस्तित्व का खतरा बीमार को होता है डॉक्टर को नहीं।